मंदिर के प्राचीन इतिहास को मिटाया, नई प्रतिमाएं लगाकर समाज से किया धोखा
ततपागच्छ प्रवर समिति के प्रतिनिधि के रूप में पधारे आचार्य श्री हेमचंद्र सागर सूरीश्वर ने ट्रस्ट व प्रतिष्ठा समिति पर उठाया गंभीर प्रश्न, अवंतिपार्श्वनाथ मंदिर में ट्रस्ट द्वारा बनाए अपने ही प्रावधानों का उल्लंघन करने से दानदाता ट्रस्ट व वरिष्ठ आचार्य नाखुश, तपागच्छा परंपरा के मंदिर पर जीर्णोद्धार के नाम मनमानी से उपजा असंतोष, खतरगच्छ गच्छ के आचार्य ने की आस्था को पहुचाई ठेस
उज्जैन। अतिप्राचीन अवंतिपाश्र्वनाथ मंदिर जो देश के विख्यात १०८ पाश्र्वनाथ मंदिर में विद्यमान है। यहां जीर्णोद्धार व पुनः प्रतिष्ठा दौरान हुए कार्यो ने श्वेतांबर जैन समाज में विवाद की स्थिति पैदा कर दी है। मूलनायक प्रभू के आसपास की तीन प्रतिमाओं का उत्पाथन व इसके बाद अवंति पार्श्वनाथ के प्राचीन इतिहास को धूमिल करते हुए यहां नई प्रतिमाएं व चरण पादुका लगाने सहित अन्य कई मामलों को लेकर आचार्य श्री हेमचंद्रसागर सूरीश्वर बंधु बलेडी , आचार्य विश्व रत्न सागर सूरी, ज्योतिष सम्राट आचार्य श्री ऋषभ चंद्र सूरीश्वरजी ने कड़ा एतराज लिया है। तपागच्छीय प्रवर समिति के जरीए मंदिर व्यवस्थापक अवंतिपाश्र्वनाथ तीर्थ मारवाड़ी समाज ट्रस्ट को पहले ही आगाह किया गया था, लेकिन फिर भी एनवक्त पर प्रतिष्ठा समिति व ट्रस्ट प्रबंधन ने मनमानी की। लिहाजा अब ये मामला उन दानदाता ट्रस्टों तक पहुंचा है, जहां से मंदिर जीर्णोद्धार के करोड़ों रुपए दिए गए है।
प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने आए आचार्य हेमचंद्र सागरसूरी ने इन मनमानियों को लेकर अपनी नाराजगी प्रकट की है। उनके अनुसार श्वेतांबर जैन मूर्तिपूजक परंपरा के दो गच्छ , एक तपागच्छा व दूसरा खतरगच्छ। अवंतिपाश्र्वनाथ मंदिर का इतिहास तपागच्छ परंपरा के साथ जुड़ा है । २१ जनवरी २००१ में मंदिर ट्रस्ट ने प्रस्ताव पारित किए थे की जीर्णोद्धार दौरान मंदिर परिसर में कोई नई प्रतिमाएं नहीं लगेगी, किसी साधु-संत आदी के नाम के शिलालेख नहीं लगेंगे साथ ही मूल प्रभू व आसपास की प्रतिमाएं मूल स्थान पर ही रहेगी। लेकिन प्रतिष्ठा दौरान इन प्रावधानों के साथ अन्य अनिवार्य तीर्थ नियमों का खुला उल्लंघन हुआ है। खुद मंदिर ट्रस्ट ने ही अपनी प्रोसिडिंग को नहीं माना ओर खतरगच्छ समुदाय के आचार्य जिन मणीप्रभ सागर सूरी के इशारें में तीर्थ की प्राचीनता को मिटा दिया। जबकी वरिष्ठ जैनाचार्य द्वारा ट्रस्ट से पारित प्रस्ताव व तीर्थ नियमों के पालन की लिखित सूचना पूर्व में ही दी जा चुकी थीं। इस धोखाधड़ी को लेकर तपागच्छ प्रवर समिति के आचार्यो में रोष है और वे अब वे श्रीसंघ के जरीए वैधानिक कार्रवाई की तैयारी कर रहे है।
जो नियम बनाकर दान लिया, उसे बाद में तोड़ा
- अवंतिपाश्र्वनाथ ट्रस्ट ने मंदिर जीर्णोद्धार को लेकर २००१ में प्रस्ताव पारित कर ५ बिंदू तय किए थे। इसी आधार पर देश के नामी ट्रस्ट व दानदाताओं से मंदिर निर्माण में राशि ली गई।
- ये सब कुछ होने व भरोसे में लेने के बाद प्रतिष्ठा से कुछ माह पहले तीन प्रतिमाएं हटाकर अन्यत्र विराजित की। ये प्रतिमाएं तपागच्छ संतों द्वारा प्रतिष्ठित थीं।
- साथ ही नइ प्रतिमा नहीं लगाने का निर्णय हुआ था, जिसका खुला उल्लंघन पर २० से अधिक प्रतिमाएं व उनके नीचे नाम लिखकर स्थापित कर दी गई।
- कल्याण मंदिर की ४४ देहरियों पर ४४ चरण पादुकाएं लगाकर सभी पर खतरगच्छ के आचार्य ने अपने व श्रावकों के नाम अंकित करा दिए।मूर्ति ओर पादुकाओं के शिला लेख में लिखा गया “खतरगच्छ सहस्त्राब्दी“ गौरव वर्ष वाक्य से जिनशाशन के प्रमाणित इतिहास के साथ भी छेड़खानी की गई है ।जबकी मंदिर परिसर में साधु-संत के नाम लिखने की मनाही ट्रस्ट ने खुद तय की थीं।
- जो नियम बनाकर ट्रस्ट ने देशभर के दानदाता व स्थानीय समाजजनों ने जो राशि ली उसमें धोखाधड़ी की गई। प्रतिष्ठा पूर्व ही मालवा तपागच्छ मूर्तिपूजक श्रीसंघ ने अपने आपत्ति पत्र दे दिए थे।
- जिला कलेक्टर से भी इसकी शिकायत की जा चुकी थीं, जिस पर एडीएम ने मौका मुआयना भी किया था। प्रतिष्ठा महोत्सव में तपागच्छ के वरिष्ठ आचार्यों के साथ समान एवम व्यवस्था को लेकर जो अनुचित ओर अयोग्य व्यवहार हुआ , उससे पूरा जैन संघ आहत है । बावजूद मनमानी की जाकर धार्मिक भावनाओं को ठेंस पहुंचाई गई। उक्त जानकारी मालवा महासंघ के विधि सलाहकार महेंद्र सुंदेचा एडवोकेट ने दी।