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पद्मश्री डॉ वाकणकर के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता- डॉ जोशी


 
जन्मशती पर नगर के इतिहास पुरूष का श्रद्धापूर्वक स्मरण
उज्जैन। विक्रम विश्व विद्यालय में पुरात्व विभाग की स्थापना 1965 से हुई। सुप्रसिद्ध इतिहासवेत्ता पुरात्वविद् डॉ विष्णु श्रीधर वाकणकर पहले दिन से ही इस विभिग के सर्वेसर्वा रहे। उन्होंने इतिहास, पुरात्व और संस्कृति के क्षेत्र में बहुत काम किया। वे पद्मश्र से भी सम्मानित हुए। वे उज्जैन के ऐसे सपूत थे जिन्होंने उज्जयिनी की पुरात्व और कला परंपरा के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है “ उक्त विचार लेखक चिन्तक डॉ देवेन्द्र जोशी ने पुरातत्वविद डॉ विष्णु श्रीधर वाकणकर को उनकी जन्मशती (4/5/2019) पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए व्यक्त किए।
डॉ जोशी ने कहा कि उनका  जन्म 4 मई 1919 को नीमच में हुआ था। शिक्षा में अधिक रूचि होने के कारण वे प्राथमिक शिक्षा पूरी कर उज्जैन आ गए। यहीं विक्रम विश्व विद्यालय से एम ए पीएचडी करने के बाद प्राध्यापक बने। उनकी आकस्मिक मृत्यु  3 अप्रैल 1988 को उज्जैन में हुई। उन्हें लोग प्रेम से हरिभाऊ भी कहते थे।वे भारत के एक प्रमुख पुरातत्वविद् थे। उन्होंने भोपाल के निकट भीमबेटकाके प्राचीन शिलाचित्रों का अन्वेषण किया। अनुमान है कि यह चित्र १,७५,००० वर्ष पुरानें हैं। इन चित्रों का परीक्षण कार्बन-डेटिंग पद्धति से किया गया, इसीके परिणामस्वरूप इन चित्रों के काल-खंड का ज्ञान होता है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि उस समय रायसेन जिले में स्थित भीम बैठका गुफाओं में मनुष्य रहता था और वो चित्र बनाता था। सन १९७५ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया।श्री वाकणकर जन्म मध्य प्रदेश के नीमच में हुआ था। वे संस्कार भारती से सम्बद्ध थे, संस्कार भारती के संस्थापक महामंत्री थे। ज्ञात हो कि संस्कार भारती संगठन कला एवं साहित्य को समर्पित अखिल भारतीय संगठन है। इसकी स्थापना चित्रकार बाबा योगेंद्र जी पद्मश्री (2017) ने 1981 में की।
डॉ॰ वाकणकर जी ने अपना समस्त जीवन भारत की सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजने में अर्पित किया। उन्होंने अपने अथक शोध द्वारा भारत की समृद्ध प्राचीन संस्कृति व सभ्यता से सारे विश्व को अवगत कराया। इन्होंने ’सरस्वती नदी भारतवर्ष में बहती थी’, इसकी अपने अन्वेषण में पुष्टि करने के साथ-साथ इस अदृश्य हो गई नदी के बहने का मार्ग भी बताया। इनके शोध के परिणाम सम्पूर्ण विश्व को आश्चर्यचकित कर देने बाले हैं। आर्य-द्रविड़ आक्रमण सिद्धान्त को झुठलाने बाली सच्चाई से सबको अवगत कराने का महत्वपूर्ण कार्य सम्पादित किया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में आने पर उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में सामाजिक और शैक्षिक उत्थान कार्य किया। लगभग 50 वर्षों तक जंगलों में पैदल घूमकर विभिन्न प्रकार के हजारों चित्रित शैल आश्रयों का पता लगाकर उनकी कापी बनाई तथा देश-विदेश में इस विषय पर विस्तार से लिखा, व्याख्यान दिए और प्रदर्शनी लगाई। प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व के क्षेत्र में डॉ॰ वाकणकर ने अपने बहुविध योगदान से अनेक नये पथ का सूत्रपात किया।संस्कार भारती ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए इस महान कलाविद, पुरातत्ववेत्ता, शोधकर्ता, इतिहासकार, महान चित्रकार का जन्म-शताब्दी वर्ष 4 मई 2019 से 3 मई 2020 तक मनाने का सर्वसम्मति से निर्णय लिया है। यह इस विश्व विख्यात कला-साधक को सच्ची श्रद्धाञ्जलि होगी।   

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