पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती है होली
उज्जैन। धर्मधानी उज्जयिनी की होली हजारों साल से पर्यावरण का संरक्षण का संदेश दे रही है। इसमें महाकाल मंदिर की होली विशेष है। राजा के आंगन में टेसू के फूलों से बने प्राकृतिक रंग से होली खेली जाती है। वहीं सिंहपुरी की कंडा होली गोवंश व जंगलों को सहेजने के लिए प्रेरित करती है।
ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में राजाधिराज महाकाल भक्तों के साथ होली खेलते हैं। धुलेंडी पर फूलों से बने गुलाल और अबीर का उपयोग होता है। रंग पंचमी पर गीले टेसू के फूल से बने प्राकृतिक रंग से खेली जाती है। इसके लिए पुजारी मंदिर परिसर में टेसू के फूलों से प्राकृतिक रंग तैयार करते हैं।
5 हजार कंडों से होली निर्माण: सिंहपुरी की कंडा होली में 5 हजार कंडों का उपयोग होता है। सिंहपुरी में रहने वाले ब्राह्मण यजुर्वेद के मंत्रों के साथ उपले बनाते हैं। इनका उपयोग होलिका के निर्माण में होता है। कंडों की होली बनाने की कला भी अद्भुत है। इसके तहत कंडों को इस तरह जमाया जाता है कि होलीका बैठी हुई दिखाई देती है। वेदिक ब्राह्मण चार वेदों के अनुसार निर्धारित दिशा में बैठकर महिलाओं से होलिका का पूजन कराते हैं। होलिका का दहन चकमक पत्थर की मदद से किया जाता है।