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विश्वभर में निवासरत भारतीय सूर्य अर्ध्य के साथ ही विक्रम और उज्जैन को याद करते हैं- पारस जैन


 
तीन दिवसीय विक्रमोत्सव का हुआ शुभारंभ, तिथि पत्रक का हुआ विमोचन
उज्जैन। उज्जैन की पहचान महाकाल, शिप्रा, कृष्ण शिक्षा स्थली सम्राट विक्रमादित्य और डॉ. वाकणकरजी के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है। उज्जैन में विक्रमोत्सव प्रारंभ होने के बाद अब नववर्ष गुडी पड़वा पर सूर्य अर्ध्य देने की परम्परा भारत ही नहीं विश्व के अनेक देशों में प्रारंभ हो गई है। विश्वभर में निवासरत भारतीय सूर्य अर्ध्य के साथ ही विक्रम और उज्जैन को याद करते है। यह हम उज्जैन वासियों के लिए गौरव की बात है।
उक्त विचार म.प्र. शासन के पूर्व मंत्री व विधायक पारस जैन ने विक्रमोत्सव के शुभारंभ समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में कही। अशासकीय स्तर पर तीन दिवसीय विक्रमोत्सव का शुभारंभ विधायक पारस जैन, महापौर मीना जोनवाल, वरिष्ठ पत्रकार पं. सूर्यनारायण मिश्रा, डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहीत पूर्व निदेशक महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ, पं. श्यामनारायण व्यास ज्योतिषाचार्य एवं पंचागकर्ता, डॉ नलिनी रेवाड़ीकर अध्यक्ष डॅा. वाकणकर भारती संस्कृति अन्वेषण न्यास द्धारा मां सरस्वती एवं सम्राट विक्रमादित्य के चित्रों पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलित कर किया गया। अतिथियों का स्वागत दिलीप जोशी, दिलीप वाकणकर, पं. गौरव उपाध्याय ने किया। द्वीप प्रज्जवल के उपरांत सरस्वती वंदना स्तुति भागवत ने प्रस्तुत की तथा स्वस्तिवाचन पं. रमेश दुबे ने किया। समारोह की अध्यक्षता करते हुए विक्रमोत्सव आयोजन समिति म.प्र. अध्यक्ष एवं विधायक डॉ. मोहन यादव ने सम्राट विक्रमादित्य और विक्रमोत्सव के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि विश्वविख्यात पुरातत्वविद् डॉ. विष्णु श्रीधर वाकरणकर का यह जन्म शताब्दी वर्ष होने के कारण डॉ. वाकणकर की खोजों पर इस वर्ष के तिथि पत्रक का प्रकाशन किया गया है एवं विक्रमोत्सव में डॉ. वाकणकर न्यास को भी सहभागी बनाया है। सम्राट विक्रमादित्य ९००० वर्षो बाद भी आज प्रांसगिक इसलिए है कि जनता के कष्टों में सबसे पहले राजा आगे है और शासकीय संपदा का सुख व भोग करने में सबसे पीछे यह विक्रमादित्य के सुशासन की विशेषता थी। विक्रमोत्सव प्रांरभ होने के बाद म.प्र. शासन ने सम्राट विक्रमादित्य शोध पीठ की स्थापना की शोध पीठ ने अपने शोध कार्यो के माध्यम से एक नही सौ से अधिक पुरातात्विक प्रमाण (साक्ष्य) एकत्र कर विश्व को बता दिया की विक्रमादित्य उज्जैन के ही सम्राट थे। महान राजा जिसकी न्यायप्रियता, सुशासन व वीरता की गौरवगाथा पूरा विश्व गाता है। अनेक इतिहासकार उसी विक्रमादित्य के अस्तित्व पर ही प्रश्न खड़ा कर रहे थे उनको भी आज विक्रमादित्य को स्वीकारना पड़ रहा है शोधपीठ ने ना सिर्फ साक्ष्यों को खोजा बल्कि पुस्तको के रूप में प्रकाशित भी किया। मूर्धन्य विद्धान डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित का इसलिए उज्जैन सदैव आभारी रहेगा। विक्रमोत्सव को दलगत राजनीति से उपर उठकर अनुमति प्रदान करने पर मुख्यमंत्री, संस्कृति मंत्री, प्रमुख सचिव संस्कृति सचिव निर्वाचन आयोग भी साधुवाद के पात्र है। पं. सूर्यनारायण मिश्रा ने इस अवसर पर कहा कि मैं उज्जैन को प्रदेश ही नही देश की धर्मधानी मानता हॅू यह बहुत ही महान नगरी है हमारा सौभाग्य व पूर्व जन्मों का पुण्य प्रताप ही है कि हमारा जन्म यहॉ हुआ या किसी भी तरह रहने व कार्य क्षेत्र चुनने का अवसर प्राप्त हुआ है तो यहॉ रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य व कर्म बन जाता है कि हम अपनी संस्कृति का संरक्षण करे इसे आगे बढ़ाएं और यह सीमित समय के लिए ना होकर सतत हो। इस अवसर पर महापौर मीना जोनवाल, डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित, पं. श्यामनारायण व्यास ने भी अपने विचार रखे।
प्रतिवर्ष विक्रमोत्सव के अवसर पर एक तिथि पत्रक (केलेण्डर) का प्रकाशन किया जाता है। शिप्रा लोक संस्कृति समिति द्वारा प्रकाशित इस तिथि पत्रक का विमोचन भी समारोह में उपस्थित अतिथियों द्वारा किया गया तिथि पत्रक के कला संपादक राजेश सिंह कुशवाह द्वारा विमोचन करवाया गया। अंत में आभार डॉ. दिलिप वाकणकर सचिव डॉ. वाकणकर न्यास ने माना। संचालन श्री रूप पमनानी ने कीया।

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