मलेरिया से सुरक्षित रहने के लिये बचाव ही सर्वश्रेष्ठ उपाय
उज्जैन। बारिश के मौसम में मलेरिया का प्रकोप होता है। मलेरिया ठण्ड लगकर
बुखार आने वाली बीमारी है। यह बीमारी संक्रमित मादा एनाफिलिज मच्छर के काटने से फैलती है।
एनाफिलिज मच्छर मुख्य रूप से जल-जमाव वाले स्थानों जैसे- धान का खेत, तालाब, गड्ढे, पाइप,
कृत्रिम जलाशय, छत पर रखी पानी की टंकी, जल इकट्ठा करने के लिये बनाई गई पानी की टंकी,
हैण्डपम्प, नल के आसपास जमा पानी, पशुओं के पानी पीने के होद, नहरें व रूका हुआ पानी, कूलर,
टूटे-फूटे टायरों आदि में उपस्थित जल में पैदा होते हैं। इन सबको हटाकर मलेरिया से सुरक्षित रहा जा
सकता है।
उल्लेखनीय है कि जब मादा एनाफिलिज मच्छर किसी मलेरिया के रोगी को काटती है, तो
उसके खून में उपस्थित परजीवी को अपने शरीर में खींच लेती है। यहां परजीवी का 10 से 14 दिन
तक विकास होता है और इसके बाद जब यह मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो अपने
शरीर में पल रहे मलेरिया परजीवी को उसके शरीर में छोड़ देता है। मलेरिया परजीवी मनुष्य के खून में
लाल रक्त कणों में वृद्धि करता है और मनुष्य बुखार से ग्रसित हो जाता है। मलेरिया के लक्षणों में
प्रमुख रूप से तेज ठण्ड लगकर बुखार आना, बदन दर्द, उल्टी होना, बुखार 102 से 104 डिग्री
फैरेनहाइट तक पहुंच जाना आदि शामिल हैं। मरीज का यदि जल्दी एवं समुचित उपचार नहीं किया
गया तो मलेरिया रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।
किसी भी तरह का बुखार आने पर तुरन्त खून की जांच कराकर मलेरिया की पहचान करना
चाहिये। मलेरिया पॉजिटिव होने पर समुचित उपचार करवाया जाये। मच्छरों को पैदा होने से रोकने के
लिये पानी की टंकियों एवं बर्तनों को अच्छी तरह ढंककर रखें। जहां जल-जमाव है, वहां मिट्टी का तेल
या जला हुआ ऑयल सप्ताह में एक बार अवश्य डाल दें। लार्वाभक्षी मछली गंबुशिया स्थायी जल-जमाव
वाले कुए एवं तालाबों में छोड़ दें। कूलर-फ्रीज आदि से पानी निकालकर सूखा लें। घर में अन्दर एवं
बाहर कीटनाशक का छिड़काव करवायें, मच्छरदानी के अन्दर सोयें। साथ ही उपचार के समय यह
सावधानी रखी जाये कि मलेरिया की दवा खाली पेट न ली जाये।