कम पानी में होने वाली चने की फसल किसानों को मालामाल कर सकती है
उज्जैन। चना एक दलहनी फसल है, जो भारत में मध्य प्रदेश सहित कई प्रदेशों
में बहुतायत से उगाई जाती है। चने में प्रोटीन 24 प्रतिशत, वसा 4.5 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 61 प्रतिशत
तथा 11 प्रतिशत जल पाया जाता है। चने में कैल्शियम, आयरन, राइबोफ्लोवीन, मियासिन भी अल्प
मात्रा में होता है। चना एक पौष्टिक खाद्य पदार्थ है। इसका उपयोग दाल, बेसन, सिका चना आदि के
रूप में किया जाता है। चने की पत्तियों की सब्जी भी लोग बड़े चाव से खाते हैं। चने की पत्तियों में
ऑक्ज़ेलिक एसिड पाया जाता है, जो कि आंत के विकारों को ठीक करता है। चने की फसल एक या दो
पानी में आसानी से उत्पादित की जा सकती है।
उज्जैन जिले में अल्पवर्षा के चलते कृषि विभाग द्वारा किसानों को चना बुवाई की सलाह दी
जा रही है, जिससे कम पानी में अधिक उत्पादन कर मुनाफा कमाया जा सकता है। कृषि वैज्ञानिकों
द्वारा चने की नवीनतम किस्मे जेजी-14 व जेजी-11 के गुणवत्तायुक्त तथा प्रामाणिक बीज बोने के
लिये इस्तेमाल करने की सलाह दी गई है। इसी तरह काबुली चना/डॉलर की किस्म जेजीके-1, जेजीके-2
व जेजीके-3 बोने की सलाह दी गई है।
देशी एवं काबुली चने की अन्य वैरायटियां इस प्रकार हैं- देशी चने में जेजी-6 वैरायटी ले सकते
हैं। प्रति हेक्टेयर 20 से 21 क्विंटल उत्पादन देने वाली यह किस्म 113 दिनों में पक जाती है। इसी
तरह जेजी-12, जेकी-9218, जेजी-63, जेजी-412, जेजी-130 वैरायटियां भी ले सकते हैं। सभी वैरायटी
प्रति हेक्टेयर 18 से 20 क्विंटल तक उत्पादन देती हैं। इनमें जेजी-412 90 से 100 दिनों में जेजी-
130 व जेजी-63 110 से 120 दिनों में पक जाती हैं। देशी चने की इन सभी वैरायटी में असिंचित या एक सिंचाई की जरूरत होती है। देर से बोने पर जेजी-14 व जेजी-412 उपयुक्त है। जेजी-63
विभिन्न रोगों में प्रतिरोधी होती है।
इसी तरह काबुली चने की वैरायटीज में भी सुझाव दिये गये हैं। एक या दो सिंचाई में काबली
चने की जेजीके-5, आरवीएसजीकेजी-102, आरवीकेजी-101, आरवीजी-201, जेजीके-2, जेजीके-3 नामक
वैरायटिज अधिकतम 121 दिनों में पक जाती हैं। उत्पादन प्रति हेक्टेयर 12 से 19 क्विंटल तक
मिलता है। जेजीके-5, आरवीएसजीकेजी-102 तथा आरवीजी-201 बड़े दाने वाली वैरायटी है।
बुवाई पूर्व बीजोपचार
कृषि वैज्ञानिकों द्वारा बताया गया है कि बोवाई के पूर्व किसान बीज को फफूंदनाशक दवा
थायरम एवं कार्बेंडाजिम 2:1 के अनुपात में अथवा कार्बोक्सिन 2 ग्राम प्रतिकिलो बीज की दर से
उपचारित करने के बाद राइजोबियम कल्चर 5 ग्राम प्रतिकिलो बीज की दर से उपचारित किया जाना
चाहिये। चने की बोवनी कतारों में सीडड्रील मशीन से की जाये। कीटव्याधियों की रोकथाम के लिये ‘टी’
आकार की खूंटियां लगाई जाये। साथ ही चना व धना 10:2 की अन्तर्वतीय फसल लगाई जाना चाहिये।
आवश्यकता होने पर रासायनिक दवा इमामेटिन बोल्जोइट 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग
की जाये।