श्रीराम के चरित्र के अनुसरण से ही आतंक का अंत संभव
प्रो. बालकृष्ण कुमावत द्वारा रचित ग्रंथ ‘आतंक निर्मूलनं रामराज्ये’ का हुआ विमोचन
उज्जैन। यदि राम राज्य की स्थापना करना हो तो श्रीराम के आदर्शों का अनुशरण करना होगा, आतंक का अंत तभी संभव है जब श्रीराम के चरित्र का अनुसरण करने की रचनात्मक पहल की जाए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जब भी समाज में रावणवृत्ति के हिंसक व्यक्ति या समूह सक्रिय होते हैं, उनका नाश अनिवार्य हो जाता है, श्रीराम ने न सिर्फ राक्षस प्रवृत्ति का नाश किया वरन एक सभ्य, भले और सच्चे लोगों के समाज की स्थापना भी की।
उक्त सार 15 अध्यायों में व्यक्त 378 पेज के प्रो. बालकृष्ण कुमावत द्वारा रचित ग्रंथ ‘आतंक निर्मूलनं रामराज्ये’ का है। जिसका विमोचन शर्मा परिसर में विद्वानों की उपस्थिति में हुआ। विमोचन के प्रारंभ में पद्म विभूषण स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी के आशीर्वाद की पंक्तियां ‘‘आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से आतंकवाद को कैसे समाप्त किया जा सकता है, इसके लिए मेरी दृष्टि में प्रथम बार प्रो. बालकृष्ण कुमावत ने अत्यंत विद्वता के साथ यह प्रस्तुत किया है।’ का वाचन किया। संचालन डॉ. पिलकेन्द्र अरोरा ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. मोहन गुप्त ने की। मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. बालकृष्ण शर्मा तथा विशेष अतिथि साहित्यकार डॉ. शिव चौरसिया, विवि कुलानुशासक डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा थे। कार्यक्रम में सरस्वती वंदना गीतकार ओमप्रकाश निगम द्वारा प्रस्तुत की गई। अतिथियों का स्वागत हेमेंद्र कुमावत, राहुल कुमावत, गोपाल निगम, राकेश, गरिमा कुमावत, प्रतिभा कुमावत, कविता द्वारा किया गया। स्वागत भाषण में प्रोफे. कुमावत ने कहा कि आतंक निर्मूलनं होने से ही रामराज्य की स्थापना होगी जो वर्तमान वैश्विक समय में बड़ी समस्या है। मोहन गुप्त ने कहा कि रामकथा बहने वाला अमृत सरोवर है अपने देश की अस्मिता की रक्षा इस ग्रंथ के माध्यम से 200 वर्ष से होती आ रही है। एक ग्रंथ के आधार पर संपूर्ण समुदाय ने अपनी अस्मिता की रक्षा की। शैलेन्द्र शर्मा ने कहा कि औपचारिक रूप से शोधकार्य होते रहते हैं पर रामकथा आतंक निर्मूलनं महत्वपूर्ण शोध है। डॉ. शिव चौरसिया ने कहा कि ये पुस्तक के अध्ययन के संसार से एक नए स्वर्ग की खोज कर सकता है। प्रो. बालकृष्ण शर्मा ने कहा कि रामकथा को लेकर चिंतन तो बहुत हुआ है लेकिन नए बिंदू फिर भी मिल जाते जैसा कि पुस्तक में हुआ है। इस अवसर पर जीवनसिंह ठाकुर निदेशक प्रेमचंद सृजनपीठ, डॉ. एच.एम. धवन पूर्व प्राचार्य, डॉ. नरेश मेहता मानस मर्मज्ञ, डॉ. डीएम कुमावत प्रोफेसर एवं अध्यक्ष वनस्पति विभाग वि.वि., डॉ. अनुराग टिटोव प्रो. विवि, हाईकोर्ट एडव्होकेट बंसल इंदौर, डॉ. मनदीप शिल्पी दंत चिकित्सक, आभा निगम सदस्य नेशनल जर्नलिस्ट, राजेन्द्र शर्मा गुरू, सीताराम अग्रवाल, स्नेहलता निगम संचालिका श्री कावेरी शोध संस्थान, रमणसिंह सोलंकी, वरूण कुमार, पवन कुमार, शिल्पी, मोहनलाल कुमावत, गोपालकृष्ण निगम, के.पी. सेठिया, राम दवे प्रसिध्द साहित्यकार, सोनोने, डॉ. रंजना व्यास सहित बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी उपस्थित थे। अंत में आभार अनिता कुमावत ने माना।