श्राप के कारण हुआ था रावण का जन्म, जानिए क्या कहते हैं धर्मग्रंथ
पद्मपुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, कूर्मपुराण, रामायण, महाभारत, आनन्द रामायण, दशावतारचरित आदि ग्रंथों में लंकापति रावण का उल्लेख मिलता है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित महाकाव्य रामायण में रावण को लंकापुरी वर्तमान में श्रीलंका का सबसे शक्तिशाली राजा बताया गया है।
हमारे धर्मग्रंथों पद्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार आदिकाल में जन्में हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु अपने पर्नजन्म में रावण और कुम्भकर्ण के रूप में पैदा हुए थे। वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण पुलस्त्य मुनि का पोता था यानी उनके पुत्र विश्रवा का पुत्र था।
विश्रवा की वरवर्णिनी और कैकसी नामक दो पत्नियां थी। वरवर्णिनी ने कुबेर को जन्म दिया और कैकसी ने कुबेला (अशुभ समय - कु-बेला) में गर्भ धारण किया।इसी कारण से उसके गर्भ से रावण तथा कुम्भकर्ण जैसे क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षस पैदा हुए।
तुलसीदास द्वारा लिखित रामचरितमानस में माना गया है कि रावण का जन्म शाप के कारण हुआ था। पौराणिक संदर्भों के अनुसार पुलत्स्य ऋषि ब्रह्मा के दस मानसपुत्रों में से एक माने जाते हैं। इनकी गिनती सप्तऋषियों और प्रजापतियों में की जाती है। विष्णु पुराण के अनुसार ब्रह्मा ने पुलत्स्य ऋषि को पुराणों का ज्ञान मनुष्यों में प्रसारित करने का आदेश दिया था।
पुलत्स्य के पुत्र विश्रवा ऋषि हुए, जो हविर्भू के गर्भ से पैदा हुए थे। विश्रवा ऋषि की एक पत्नी वरवर्णिनी से कुबेर और कैकसी के गर्भ से रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा का जन्म हुआ। सुमाली विश्रवा के श्वसुर व रावण के नाना थे। विश्रवा की एक पत्नी माया भी थी, जिससे खर, दूषण और त्रिशिरा पैदा हुए थे और जिनका उल्लेख तुलसी की रामचरितमानस में मिलता है।
दो पौराणिक संदर्भों के अनुसार भगवान विष्णु के दर्शन हेतु सनक, सनंदन आदि ऋषि बैकुंठ पधारे परंतु भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय ने उन्हें प्रवेश देने से इंकार कर दिया। ऋषिगण अप्रसन्न हो गए और क्रोध में आकर जय-विजय को शाप दे दिया कि तुम राक्षस हो जाओ। जय-विजय ने प्रार्थना की व अपराध के लिए क्षमा मांगी।
भगवान विष्णु ने भी ऋषियों से क्षमा करने को कहा। तब ऋषियों ने अपने शाप की तीव्रता कम की और कहा कि तीन जन्मों तक तो तुम्हें राक्षस योनि में रहना पड़ेगा और उसके बाद तुम पुनः इस पद पर प्रतिष्ठित हो सकोगे।
इसके साथ एक और शर्त थी कि भगवान विष्णु या उनके किसी अवतारी स्वरूप के हाथों तुम्हारा मरना अनिवार्य होगा। त्रेतायुग में ये दोनों भाई रावण और कुंभकर्ण के रूप में पैदा हुए, जिनका वध श्रीराम ने किया।