देश की सबसे प्राचीन इस होली की जाने विशेषताएं, राजा भर्तहरी जलाते थे ये होली....
उज्जैन। बाबा महाकाल की नगरी अवंतिका अर्थात उज्जैयिनी में 5000 हजार कंडो से निर्मित होलिका दहन किया जाएगा। करीब 3000 वर्ष से यहां परंपरागत होलिका दहन किया जा रहा है। इस होली की खास बात ये है कि इसमें लकडी का उपयोग नहीं किया जाता है। होलिका दहन में कपूर, नारियल आदि का दहन किया जाता है। जिसकी अग्नि को सैंकने से बीमारियां दूर रहती है।
भगवान महाकालेश्वर की नगरी उज्जयिनी में सबसे प्राचीन होलिका दहन की परंपरा सिंहपुरी क्षेत्र की है। प्राचीन पांरपरिक यह होली प्राकृतिक संरक्षण की मिसाल है इस प्राचीन होली की एक अलग ही परंपरा है आताल पाताल भैरव महाभैरव क्षेत्र के अंतर्गत सिंहपुरी में 5000 कंडों की होली तैयार की जाती है होली में लकड़ियों का उपयोग नहीं किया जाता है। एक के ऊपर एक साथ गोले बनाकर कंडो की होली सजाई जाती है इसके बाद तड़के चकमक पत्थर से अग्नि प्रज्वलित कर होली का दहन किया जाता है सिंहपुरी की होली को सिंधिया स्टेट के समय से ही सबसे प्राचीन होली का दर्जा प्राप्त है मान्यता है कि राजा भर्तहरी ब्रह्म मुहूर्त में होली जलाते थे प्राचीन धार्मिक परंपरा और प्राकृतिक संरक्षण के तालमेल के बीच धर्म की मर्यादा के पालन का जीवंत उदाहरण देखने को मिलता है सिंहपुरी की प्राचीन होली में सिंहपुरी में होने वाली कंडो की होली की विशेष बात ये है कि करीब 5000 गोबर के कंडे से इस होली का का निर्माण किया जाता है इसमें लकड़ी का उपयोग नहीं किया जाता है होलिका के मध्य में भक्त प्रहलाद की भक्ति और शक्ति के प्रतीक स्वरूप एक लाल ध्वज इस प्रकार स्थापित किया जाता है कि आग की लपटो के कारण जल जाता है और उससे उडने वाली राख को अवेर रखने की मान्यता है। ऐसी मान्यता है कि इसकी राख को ताबिज में डालकर बच्चों को बांधने से वे नकारात्मक उर्जा से दूर रहते है।