‘हुजूर-ए-आला‘ मालवा का मैला आँचल
उज्जैन। व्यंग्यकार डाॅ. शिव शर्मा के उपन्यास हुजूर-ए-आला में रियासतकालीन परिवेश को हुबहू प्रस्तुत किया गया है। जिसे पढ़ने पर लय और पठनीयता बनी रहती है। उपन्यास हुजूर ए आला मालवा का मैला आँचल है, जिसमें मालवा का समूचापन है। इस उपन्यास में व्यंजनायें गहरी हैं।
ये विचार अखिल भारतीय टेपा सम्मलेन और साहित्य मंथन द्वारा प्रेस क्लब में आयोजित हरिशंकर परसाई जयंती प्रसंग पर भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित उपन्यास ‘हुजूर-ए-आला‘ पर चर्चा करते हुए आचार्य डाॅ. शैलेन्द्र शर्मा ने व्यक्त किये। चर्चा करते हुए डाॅ. पिलकेंद्र अरोरा ने कहा कि हुजूर-ए-आला में उपन्यास विधा की सारी शैलियों का प्रयोग हुआ है। उपन्यास वार्तालाप के माध्यम से आगे बढता है और संवाद रोचक, रंजक और चुटीले हैं। मुख्य अतिथि डाॅ. प्रमोद त्रिवेदी ने कहा कि एक लेखक की पहचान यह है कि उपन्यास में पाठक यथार्थ ढूंढे और इस कोण से उपन्यास सार्थक है। शैली की दृष्टि से हुजूर-ए-आला सटीक उपन्यास है। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में परसाईजी को याद करते हुए डाॅ. शिव शर्मा ने कहा कि आजादी के बाद परसाई ने ही व्यंग्य को स्थापित किया और व्यंग्य आज लोकप्रिय है क्योंकि व्यंग्य व्यक्ति पर नहीं प्रवृति पर प्रहार करता है। स्वागत भाषण सुरेन्द्र सर्किट ने दिया। अतिथि स्वागत टेपा सम्मलेन के सचिव मनीष शर्मा, योगेश शर्मा, साहित्य मंथन के महासचिव मुकेश जोशी, डाॅ. संदीप नाडकर्णी, प्रशांत सोहले, रमेशचंद्र शर्मा, राजेंद्र नागर आदि ने किया। आयोजन में श्रीराम दवे, डाॅ. अरुण वर्मा, शरद शर्मा, डाॅ. देवेन्द्र जोशी, डाॅ. जफर महमूद, डाॅ. क्षमा सिसोदिया, डाॅ. अभिलाषा शर्मा, डाॅ. उर्मी शर्मा, अनिल कुरेल, सत्यनारायण उपाध्याय, मुकेश व्यास, राजेश सक्सेना, डाॅ. रफीक नागोरी, जगदीश पंड्या, डाॅ. जगदीश शर्मा, डाॅ. निखिल जोशी, महेश सोनी सहित सुधि साहित्यकार उपस्थित थे। संचालन साहित्य मंथन के अध्यक्ष डाॅ. हरीशकुमार सिंह ने किया और आभार डाॅ. स्वामीनाथ पाण्डेय ने माना।