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चर्तुथ नवरात्र : मॉं कुष्‍मांडा की उपासना से होती है आयु-यश-कीर्ति में वृद्धि



नवरात्रि की चतुर्थी तिथि के दिन देवी कूष्मांडा की आराधना की जाती है। देवी कूष्माण्डा की उपासना से भक्त को समस्त सिद्धियों और निधियों की प्राप्ति होती है। माँ कूष्माण्डा की उपासना मानव को व्याधियों से मुक्त करती है और उसको सुख-समृद्धि प्रदान करती है। जीवन में उन्नति पाने के लिए माता के इस स्वरूप की आराधना करना चाहिए। देवी कूष्माण्डा की पूजा से रोग- शोक दूर होते हैं और आयु, यश और कीर्ति में वृदधि होती है। मां कूष्माण्डा के इस भव्य स्वरूप को प्रज्वलित प्रभाकर कहा जाता है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं। बलियों में कुम्हड़े की बलि देवी को सर्वाधिक प्रिय है। इस कारण से भी माँ कूष्माण्डा कहलाती हैं। नवरात्रि के चौथे दिन इस मंत्र का जाप करना चाहिए।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थात हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बारम्बार प्रणाम है। हे माँ, मुझे सब पापों से आप मुक्ति प्रदान करें।

मां कूष्माण्डा की पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय सुबह 6 बजे से 7 बजे के बीच होता है। देवी को लाल रंग के फूलों को समर्पित करना चाहिए। माता को सूजी से बने हलवे और दही के साथ फल, सूखे मेवे का भोग लगाना चाहिए और श्रृंगार में देवी को रक्त चंदन अर्पित करना शुभ रहता है।

मां कूष्माण्डा का संबंध सूर्य ग्रह से है। इसलिए मां कूष्माण्डा की साधना का संबंध व्यक्ति के स्वास्थ्य, मानसिकता, प्रभावी व्यक्तित्व, रूप- यौवन, विद्या, प्रेम, उदर, भाग्य, और प्रजनन तंत्र से है।

देवी कूष्माण्डा की आराधना से सूर्य और राहू ग्रह की पीड़ा का नाश होता है। साथ ही देवी के आशीर्वाद से संतान सुख भी मिलता है।

देवी कूष्मांडा का मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

देवी कूष्मांडा का ध्यान

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।

सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥

भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।

कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥

पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।

मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥

प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।

कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

देवी कूष्मांडा का स्तोत्र

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।

जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।

चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।

परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥

देवी कूष्मांडा का कवच

हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।

हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥

कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।

दिगिव्दिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजं सर्वदावतु॥

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