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दुर्गा शप्‍तशती के पाठ में रखें ये सावधानियां, वरना नहीं मिलेगा पूरा लाभ


नवरात्रि के अवसर पर देवी अपने विभिन्न स्वरूपों में अपने भक्तों को आशीर्वाद देती है और भक्त माता का आशीर्वाद पाकर निहाल होते हैं। इस अवसर पर देवी भगवती की आराधना कई तरीके से की जाती है। इसमें सबसे बेहतर उपाय दुर्गा सप्तशती का पाठ माना गया है। लेकिन दुर्गा सप्तशती के पाठ को करने में कुछ विशेष सावधानियां रखना बेहद जरूरी है। इन नियमों का पालन करने से भक्त पर देवी की कृपा बनी रहती है।

दुर्गा सप्तशती का पाठ प्रारंभ करने के पहले प्रथम पूज्यनीय श्रीगणेश की आराधना करें। यदि कलश स्थापना की गई है तो कलश पूजन करें, अखंड ज्योति जलाई गई है तो उसका पूजन करें और नवग्रह का पूजन करें।

इसके बाद दुर्गा सप्तशती की पुस्तक को आसन पर लाल कपड़ा बिछाकर रखें। पुस्तक को कुमकुम, अक्षत, हल्दी, मेंहदी, अबीर, गुलाल आदि से पूजा करें। इसके बाद अपने मस्तक पर कुमकुम का तिलक लगाकर पूर्व की ओर बैठकर चार बार आचमन करें।

दुर्गा सप्तशती का शापोद्धार है अनिवार्य
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले उसका शापोद्धार करना जरूरी है क्योंकि दुर्गा सप्तशती का हर मंत्र, ब्रह्मा, वशिष्ठ और विश्वामित्र जी द्वारा शापित है। इसलिए शाप के उद्धार के बगैर इसका सही फल प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इसके लिए पहले कीलक स्तोत्र का पाठ करें, कवच और अर्गला स्तोत्र का पाठ करें।

दुर्गा सप्तशती का पाठ का पाठ यदि एक दिन में करने में संभव नहीं हो तो पहले दिन सिर्फ मध्यम चरित्र का पाठ करें और दूसरे दिन बचे हुए दो चरित्र का पाठ करें। या फिर एक, दो, एक चार, दो एक और दो अध्यायों को क्रम से सात दिन में दुर्गा सप्तशती को पूरा करें।

दुर्गा सप्तशती के पाठ से पहले और बाद में नर्वाण मंत्र 'ओं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे' का पाठ अवश्य करें। इस नर्वाण मंत्र का विशेष शास्त्रोक्त महत्व है। इस मंत्र में ऊंकार, मां सरस्वती, मां लक्ष्मी और मां काली के बीजमंत्र हैं। श्रीदुर्गा सप्तशती में श्रीदेव्यथर्वशीर्षम स्रोत का रोजाना पाठ करने से बेहतर बोलने की सिद्धि और मृत्यु पर विजय प्राप्त होती है

हिन्दी में भी कर सकते हैं दुर्गा सप्तशती
दुर्गा सप्तशती का पाठ स्पष्ट उच्चारण में करें, जल्दबाजी और जोर-जोर से पाठ ना करें। शारदीय नवरात्र में मां का स्वरूप उग्र होता है। इसलिए बेहद विनम्र भाव से पाठ करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ संस्कृत में करने में दिक्कत हो तो हिन्दी में भी किया जा सकता है।

दुर्गा सप्तशती के पाठ के पश्चात क्षमायाचना करना आवश्यक है। जिससे जाने-अनजाने में हुए अपराधों से मुक्ति मिल जाए। रोजाना पाठ के बाद कन्या पूजन करना भी आवश्यक है।

दुर्गा सप्तशती के प्रथम, मध्यम और उत्तर चरित्र का क्रम से पाठ करने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इस क्रम को महाविद्या क्रम कहते हैं। दुर्गा सप्तशती के उत्तर, प्रथम और मध्य चरित्र का क्रम से पाठ करने से, शत्रु का नाश होता और लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इसको महातंत्री क्रम कहा जाता हैं।

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