सुप्रीम कोर्ट पहुंचा किसान आंदोलन, सरकारों से आज जवाब-तलब
किसानों के साथ सरकार कई दौर की वार्ता कर चुकी है, लेकिन अभी तक कोई हल नहीं निकला है, क्योंकि किसान तीनों कानून वापस लेने की जिद पर अड़े हैं। सरकार की ओर से पहले कमेटी बनाने की बात कही गई थी। उस पर किसान संगठन राजी नहीं हुए तो सरकार की ओर से ऐसे प्रावधानों में संशोधन भी सुझाए गए, जिन्हें लेकर किसानों में आशंका हो सकती है। सरकार के संशोधन प्रस्ताव के बाद भी किसानों की तरफ से अब तक वार्ता के लिए हामी नहीं भरी गई है। नए कृषि कानूनों पर सरकार और किसान संगठनों के बीच टकराव खत्म होने की राह अब सुप्रीम कोर्ट से होकर निकलती दिख रही है। किसान आंदोलन और इसके चलते बंद रास्ते खुलवाने से संबंधित याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने समाधान तलाशने के लिए कमेटी गठित करने का संकेत दिया है। कमेटी में सरकार और किसान संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। अदालत ने इस संबंध में केंद्र, हरियाणा व पंजाब सरकारों एवं किसान संगठनों को नोटिस जारी कर संबंधित पक्षों से एक दिन में जवाब देने को कहा है। गुरुवार को फिर मामले में सुनवाई होगी।
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने रिषभ शर्मा, रीपक कंसल और जीएस मणि की याचिकाओं पर सुनवाई की। इस मामले में कोर्ट ने आठ किसान संगठनों को भी पक्षकार बनाते हुए नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने जिन किसान संगठनों को पक्षकार बनाया है उनमें भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू- राकेश टिकैत), बीकेयू सिधुपुर (जगजीत एस. डालवाल), बीकेयू - राजेवाल (बलबीर सिह राजेवाल), बीकेयू- लखोवाल (हरिंदर सिह लखोवाल), जमहूरी किसान सभा (कुलवंत सिह संधू), बीकेयू - डाकौंडा (बूटा सिह बुर्जगिल ), बीकेयू - डौडा (मनजीत सिह राई) और कुल हिद किसान फेडरेशन (प्रेम सिह भांगू) शामिल हैं। सभी को गुरुवार तक जवाब देना है। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता वीडियो कांफ्रेसिग के जरिये हुई सुनवाई में मौजूद थे, इसलिए कोर्ट ने केंद्र को औपचारिक नोटिस नहीं जारी किया है।