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प्रगति के लिए ज्ञान और कर्म को परिष्कृत एवं प्रखर बनाना पड़ेगा- लेवे


 
उज्जैन। ज्ञान और कर्म के आधार पर ही मनुष्य की गरिमा का विकास हुआ है, उसकी प्रगति पूर्णता की दिशा में उतनी ही तीव्र गति से होती है, इसको याद रखने के लिए भारतीय संस्कृति के दो प्रतीक हैं- एक ज्ञान ध्वज शिखा दूसरा यज्ञोपवीत-कर्तव्य-मर्यादा, जिसमें मनुष्य को आगे और पीछे से पूरी तरह कस दिया गया है। 
यह बात रमेशचंद्र लेवे ने गायत्री परिजनों को श्रावणी उपाकर्म कराते हुए बताई। अपने चाहने, सोचने, करने में कोई विकार आया हो तो उसे हटाने तथा नई शुरूआत करने के लिए हेमाद्रि संकल्प भी कराया। गायत्री शक्तीपीठ पर श्रावण पूर्णिमा के पर्व पर आयोजित श्रावणी उपाकर्म में 35 से परिजन शामिल हुए। परिजनों ने विशिष्ट कर्मकांड के तहत, हेमाद्री संकल्प के बाद, दस स्नान, पंचगव्य पान, शिखा सिंचन, यज्ञोपवीत नवीनीकरण, किए। गायत्री यज्ञ के बाद परस्पर पवित्र-दिव्य स्नेह में बंधने के लिए रक्षासूत्र बंधन के बाद तथा रोपे जा रहे पौधों को वृक्ष बनाने का संकल्प लिया।

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