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पापाकुंशा एकादशी के व्रत से पापों का होता है नाश..जानिए कथा, पूजा, विधि



पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) का हिन्‍दू धर्म में बड़ा महात्‍म्‍य है. इस दिन सृष्टि के रचयिता भगवान विष्‍णु की पूजा और मौन रहकर भगवद् स्मरण तथा भजन-कीर्तन करने का विधान है. मान्‍यता है कि इस तरह भगवान की आराधना करने से भक्‍त का मन शुद्ध होता है और उसमें सदगुणों का समावेश होता है. मान्‍यता है कि महाभारत काल में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को पापांकुशा एकादशी का महत्व बताते हुए कहा था कि यह एकादशी (Ekadashi) पाप का निरोध करती है यानी कि पाप कर्मों से रक्षा करती है. कहते हैं कि पापांकुशा एकादशी का व्रत करने से अनेकों अश्वमेघ यज्ञों और सूर्य यज्ञ के समान फल की प्राप्‍ति होती है.
 
पापांकुशा एकादशी कब है? 
हिन्‍दू पंचांग के अनुसार पापांकुशा एकादशी व्रत आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन किया जाता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार पापांकुशा एकादशी हर साल अक्‍टूबर के महीने में आती है. इस बार पापांकुशा एकादशी 09 अक्‍टूबर को है.

पापांकुशा एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि आरंभ: 08 अक्‍टूबर 2019 को दोपहर 02 बजकर 50 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्‍त: 09 अक्‍टूबर 2019 को शाम 05 बजकर 19 मिनट तक
द्वादश के दिन पारण मुहूर्त: 10 अक्‍टूबर 2019 को सुबह 06 बजकर 18 मिनट 40 सेकेंड से सुबह 08 बजकर 38 मिनट 26 सेकेंड तक
कुल अवधि: 02:19 मिनट 

पापांकुशा एकादशी का महत्‍व 
पाप रूपी हाथी को व्रत के पुण्य रूपी अंकुश से बेधने के कारण ही इसका नाम पाप कुंशा एकादशी पड़ा. मान्‍यता है कि इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से मनुष्‍य के संचित पाप नष्‍ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्‍ति होती है. मान्‍यताओं के अनुसार हजारों अश्वमेघ यज्ञों और सैकड़ों सूर्य यज्ञों के बाद भी इस व्रत का 16वां भाग जितना फल भी नहीं मिलता. कहते हैं कि इस दिन उपवास रखने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है और स्‍वर्ग का मार्ग प्रशस्‍त होता है. वहीं, जो लोग पूर्ण रूप से उपवास नहीं कर सकते उनके लिए मध्याह्न या संध्या काल में एक समय भोजन करके एकादशी व्रत करने का विधान कहा गया है. पापांकुशा एकादशी का व्रत अत्‍यंत फलदायी है और इस दिन सच्‍ची भक्ति और यथाशक्ति दान-दक्षिणा करने से से व्‍यक्ति पर श्री हरि विष्‍णु की विशेष कृपा बरसती है.

पापांकुशा एकादशी व्रत विधि
- एकादशी के दिन सुबह उठकर स्‍नान कर स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें. 
- अब व्रत का संकल्‍प लें. 
- इसके बाद घर के मंदिर या पूजा के स्‍थान पर घट की स्‍थापना करें. 
- अब घट के ऊपर भगवान विष्‍णु की प्रतिमा या चित्र रखें. 
- अब विष्‍णु जी की प्रतिमा को दीपक दिखाएं और फूल, नारियल और नैवेद्य अर्पण करें.
 - इसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए.
- अब धूप-दीपक से विध‍िवत् विष्‍णु जी की आरती उतारें. 
- विष्‍णु जी की पूजा करते वक्‍त तुलसी दल अवश्‍य रखें.  
- रात्रि के समय जागरण करें और भगवान का भजन-कीर्तन करें. 
- अगले दिन यानी कि द्वादश को ब्राह्मणों को भोजन कराएं और यथाशक्ति दक्षिणा देकर विदा करें.
- एकादशी का व्रत करने वालों को दशमी तिथि से ही व्रत का पालन करना चाहिए. 
- दशमी पर सात तरह के अनाज- गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर की दाल नहीं खानी चाहिए. दरअसल, इन सातों अनाजों की पूजा एकादशी के दिन की जाती है. 

पापांकुशा एकादशी व्रत कथा 
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार विध्‍यांचल पर्वत पर एक बहुत ही क्रूर शिकारी क्रोधना रहा करता था. उसने अपने पूरे जीवन में सिर्फ दुष्‍टता से भरे कार्य किए थे. उसके जीवन के अंतिम दिनों में यमराज ने अपने एक दूत को उसे लेने के लिए भेजा. क्रोधना मौत से बहुत डरता था. वह अंगारा नाम के ऋषि के पासा जाता है और उनसे मदद की गुहार करता है. इस पर ऋषि उसे पापांकुशा एकादशी के बारे में बताते हुए अश्विन माह की शुक्‍ल पक्ष एकादशी का व्रत रखने के लिए कहते हैं. क्रोधना सच्‍ची निष्‍ठा, लगन और भक्ति भाव से पापांकुशा एकादशी का व्रत रखता है और श्री हरि विष्‍णु की आराधना करता है. इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी संच‍ित पाप नष्‍ट हो जाते हैं और उसे मुक्ति मिल जाती है.  

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