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शिप्रा संगोष्ठी में का समापन


शिप्रा नदी को प्रवाहमान बनाने में हम सबका समर्पण होना आवश्यक

शिप्रा नदी के आसपास तालाबों का निर्माण करवाना चाहिये

      उज्जैन । नृत्याराधना नृत्य मन्दिर संस्थान द्वारा आयोजित सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यक्रम समागम के द्वितीय दिन कालिदास अकादमी परिसर स्थित पं.सूर्यनारायण व्यास संकुल में रविवार 27 अगस्त को पूर्वाह्न में मोक्षदायिनी मां शिप्रा ‘कल आज और कल’ विषय पर शिप्रा संगोष्ठी का आयोजन सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम पूर्व संभागायुक्त डॉ.मोहन गुप्त की अध्यक्षता तथा अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्री अवधेशपुरी महाराज के आतिथ्य में सम्पन्न हुई। संगोष्ठी में डॉ.मोहन गुप्त ने कहा कि शिप्रा नदी को प्रवाहमान बनाना बहुत जरूरी है। इसके लिये हम सबका समर्पण होना आवश्यक है। शिप्रा के जल को शुद्ध रखने के लिये शहर के गन्दे नालों को मिलने से रोकना होगा। शिप्रा नदी के आसपास अधिक से अधिक तालाबों का निर्माण करवाया जाये, ताकि बरसात के पानी को संरक्षित कर उस जल के रिसने से शिप्रा नदी प्रवाहमान हो सकेगी।

      पूर्व संभागायुक्त डॉ.मोहन गुप्त ने कहा कि स्थानीय स्तर पर शिप्रा नदी के बारे में सोचना पड़ेगा, कार्य योजना बनाना पड़ेगी, उन्होंने कहा कि स्मार्ट सिटी बनाने के बजाय शिप्रा नदी के प्रवाहमान बना दी जाये। यही सबसे बड़ी स्मार्ट सिटी होगी। डॉ.गुप्त ने कहा कि शिप्रा नदी के प्रवाहमान एवं जल की शुद्धता के लिये हमें संकल्प और यात्राएं निकालने से काम नहीं चलेगा। गन्दगी करने वालों पर दण्ड का सख्ती से प्रावधान होना चाहिये। शिप्रा के बारे में हमें गंभीरता से सोचना पड़ेगा। दण्ड से ही समस्याओं का सुधार होगा वरना कभी सुधार नहीं होगा।

इस अवसर पर डॉ.अवधेशपुरी महाराज ने कहा कि डॉ.मोहन गुप्त की बात पर सहमति जताते हुए कहा कि न्याय व्यवस्था ठीक होना चाहिये। गलती के लिये सख्ती से दण्ड का प्रावधान होना जरूरी है। हमारे देश की उदारवादी से कहीं न कहीं अनुशासनहीनता दिखाई देने लगी है। उन्होंने कहा कि पुराणकाल में नदियां कल-कल छल-छल बहती थी और उनके किनारे बैठकर साहित्यकारों, रचनाकारों आदि के द्वारा स्तुतियां, गुणगान कर अपने आपको सुकून महसूस करते थे। पानी न गिरने के भी कारण बताते हुए कहा कि अधिक से अधिक पौधारोपण का कार्य किया जाकर उन्हें बड़ा किया जाये, ताकि पर्यावरण बना रहे। इन्द्र को मनाने के लिये गाय के दूध से बने घी से पुराने जमाने में यज्ञ करते थे और वह परम्परा अब धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है, इसलिये हमें गौरक्षा पर भी अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये। उन्होंने जनसमुदाय से आव्हान किया कि शिप्रा नदी के किनारे के अलावा अपने आसपास अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगायेंगे तो पर्यावरण का संतुलन बना रहेगा।

 

 

संगोष्ठी के प्रमुख प्रवक्ता डॉ.शैलेन्द्र पाराशर ने शिप्रा नदी एवं उज्जयिनी की गाथा का वर्णन करते हुए कहा कि उज्जयिनी की पहचान भगवान महाकाल एवं मां शिप्रा नदी से विख्यात है। शिप्रा नदी में प्रत्येक बारह वर्षों में देश-विदेश से करोड़ों लोग मोक्षदायिनी मां शिप्रा नदी में अमृत्व प्राप्त करने के लिये स्नान करने आते हैं। शिप्रा नदी के पानी को प्रदूषणरहित बनाने और शिप्रा नदी के प्रवाहमान बनाने में हम सबकी सहभागिता बहुत आवश्यक है। उन्होंने जल का महत्व जीवन से बड़ा बताया और जल नहीं तो जीवन अधूरा है। डॉ.बालकृष्ण शर्मा ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शिप्रा नदी का जल निरन्तर बहता रहे, यही हमारा सबका ध्येय होना चाहिये। नदियों को बचाने में हम सब निरन्तर प्रयास करें। शिप्रा नदी उज्जैनवासियों के लिये जान है। शिप्रा के जल से स्नान करने से इंसान को मुक्ति प्राप्त होती है। शिप्रा नदी के नाम लेने से ही मुक्ति मिल जाती है, ऐसा पुराणों में उल्लेख है। शिप्रा का अर्थ बताते हुए कहा कि द्रूत गति से चलने वाली नदी है शिप्रा। शिप्रा का नाम सार्थक है। यह नदी पापों का नाश करती है। इंसान की मानसिक शुद्धि तीर्थस्थल के किनारे बहने वाली नदियों से है। आपने बताया कि 50 वर्ष पहले भी शिप्रा नदी को शुद्धिकरण करने की बातें चलती थीं, पर 50 वर्ष पूर्व और आज में बहुत अन्तर हो गया है। आज जो विकार उत्पन्न हुआ है वह मनुष्य के द्वारा ही हुआ है। अब जागरूकता का समय आ गया है कि हमारे पर्यावरण को संरक्षित एवं सुरक्षित रखा जाये। जलाशयों, प्राकृतिक संसाधनों का शोषण इंसान न करे, बल्कि उसे सहेजकर रखे। नदियों में अपशिष्ट को रोकना होगा। नदियों को दूषित करना इंसान बन्द कर दें, तभी नदियां शुद्ध रहेंगी।

संगोष्ठी कार्यक्रम में श्री श्रीपाद जोशी ने भी अपने महत्वपूर्ण विचार व्यक्त करते हुए शिप्रा नदी की गति के बारे में हमें संवेदनशील होना पड़ेगा। उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति से आव्हान किया कि प्रकृति के साथ हमें आत्मीयता रखना होगी। सरकारी तंत्र पर निर्भर न होकर समाज के प्रत्येक व्यक्ति की सहभागिता होना आवश्यक है। श्री दिवाकर नातू ने कार्यक्रम के आयोजकों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए शिप्रा नदी के बारे में जो साहस किया है वह प्रशंसनीय है। जो साहस करता है, वहीं आगे बढ़ता है। उन्होंने कहा कि चरेवेती-चरेवेती, चलते चलो चलते चलो लिया गया लक्ष्य पूरा होगा। श्रीमती राजश्री जोशी ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथियों के द्वारा वागदेवी के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन कर पूजन-अर्चन किया। अतिथियों का स्वागत संस्था की संचालिका सुश्री खुशबू पांचाल ने पुष्पगुच्छ और शिप्रा के जल का अमृत कलश भेंट कर सम्मानित किया। कार्यक्रम के अन्त में आभार संस्था की संचालिका सुश्री खुशबू पांचाल ने प्रकट किया और शाल भेंटकर संगोष्ठी का समापन सम्पन्न हुआ।        

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