मंदिरमंदिर में ऑंखो के सामने होते है चमत्कार, विज्ञान भी नहीं सुलझा पाया इसका रहस्य में ऑंखो के सामने होते है चमत्कार, विज्ञान भी नहीं सुलझा पाया इसका रहस्य
पुरी का जगन्नाथ मंदिर वैष्णव धर्मावलंबियों के लिए श्रद्धा, आस्था और पूजा का सबसे बड़े स्थलों में से एक है।इस मंदिर में नित्य आयोजन के साथ महत्वपूर्ण तिथि और त्यौहारों पर धार्मिक महोत्सव का आयोजन होता हैं जिसमें देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। मंदिर अति प्राचीन होने के साथ भव्य, विशाल और कई रहस्यों को अपने में समेटे हुए हैं। पौराणिक महत्व के इस मंदिर के रहस्य किसी अजूबे से कम नहीं है और विज्ञान की सीमाओं से भी परे है।
हवा के विपरीत लहराती ध्वजा
मंदिर के शिखर पर स्थापित ध्वजा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराती रहती है। हवाओं की रफ्तार कैसी भी हो ध्वजा का रुख हमेशा उसके विपरीत ही होता है। एक और अचंभित करने वाली बात यह है कि इस ध्वजा को रोजाना बदला जाता है और बदलने वाला भक्त भी उल्टा चढ़कर ध्वजा तक पंहुचता है। मान्यता है कि यदि एक दिन ध्वजा को न बदला जाये तो मंदिर के द्वार 18 साल तक बंद हो जायेंगें।
दुनिया की सबसे बड़ी रसोई
भगवान जगन्नाथ के आश्रय में हजारों श्रद्धालु तृप्त होते हैं । यानी उनके महाप्रसाद यानी उनको समर्पित किए गए भोग से हजारों श्रद्धालु अपनी भूख को शांत करते हैं। श्री जगन्नाथ मंदिर परिसर में स्थित रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है। इसमें एक साथ 500 के करीब रसोइये और 300 के आस-पास उनके सहयोगी भगवान के प्रसाद को तैयार करते रहते हैं।
इस रसोई की एक और खासियत यह है कि प्रसाद पकाने के लिये 7 बर्तनों को एक दूसरे के ऊपर रखा जाता है और प्रसाद पकने की प्रक्रिया सबसे ऊपर वाले बर्तन से प्रारंभ होती है। मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी पर महाप्रसाद तैयार जाता है सबसे नीचे वाले बर्तन का प्रसाद आखिर में पकता है। हैरानी की बात यह है कि मंदिर में प्रसाद कभी भी कम नहीं पड़ता और जैसे ही मंदिर के द्वार बंद होते हैं प्रसाद भी समाप्त हो जाता है।
मंदिर में नहीं सुनाई देती है लहरों की आवाजें
जगन्नाथ मंदिर समुद्र के किनारे स्थित है। मंदिर परिसर के आसपास विशालकाय दहाड़े मारते समुद्र का शोर सुनाई देता है, लेकिन जैसे ही भक्त मंदिर के सिंहद्वार से मंदिर के अंदर प्रवेश करते हैं लहरों का शोर स्वत: ही समाप्त हो जाता है और श्रद्धालुओं को असीम शांति और मन को प्रसन्न कर देने वाला अहसास होता है। मंदिर की दहलीज के बाहर कदम रखते ही फिर से लहरों के शोर की दस्तक आपके कानों को सुनाई देती है।
मंदिर के ऊपर से नहीं गुजरते हैं परिंदे
कहा जाता है कि ऊपर वाले की मर्जी के बगैर ना तो पत्ता फड़कता है ना परिंदा पर मार सकता है, कुछ इसी तरह की बात जगन्नाथ मंदिर में सही सिद्ध होती है। इस मंदिर के ऊपर से कभी भी पक्षी अपनी उड़ान भरते हुए नहीं गुजरते हैं।
मंदिर के ऊपरी हिस्से की परछाई नहीं होती है
मंदिर का एक और अजूबा विज्ञान के नियम-कायदों को चुनौती देता है। नियमानुसार जिस वस्तु पर रोशनी पड़ती है उसकी छोटी या बड़ी छाया बनती जरूर है, लेकिन भगवान जगन्नाथ के मंदिर के ऊपरी हिस्से की परछाई दिन में किसी भी समय नजर नहीं आती है।
हवा भी बदल लेती है अपना रुख
सामान्यत: अक्सर समुद्री इलाकों में हवा का रुख दिन के समय समुद्र से धरती की तरफ होता है जब कि शाम को इसमें तब्दीली आ जाती है वह धरती से समुद्र की ओर बहने लगती है लेकिन भगवान जगन्नाथ के यहां इस नियम के विपरीत काम होता है। और दिन में धरती से समुद्र की ओर व शाम को समुद्र से धरती की ओर हवा का बहाव होता है।