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महंगाई बढ़ेगी, रुपया गिरेगा, जानें और क्या होगा ईरान से तेल आयात बैन का असर


अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान से कच्चे तेल के आयात पर आगे किसी देश को कोई छूट नहीं देने का फैसला किया है. अमेरिका के इस फैसले का सबसे ज्यादा असर भारत और चीन पर पड़ने वाला है. इससे भारत के लिए कच्चे तेल की लागत तीन से पांच फीसदी बढ़ जाने की आशंका है. इससे महंगाई बढ़ सकती है और रुपये में गिरावट आ सकती है. आइए जानते हैं कि ईरान से तेल आयात रुकने पर भारत को और क्या नुकसान या फायदे हो सकते हैं.
निर्यात घटेगा
कच्चे तेल की कीमतों में तीन से पांच प्रतिशत की अनुमानित वृद्धि से देश का निर्यात कारोबार प्रभावित होगा. यह बात भारतीय व्यापार संवर्द्धन परिषद (टीपीसीआई) ने कही है. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक परिषद के चेयरमैन मोहित सिंगला ने कहा, 'निर्यात क्षेत्र पर प्रभाव पड़ना तय है क्योंकि सभी तरह के उत्पादन एवं सेवाओं में कच्चा तेल एक मध्यवर्ती सामान की तरह इस्तेमाल होता है. सिंगला का मानना है कि प्रतिबंधों से मिली छूट को खत्म करने से कच्चे तेल की कीमत तत्काल तीन से पांच प्रतिशत बढ़ जाएगी. सिंगला ने कहा कि एक अनुमान के मुताबिक तेल की कीमतों में 10 प्रतिशत की वृद्धि से व्यापार घाटा सात अरब डॉलर बढ़ सकता है. इसके परिणामस्वरूप व्यापार घाटा 5.6 प्रतिशत बढ़ जाएगा और जीडीपी में 0.2 प्रतिशत की कमी आएगी. इससे रुपये पर भी दबाव बढ़ेगा और इसका असर महंगे आयात के रूप में सामने आएगा.
महंगाई बढ़ेगी
कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से महंगाई के फिर से ऊपर की ओर जाने की आशंका बन जाएगी. जानकारों का मानना है कि चुनाव तक तो सरकार किसी तरह से इसके असर को रोक कर रखेगी, लेकिन नई सरकार बनते ही पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा दिए जाएंगे और इसकी वजह से महंगाई भी बढ़ जाएगी. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, चालू खाते का घाटा कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से व्यापार घाटा और चालू खाते का घाटा बढ़ेगा, क्योंकि आयात की लागत बढ़ जाएगी. केयर के मुताबिक अगर कच्चे तेल की कीमतें 10 फीसदी बढ़ जाएं, तो चालू खाते के घाटे में जीडीपी का 0.4 से 0.5 फीसदी तक का इजाफा हो सकता है.
रुपया और गिरेगा
चालू खाते का घाटा बढ़ने से पहले से ही काफी ढलान पर चल रहे रुपये में डॉलर के मुकाबले और गिरावट आ सकती है. आयात बिल बढ़ने से रुपये पर दबाव बढ़ेगा. बुधवार को कारोबार के दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया 32 पैसे गिरकर 69.94 तक पहुंच गया.
खजाने पर ये होगा असर
ईरान से तेल आयात बंद होने की वजह से मिलने वाला महंगा कच्चा तेल सरकारी खजाने पर भी असर डालेगा. यह असर राजस्व और खर्च दोनों पर होगा. राजस्व के मोर्चे की बात करें तो पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने से राज्यों का राजस्व बढ़ेगा, क्योंकि उनका टैक्स कीमत के आधार पर होता है, लेकिन केंद्र के राजस्व पर कोई असर नहीं आएगा, क्योंकि उसे प्रति लीटर निश्चित टैक्स मिलता है. ईंधन पर सब्सिडी खर्च बढ़ जाने से केंद्र सरकार का व्यय बढ़ेगा. केयर ने पहले अनुमान जारी किया था कि इस वित्त वर्ष में एलपीजी पर 32,989 करोड़ रुपये और केरोसीन पर 4,489 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे.
