राजा की कुलदेवी लेटकर कर रही है यहॉं खजाने की रक्षा
महाभारत काल में जब राजा नल जुए में छोटे भाई से अपना सारा राजपाट हार गए थे और वे पत्नी को साथ लेकर जाने लगे, तब उनकी कुलदेवी खजाने की रक्षा के लिए किले के दरवाजे के समीप आकर लेट गई थीं। तभी से उनका नाम पसरदेवी पड़ा। शिवपुरी जिले के नरवर इलाके में यह किंवदंती काफी प्रसिद्ध है। किले के मुख्यद्वार पर 12 फीट लंबी और आठ फीट चौड़ी पसरदेवी की मूर्ति की दोनों भुजाओं के नीचे 7-8 फीट गहरा गड्ढा नजर आता है। इसमें सिक्का डालने पर 'खन्न्' की आवाज आज भी आती है, इसलिए इसे धन और खजाने से जोड़ा जाता है। यही इस जगह की सबसे बड़ी विशेषता है। इतिहासकार डॉ. मनोज माहेश्वरी के मुताबिक किले में खजाने से जुड़ी बातें सामने तो आती रही हैं, लेकिन इतिहास से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध बात यह है कि नरवर को तंत्र-मंत्र और जादू की नगरी कहा जाता रहा है। किले पर तांत्रिक पीठ होने के प्रमाण भी मिलते रहे हैं।
पसरदेवी को कछवाहों की देवी कहा जाता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया तो खास अवसर पर यहां नियमित पूजा के लिए आते थे। यही कारण है कि सालभर इस किले और मंदिर में पर्यटकों का आना लगा रहता है। नरवर को ऐतिहासिक नगर का दर्जा दिलवाने के प्रयास भी जारी हैं। 500 फीट ऊंचा नरवर का किला करीब आठ वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। किले के दरवाजे के पास पसरदेवी का मंदिर है। यहां माता की विशाल मूर्ति लेटी हुई अवस्था में है।
औरंगजेब से लेकर सिंधिया का रहा शासन : इतिहासकार अरुण अपेक्षित बताते हैं कि नरवर पर मुगल शासक औरंगजेब, राजपूतों और सिंधिया शासकों ने भी राज किया है इसलिए यहां के किले में समय-समय पर हुए परिवर्तन के निशान भी देखने को मिलते हैं। नरवर में कछवाहों का भी राज रहा है। आल्हाखंड की 52 लड़ाई का भी नरवर गवाह है। नरवर में लोढ़ीमाता का मंदिर, पसर देवी का मंदिर, चौदह महादेव, आठ कुआं और नौ बावड़ी देखने लायक हैं। अपेक्षित के मुताबिक नरवर का किला सनातन, हिंदू, मुस्लिम, जैन संस्कृति का केंद्र भी रहा है। गायक बैजू बावरा भी यहां आए थे।