कम्प्युटरजी लाल बत्ती छोड़ो या हमसे शास्त्रार्थ करो -आचार्य सत्यम्
उज्जैन। मालव रक्षा अनुष्ठान के संयोजक आचार्य सत्यम् (सत्यनारायण पुरोहित अधिवक्ता) ने नाथ सरकार द्वारा नर्मदा, शिप्रा और मंदाकिनी न्यास के नव नियुक्त अध्यक्ष कम्प्युटर जी को शास्त्रार्थ की चुनौती देते हुए कहा कि विगत् सिंहस्थ के पूर्व शिप्रा शुद्धिकरण की नोटंकी उज्जयिनी में आकर करने के तत्काल पश्चात् उन्होंने मीडिया के साथियों सहित कम्प्युटर जी के गोम्मटगिरी इंदौर ठिकाने पर जाकर शिप्रा सेवा अनुष्ठान के माध्यम से संतों और उनके द्वारा शिप्रा रक्षार्थ की गई कार्यवाहियों के दस्तावेज कम्प्युटर जी को सौंपे थे। कम्प्युटर जी उस समय अपने ठिकाने पर बाबाओं की भीड़ से घिरे बैठे थे और हस्तिनापुर कूच की तैयारी में लगे थे। उन्होंने दस्तावेज पढ़े बिना कह दिया था कि हम दिल्ली में निपट लेंगे। उनका दिल्ली कूच धरा रह गया और सिंहस्थ के दौरान प्रदूषित शिप्रा में नर्मदा-शिप्रा लिंक के नाम पर गोते लगाते रहे, क्योंकि नकली किसान पुत्र और मामा ने उन्हें मना लिया था।
पिछली सत्ता में प्रदेश के मुखिया का नर्मदा के नाम पर भयादोहन कर कम्प्युटरजी ने लाल बत्ती के मोह में आधी कुर्सी राज्य मंत्री दर्जे से प्राप्त कर ली थी। मामा ने उन्हें चुनाव लड़ कर पूरी लाल बत्ती पाने से क्या रोका, कम्प्युटरजी भड़क गये और विपक्षियों के गले में लटक गए। 15 वर्षों से वनवास काट रहे नकली गांधी और शिवभक्त बड़ी मुश्किल से लंगड़ी सत्ता पाकर गलतफहमी में कम्प्युटरजी को कुर्सीदाता समझ बैठे और चौकीदार से डरकर आगामी लोकसभा निर्वाचन के पूर्व उन्हें तीन पौराणिक सरिताओं के शुद्धिकरण का ठेकेदार बना दिया। आचार्य सत्यम् ने बताया कि पिछली सत्ता में लाल बत्ती झपटने के प्रयास में अखाड़ा परिषद् और संत समिति ने उनकी दुर्गति कर नाम के आधार पर ही उन्हें बाबा मानने से इंकार कर दिया था। हम कम्प्युटरजी को बताना चाहते हैं कि विगत् सिंहस्थ में ही अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् और संत समिति ने हमें गाय-गंगा-गौरी और वसुंधरा के पर्यावरण के संरक्षण के लिए आचार्य घोषित किया था तथा हमारे गुरूदेव बाबा हठयोगी, प्रवक्ता अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् ने पत्रकार वार्ता में सिंहस्थ संकल्प 2016 घोषित कर हमें मोक्षदायिनी शिप्रा को आगामी सिंहस्थ पूर्व प्रदूषण मुक्त कर उसका मनोहारी प्राकृतिक श्रृंगार कर उसे देवभूमि भारत की आदर्श नदी बनाने का दायित्व सौंपा था। शिवराज सरकार की तरह नाथ सरकार भी नदियों का अस्तित्व समाप्त करने पर आमादा है और लोकसभा चुनाव के पूर्व उज्जयिनी और प्रदेश की जनता से छल करते हुए सर्वोच्च न्यायालय, एन.जी.टी. तथा भारत शासन के निर्णयों तथा शिवराज सरकार के लिखित वचनों पर आधारित हमारे सत्याग्रहों को अनदेखा कर दलबदलु सत्ताभक्त कम्प्युटरजी को शिप्रा सहित प्रदेश की तीन पौराणिक सरिताओं का ठेकेदार बनाया गया है, जिसका अखाड़ा परिषद् और राष्टींय संत समिति द्वारा समर्थित हमारे संकल्प के आधार पर हम घोर विरोध करते हैं। कम्प्युटर जी न संत है, न नदी और पर्यावरण विशेषज्ञ। वे नालियों और नदियों में अंतर भी नहीं समझते हैं। अस्तु बिना सूचना के उज्जयिनी पधारे और प्रदूषित शिप्रा का अभिषेक कर उसे कपड़े की चुनरी ओढ़ाने का ढोंग करने वाले कम्प्युटर जी को हम शास्त्रार्थ की चुनौती देते हैं। वे तत्काल नृसिंह घाट उज्जयिनी पर पूर्व सूचना देकर शास्त्रार्थ के लिए उपस्थित हों, अन्यथा उनमें लेशमात्र भी संतत्व हो तो सरकारी पद त्याग दें। यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो उन्हें पूरे प्रदेश में हमारा सामना करना होगा।