उत्तम आर्जव धर्म के साथ बना पर्यूषण महापर्व का तीसरा दिन
धर्म धारण नहीं किया जाता, धर्म अनादि है, लेकिन अधर्म को छोड़ा जा सकता है- ब्रह्मचारिणी प्रभा दीदी
सुख समृद्धी वैभवता के लिए व्यक्ति को सरल स्वभावी होना चाहिए आर्जव धर्म सरल स्वभावी की सीख
आर्जव का काम कपट को मिटाना और कपाट को खोलना होता है। जो व्यक्ति सरल स्वभावी होता है जिसके मन में कपट नही होता है उसके घर में लक्ष्मी का वैभव का वास होता है वह व्यक्ति संसार में पूजा जाता है। मुख के मीठे और दिल के कडवे लोग को कोई पसंद नही करता। जिन्दगी में सबकुछ कर लेना मगर कभी छल मत करना। यदि आपने किसी से हाथ मिलाया है तो दिल भी मिलाना। अग्नि और जल शुद्ध करने की चीजें हैं जल से भी वस्तु को शुद्ध किया जाता है तो अग्नि से भी शुद्ध किया जाता है। अग्नि के साक्षी होके अटुट बंधनो में बंधा जाता है। बंधनो को अटुट ही रहने देना। विश्वास करना सिखना, विष्वासघात मत करना। कभी अपनो को धोखा मत देना नही तो व्यक्ति से अपनापन ही खत्म हो जाएगा।
यह बात पर्यूषण महापर्व के तीसरे दिन उत्तम आर्जव धर्म पर प्रवचन देते हुए ब्रह्मचारिणी प्रभा दीदी ने कही। समाज के सचिव व मीडीया प्रभारी सचिन कासलीवाल के अनुसार पर्यूषण महापर्व का तीसरा दिन उत्मम आर्जव धर्म के साथ प्रारंभ हुआ जिसमें शिविरार्थीयों ने सुबह 5ः30 बजे ध्यान भगवान की भक्ति, अभिषेक, शांतीधारा नितनियम की पूजा 10 लक्षण धर्म की पूजा उत्तम मार्धव धर्म का जाप किया। तत्पश्चात प्रवचन देते हुए प्रभा दीदी ने कहा कि उत्तम आर्जव धर्म को अपने जीवन में चरितार्थ करना। आपने कहा कि धर्म अनादि होता है उसे धारण नहीं किया जा सकता धर्म एक व्यवस्था है, धर्म एक सिद्धांत है, धर्म एक आस्था है और धर्म अनादि है। हां लेकिन अधर्म को शीघ्र अति शीघ्र छोड़ देना चाहिए। अधर्मीता से ही जीवन की दिशा भटकती है। विद्या के क्षेत्र में यदि बात की जाए तो प्राचीन काल से ही विद्या चरणों में बैठकर प्राप्त की जाती थी। जिस प्रकार रावण से लक्ष्मण को जब विद्या लेनी थी तो वे श्रीराम के कहने पर रावण के पास पहुंचे और उन्होंने विद्या ग्रहण कराने का आग्रह किया लेकिन रावण ने उनको विद्या देने से मना कर दिया। तब लक्ष्मण जी ने अपने बड़े भाई श्री राम से जा कर कहा कि रावण मुझे विद्या नहीं देंगे वह बहुत घमंडी है तो श्रीराम ने पूछा कि तुम ने विद्या ग्रहण करने के लिए किस प्रकार आग्रह किया तो लक्ष्मण जी ने बताया कि मैंने उनसे बड़े विनम्रतापूर्वक सर के पास बैठकर कान में विद्या ग्रहण करने का आग्रह किया था। तभी श्री राम ने समझते हुए लक्ष्मणजी को समझाया कि विद्या कभी सर पर बैठ कर नहीं ली जाती है। वही परंपरा आज भी जीवित है विद्या प्राप्त करने के लिए गुरु की शरण ही लेना होती है। शिविरार्थियों की सम्पूर्ण व्यवस्था तपोभूमि ट्रस्ट के अध्यक्ष अशोक जैन चायवाला, राजेन्द्र लोहाडिया, धर्मेन्द्र सेठी, सुबोध जैन, हंसराज जैन, हेमंत गंगवाल, सुधिर चांदवाल, ओम जैन, देवेन्द्र जैन, संजय जैन, सुनील जैन, विमल जैन, भूषण जैन, पवन बोहरा, इन्दरमल जैन, रमेश जैन, एकता ज्वेलर्स, फूलचंद छाबड़ा, सोहनलाल जैन, वीरसेन जैन, विजया जैन, सुशीला कासलीवाल, प्रज्ञा कला मंच की महिलाएं एवं प्रज्ञा पुष्प की बालिकाओं द्वारा की गई। आज मंगलवार को उत्तम शौच-सत्य धर्म की पूजा सभी दिगम्बर मंदिरो में की जाएगी।
आर्जव धर्म से मिलती है सफलता- प्रसन्न ऋषि महाराज
आचार्य प्रसन्न ऋषि महाराज के सानिध्य में दिगंबर जैन मंदिर बोर्डिंग में सोमवार को आर्जव धर्म की पूजा विधि विधान से संपन्न हुई। दोपहर में तत्वचर्चा के साथ शाम को महाआरती हुई। आचार्यश्री ने अपने प्रवचन में आर्जव धर्म का महत्व समझाते हुए कहा कि जो मनुष्य सच्चा होता है, धर्म का पालन निरंतर करता है, जो व्यक्ति सरल होता है, विनम्र होता है, उसको प्रायः हर वस्तु बहुत आसानी से प्राप्त हो जाती है। उसको अधिक मेहनत करने की आवश्यकता नहीं होती उस पर सभी का विश्वास अटूट होता है। आर्जव धर्म हमें सरलता की ओर ले जाता है जिससे सफलता के मार्ग प्रशस्त हो जाते हैं।