द्वितीय नवरात्र : मॉं ब्रह्मचारिणी की पूजा से मंगल ग्रह के दुष्प्रभाव में आती है कमी
नवरात्रि के दौरान देवी अपने नौ स्वरुपों में भक्तों को दर्शन देती है। देवी के इन नौ स्वरूपों की आराधना से भक्तों के सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि का भंडार होता है। नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। शास्त्रोक्त मान्यता है कि देवी ब्रह्मचारिणी माता पार्वती का अविवाहित स्वरूप है। ब्रह्मचारिणी संस्कृत भाषा का शब्द है और इसका अर्थ होता है ब्रह्म के समान आचरण करने वाली देवी। देवी ब्रह्मचारिणी को कठोर तपस्या करने के कारण तपश्चारिणी भी कहा जाता है।
देवी ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र धारण करती है और माता के दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल रहता है। माता का स्वरूप अत्यंत तेज होने के कारण देवी ज्योतिर्मय है। नवरात्रि के दूसरे दिन माता के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा करने से भक्तों में तप, त्याग और संयम में वृद्धि होती है। देवी ब्रह्मचारिणी का संबंध मंगल ग्रह से होता है। देवी की इस आराधना से मंगल ग्रह के दुष्प्रभाव में कमी आती है। इस दिन कन्या पूजन भी किया जाता है। छोटी कन्याओं को मां का स्वरूप माना जाता है। इसलिए इन दिनों में भक्त उनका पूजन कर उनको उपहार देते हैं।
देवी ब्रह्मचारिणी की पौराणिक कथा
पौराणिक आख्यान के अनुसार पौराणिक कथा देवी पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने का प्रण किया और उनसे अपनी इच्छा व्यक्त की। लेकिन उनके माता-पिता को यह रिश्ता किसी भी तरह से पसंद नहीं था। इसलिए वह दोनों इसके लिए तैयार नहीं थे। तब देवी पार्वती ने अपने विवाह के संकल्प के पूरा करने के लिए कामदेव से मदद मांगी। कामदेव देवी पार्वती की इच्छा को पूर्ण करने के लिए तैयार हो गए। भगवान कामदेव ने समाधि में लीन महादेव पर कामवासना का तीर छोड़ा जिसके कारण शिव का ध्यान भग्न हो गया।
कामदेव की इस दुस्साहस पर भोलेनाथ अत्यंत क्रोधित हुए और अपनी तीसरा नेत्र खोलकर क्रोधाग्नि में कामदेव को भस्म कर दिया। इसके बाद देवी पार्वती पहाड़ों पर चली गई और भगवान शिव को पाने के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए कठोर तप किया, जिसके कारण देवी पार्वती ब्रह्मचारिणी कहलाईं। देवी पार्वती ने अपनी तपस्या के दौरान एक हजार वर्षों तक केवल फल खाकर गुजारा किया। सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर केवल वनस्पतियों के सहारे जीवन बिताया। खूले आसमान में धूप, वर्षा और ठंड का प्रकोप सहा।
देवी पार्वती ने की तीन हजार वर्षों तक तपस्या
देवी पार्वती ने तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाकर भगवान शंकर की आराधना की। कुछ दिनों बाद उन्होंने सूखे बिल्व पत्र का भी त्याग कर दिया। इसको लेकर देवताओं को चिंता होने लगी। देवी के कठोर तप ने भगवान शिव का भी ध्यान खींचा। इसके बाद भगवान शिव अपना रूप बदलकर पार्वती के पास गए और अपनी स्वयं की बुराई की, लेकिन देवी ने उनकी बात को अनसुना कर दिया। शिवजी उनके त्याग से प्रसन्न हुए अंत में उनसे विवाह किया।