भारत के तेल आयात का 10 फीसदी हिस्सा ईरान से
दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का 80 फीसदी और प्राकृतिक गैस की जरूरत का करीब 40 फीसदी आयात से पूरा करता है. पिछले कुछ वर्षों में घरेलू तेल एवं गैस उत्पादन लगातार घट रहा है. तेल के मामले में भारत चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा आयातक है. साल 2018-19 में भारत ने ईरान से 2.35 करोड़ टन का आयात किया था, जो कच्चे तेल के कुल आयात 22.04 करोड़ टन का करीब 10 फीसदी है.
अब क्या करेगा भारत
साल साल 2018-19 में भारत के लिए ईरान चौथा सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश रहा है. कीमतों और कर्ज सुविधा के लिहाज से भारत को कोई और देश इतनी सुविधा नहीं दे सकता. अमेरिका ने यह रोक ऐसे समय लगाई है, जब भारतीय क्रूड बास्केट (दुबई, ओमान और ब्रेंट क्रूड कीमतों का औसत) की कीमत बढ़ रही है और देश में लोकसभा चुनाव का दौर है. जानकारों का कहना है कि भारत ईरान से अपने तेल आयात में भारी कटौती तो कर सकता है, लेकिन शायद वह 1 लाख बीपीडी (बैरल पर डे) का आयात ईरान से जारी रखे और इसके लिए रुपये में भुगतान सुविधा का लाभ उठा सकता है. यह देश में ऊर्जा सुरक्षा के लिए भी जरूरी है. साथ ही, राजनीतिक लिहाज से देखें तो ईरान का भारत के साथ ऐतिहासिक रिश्ता रहा है और भारत इस संपर्क को बनाए रखने की पूरी कोशिश करेगा.
भारतीय रिफाइनरियों ने पिछले साल नवंबर में अमेरिका द्वारा प्रतिबंध लगाने के बाद से ही ईरान से तेल आयात को करीब आधा कर दिया है. अमेरिका ने छह महीने यानी 2 मई, 2019 तक के लिए इस प्रतिबंध से भारत, चीन, जापान, दक्ष‍िण कोरिया, ताइवान, तुर्की और ग्रीक को छूट दे रखी थी. भारतीय रिफाइनरियां अब अपनी क्रूड जरूरतों को पूरा करने के लिए ओपेक, मेक्सिको और अमेरिका से खरीदारी बढ़ाने की तैयारी कर रही हैं.
पिछले साल नवंबर में अमेरिका ने 8 देशों को ईरान से तेल आयात के बदले अन्य विकल्प तलाशने के लिए 180 दिनों की छूट दी थी, जो 2 मई को पूरी हो रही है. इन आठ देशों में से तीन देश, यूनान, इटली और ताइवान ने पहले ही ईरान से तेल आयात घटाकर शून्य कर लिया है. अन्य पांच देशों में भारत, चीन, तुर्की, जापान और दक्षिण कोरिया शामिल हैं जिन्हें अब ईरान से या तो तेल आयात बंद करना होगा या अमेरिकी प्रतिबंध को झेलना पड़ेगा.  
भारत सरकार ने कहा है कि देश इस झटके से निपटने के लिए तैयार है और रिफाइनरियों को कच्चे तेल की पर्याप्त आपूर्ति बनाए रखने के लिए एक 'मजबूत योजना' बनाई गई है. अमेरिका द्वारा ईरान से तेल आयात पर मिल रही छूट खत्म होने के बाद सोमवार को सेंसेक्‍स 495 अंक लुढ़का जबकि मंगलवार को 80 अंक की गिरावट दर्ज की गई. मंगलवार को सेंसेक्‍स के कारोबार की शुरुआत बढ़त के साथ हुई लेकिन यह बढ़त आखिरी घंटे में टूट गई. कारोबार के अंत में सेंसेक्स 80 अंक गिरकर 38,565 अंक पर आ गया जबकि निफ्टी 19 अंक लुढ़क कर 11,575 के स्‍तर पर बंद हुआ. इस लिहाज से दो कारोबारी दिन में सेंसेक्‍स 575 अंक लुढ़क गया है.

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