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तृतीय नवरात्र : मॉं चंद्रघण्‍टा की पूजन होती है भय से मुक्ति



नवरात्रि के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की आराधना की जाती है मान्यता है कि इस दिन माता की आराधना करने से भक्त भयमुक्त होकर साहस की प्राप्ति करता है। देवी ने महिषासुर का वध कर स्वर्ग को असुरों से मुक्ति दिलावाई थी और स्वर्ग पर वापस देवताओं का राज स्थापित करवाया था। इसलिए देवी की आराधना करने मात्र से भक्त भयहीन होकर साहस और बल की प्राप्ति करता है। माता चंद्रघंटा की पूजा शास्त्रोक्त विधान से करना चाहिए। पूजा-विधान में शारीरिक शुद्धि के साथ मन की पवित्रता का भी खास ख्याल रखना चाहिए। इसके लिए राग-द्वेष से मुक्त होकर देवी चंद्रघंटा की आराधना में लीन रहना चाहिए।

देवी चंद्रघंटा की उपासना में सर्वप्रथम माता को पंचामृत यानी दूध, दही, चीनी, गाय का घी और शहद से स्नान कराएं। फूल, अक्षत, रोली, चंदन, हल्दी, मेंहदी से चढ़ाएं।लाल फल, मिठाई, पंचमेवा, पंचामृत, वस्त्र आदि अर्पित करें। कलश की पूजा करें। अब हाथों में एक लाल फूल लेकर देवी चंद्रघंटा का ध्यान करें और हाथ जोड़ते हुए प्रार्थना करते हुए देवी के इस मंत्र का उच्चारण करें।

देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनि।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।

माता को लाल फूल प्रिय है, इसलिए लाल फूल देवी को अर्पित करें। देवी के सामने धूपबत्ती और घी का दीपक प्रज्वलित करें और माता की दीपक और कर्पूर से आरती करें।

देवी चंद्रघंटा का भोग
देवी चंद्रघंटा को चढ़ाए जाने वाले व्यंजनों में गाय के दूध से बने पदार्थों का प्रावधान है। देवी चंद्रघंटा को गुड़ और लाल सेब बहुत पसंद हैं। इसलिए मां को इन पदार्थों का भोग लगाया जा सकता है। इस दिन मां चंद्रघंटा को गाय के दूध की खीर या मिठाई का भोग लगाकर ब्राह्मणों को दान करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। इस तरह के दान से दुखों के नाश के साथ परमसुख की प्राप्ति होती है।

देवी चंद्रघंटा का ध्यान

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।

सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥

मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।

खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।

मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥

प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।

कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

देवी चंद्रघंटा का स्तोत्र पाठ

आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।

अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥

चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।

धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥

नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।

सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥

देवी चंद्रघंटा का कवच

रहस्यं श्रुणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।

श्री चन्द्रघन्टास्य कवचं सर्वसिध्दिदायकम्॥

बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोध्दा बिना होमं।

स्नानं शौचादि नास्ति श्रध्दामात्रेण सिध्दिदाम॥

कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥

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