ग्रीस में तीन लोगों ने मिलकर दिया एक बच्चे को जन्म
रोम। ग्रीक और स्पेन के डॉक्टरों ने तीन लोगों का डीएनए लेकर एक बच्चे को पैदा करने में सफलता पाई है। हालांकि, इस विवादित आईवीएफ तकनीक से जहां निःसंतान दंपतियों के लिए उम्मीद जगी है, वहीं इसकी नैतिकता को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
डॉक्टरों के हवाले से बताया गया कि चार बार असफल इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) तकनीक के बाद इस नई क्रांतिकारी तकनीक का इस्तेमाल किया गया। 32 वर्षीय ग्रीक महिला ने स्पेनिश डॉक्टरों से नई तकनीक के क्लीनिकल ट्रायल के बारे में सुना था।
बार्सिलोना में मेडिकल टीम ने मैटरनल स्पिंडल ट्रांसफर (MST) नामक एक तकनीक का उपयोग किया। इस तकनीक में मां बनने की इच्छुक महिला के डीएनए को एक डोनर महिला के अंडे में डाल दिया जाता है, जिसे बाद में पिता के शुक्राणु का उपयोग करके निषेचित किया जाता है। तकनीक माइटोकॉन्ड्रिया नामक कोशिका संरचनाओं पर टिका होता है, जो खाद्य स्रोतों को उपयोगी ऊर्जा में बदल देते हैं।
यह प्रक्रिया उन महिलाओं के मौजूदा आईवीएफ उपचारों में मदद करने के लिए विकसित की गई थी, जो माइटोकॉन्ड्रियल बीमारियों से ग्रस्त होती हैं। इसके लिए डोनर महिला के स्वस्थ अंडे में मौजूद न्यूक्लियस को हटा दिया जाता है, और मां के न्यूक्लियस को शामिल किया जाता है। मां के डीएनए का अधिकांश भाग न्यूक्लिसय में होता है, लेकि डोनर महिला के अंडे में डीएनए की थोड़ी मात्रा माइटोकॉन्ड्रिया में रहती है।
ग्रीस के इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ ने एक बयान जारी कर रहा है कि 2.96 किलो के इस बच्चे का जन्म गुरुवार को हुआ। संस्थान के अध्यक्ष डॉ. पनागियोटिस ने कहा, आज दुनिया में पहली बार जेनेटिक सामग्री के साथ मां बनने का एक महिला का अधिकार हकीकत बना है। एक ग्रीक वैज्ञानिक होने के नाते हमें इस अंतरराष्ट्रीय खोज की घोषणा करते हुए खुशी महसूस हो रही है। इस खोज के साथ ही हमने कई बार असफल आईवीएफ तकनीक से गुजर चुकी महिला के लिए एक स्वस्थ बच्चे के जन्म देने को हकीकत बना दिया है।
स्वास्थ्य समाचार वेबसाइट स्टेट न्यूज के अनुसार, टीम ने ग्रीस में इस क्लीनिकल ट्रायल को किया क्योंकि इसे स्पेन में करने की इजाजत नहीं मिली थी। न्यूज वेबसाइट ने जनवरी में महिला के गर्भवती होने की खबर दी थी। इस अध्ययन में 40 साल की उम्र से कम करीब 25 महिलाओं को शामिल किया गया था, जिन पर कम से कम दो बार आईवीएफ तकनीक असफल हो चुकी थी।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर टिम चाइल्ड ने इस तकनीक पर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा कि मैं इस बात से चिंतित हूं कि मरीज के अंडे की जेनेटिक सामग्री को हटाकर डोनर के अंडे में डालने की जरूरत साबित नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि इस तकनीक के जोखिमों के बारे में अभी पूरी तरह पता नहीं है। यह न सिर्फ नैतिकता के लिए बल्कि वैज्ञानिक नजरिए से भी जोखिम भरी साबित होगी।