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महाकाल की नगरी उज्जैन, मूर्तिकला का सबसे बड़ा केंद्र बनने जा रही है



महाकाल की नगरी उज्जैन, मूर्तिकला का सबसे बड़ा केंद्र बनने जा रही है। नींव रखने को महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ ने दुनियाभर के मूर्ती शिल्पकारों को आमंत्रण भेजा गया है। आग्रहपूर्वक कहा है कि ‘उज्जैन आइए, मूर्ति बनाइए और मानदेय पाइए'। आपकी बनाई मूर्ति को वक्त आने पर ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के नवविस्तारित क्षेत्र महाकाल महालोक, वीर भारत संग्रहालय सहित भिन्न पर्यटन स्थलों पर स्थापित किया जाएगा।

आपकी कला से स्थानीय कलाकारों को नया सीखने को मिलेगा। इससे रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।’ आमंत्रित सभी कालाकार 7 मार्च से संभागीय हाट बाजार में मूर्तियां बनाना प्रारंभ कर सकेंगे। इसी दिन यहां शिल्पकला कार्यशाला का शुभारंभ होगा। कार्यशाला, निरंतर जारी रहेगी।

शोधपीठ के निदेशक श्रीराम तिवारी ने बताया कि मूर्ति शिल्पकारों को मूर्ति बनाने में उपयोगी सामग्री शोधपीठ उपलब्ध कराएगी। मूर्ति बनाने के एवज में उन्हें मानदेय भी दिया जाएगा।
याद रहे कि किसी भी देश के विकास में कला का महत्वपूर्ण योगदान होता है। भारतीय मूर्तिकला आरम्भ से ही यथार्थ रूप लिए हुए है जिसमें भगवान और मानव आकृतियों को संवेदनापूर्ण रूप में शिल्पांकित किया जाता है।
मूर्ती कला भावनाओं को व्यक्त करने, कहानी बताने, सिखाने का सशक्त माध्यम मानी गई है। मूर्तिकला त्रि-आयामी कला कृति है जिसे ऊंचाई, चौड़ाई और गहराई के आयामों में भौतिक रूप से प्रस्तुत किया जाता है।
टिकाऊ मूर्तियां सामान्य: पत्थर , धातु , चीनी मिट्टी, लकड़ी की बनाई जाती है। आधुनिककाल में एफआरपी यानी फाइबर रीइनफोस्र्ड प्लास्टिक की मूर्तियों का चलन बढ़ रहा है।
श्री महाकाल महालोक में एफआरपी से बनीं 100 से अधिक देवी-देवताओं की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं। निश्चिततौर पर कुछ साल बाद इन्हें बदलने की आवश्यकता पड़ेगी।
ऐसे में कार्यशाला में बनीं मूर्तियों को आसानी से यहां प्रतिस्थापित किया जा सकेगा। 136 वर्ष पुराने कोठी महल में 1 मार्च को वीर भारत संग्रहालय खुलने जा रहा है। ये संग्रहालय, देश के कालजयी महानायकों की तेजस्विता को प्रतिबिंबित करेगा।
यहां देश के तेजस्वी नायकों और सत्पुरुषों की प्रेरक कथाओं, संदेशों, चरित्रों का चित्रांकन, उत्कीर्णन, शिल्पांकन, ध्वन्यांकन पारंपरिक और आधुनिक तकनीकों से होगा। ऐसे में ऐसे तेजस्वी नायकों की बनाई मूर्तियां भी संग्रहालय का हिस्सा बन सकेंगीं।
शिल्पकारों के केंद्र में महादेव
शिल्पकारों के केंद्र में महादेव हैं। कार्यशाला का शीर्षक भी यही है। यानी स्पष्ट है कि ज्यादातर मूर्तियां महादेव शिव आधारित बनेंगी। हालांकि इस मामले में शोधपीठ का कहना है कि कलाकार शिल्पांकन के लिए स्वतंत्र है। वे अपने मन के भाव अनुरूप जो शिल्प बनाना चाहे, बना सकते। फिर चाहे मूर्ति भगवान शिव की बने या भगवान राम, सम्राट विक्रमादित्य, महाकवि कालिदास, ऋषि मुनियों की या सत्पुरुषों की।

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