चरित्र शुद्धि विधान में समर्पित किये 1234 अर्घ
1234 उपवास करने वाला का अनूठा विधान प्रदेश में पहली बार हुआ-आचार्य प्रसन्न ऋषि महाराज ने लिया 1234 उपवास का संकल्प
उज्जैन। श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर बोर्डिंग में आचार्य प्रसन्न ऋषि महाराज के सानिध्य में मंगलवार से चरित्र शुद्धि विधान प्रारंभ हुआ। जिसमें शामिल होने हेतु देश भर से लोग यहां आए हैं। चरित्र शुद्धि विधान में 1234 अर्घ समर्पित किए जा रहे हैं इन अर्घो में मंत्रोच्चार के साथ समर्पित किए जाते हैं जिसमें अष्ट द्रव्य का उपयोग करते हुए 1234 श्रीफल भी समर्पित किए। चरित्र शुद्धि विधान उज्जैन में ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश में भी पहली बार किया जा रहा है।
सामाजिक संसद सचिव सचिन कासलीवाल के अनुसार सकल दिगंबर जैन समाज जैन बोर्डिंग एवं समिति द्वारा श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर बोर्डिंग में किया जा रहा विधान मंगलवार प्रातः 7.30 बजे से ही प्रारंभ हुआ। जिसमें सर्वप्रथम श्रीजी का अभिषेक, शांतिधारा हुई। विधान अष्टद्रव्य से किया जा रहा है। आचार्यश्री ने अपने प्रवचन में विधान की महत्वता को बताते हुए कहा कि जहां तक संसार में जीने का प्रश्न है तो वह चरित्र के बिना हो ही नहीं सकता है। राग द्वेष तक दूर नहीं हो सकता जब तक चरित्र को धारण नहीं किया जाए। अतः मनुष्य को चरित्र धारण करना उतना ही आवश्यक है जितना जीवन में इच्छुक को आहर करना। इस घोर कलिकाल में इस चरित्र की ही उपेक्षा की जा रही है और इस कलि काल की भीषणता तब और बढ़ जाती है जब चरित्र को संसार का पतन का कारण बताया जाता है। चरित्र को अधर्म कहना संसार में गलत बताना भ्रामक प्रचार करना गलत है। आज आवश्यकता इस बात की है कि अंधों की आंखों में धूल झोंकने वाले इन कली प्रचारकों से जन साधारण को जागृत किया जाए और इसका एक ही उपाय है कि जनता को इस प्रकार का साहित्य दिया जाए जिससे वह मार्गदर्शन कर सके और चरित्र का निर्माण कर अपना और अपने समाज का उद्धार कर सकें। चरित्र मार्ग पर चलकर ही एक साधारण मनुष्य भगवान बन सकता है चरित्र का होना अति आवश्यक होता है।
1234 होंगे उपवास, किसी ने 200 किये तो किसी ने 500
इस विधान में जो व्यक्ति चरित्र शुद्धि विधान करता है उसको 1234 उपवास की व्यवस्था जमाना पड़ती है इन उपायों को विधि पूर्वक करना होता है एवं संपूर्ण विधि विधान से इन उपायों को करना होता है। आचार्य प्रसन्न ऋषि महाराज ने भी 1234 उपवास करने का एक संकल्प लिया है। मंगलवार को उसका पहला दिन था। इस विधान में बैठे लगभग सभी लोगों का 1234 उपवास किया जाना है यह उपवास निर्जल किया जाता है। इसमें बैठे हुए लगभग संपूर्ण लोगों का उपवास चल रहा है किसी के दो सौ तो किसी के 500 तक उपवास हो चुके हैं और किसी के लगभग पूर्ण उपवास होने जा रहे हैं।
पूर्व विधान के समय रहते हैं निर आहार
इस प्रकार का विधान बहुत ही समय बाद किया जाता है क्योंकि यह विधान एक बहुत बड़ा विधान है जिसमें बहुत समय लगता है एवं श्रावकों को पूर्ण विधान के समय निर आहार रहना पड़ता है इसी के अंतर्गत मुनि श्री एवं माताजी पूरा दिन आहार नहीं करते हैं। संपूर्ण समाज के बीच में इस प्रकार का विधान पूजा के साथ साथ आकर्षण का केंद्र भी रहा जिसको देखने के लिए संपूर्ण समाज उमड़ पड़ा।