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एक ही मतदाता सूची से होंगे पूरे देश के चुनाव, सरकार कर रही विचार


केंद्र सरकार लोकसभा, विधानसभा एवं स्थानीय निकायों के चुनाव के लिए एक ही मतदाता सूची बनाने की संभावनाओं पर विचार कर रही है। इससे मतदाता सूचियों की विसंगति खत्म करने और उनमें एकरूपता लाने में मदद मिलेगी। अधिकारियों ने शनिवार को यह जानकारी दी।

नई व्यवस्था से होगा यह लाभ:

अभी लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव आयोग मतदाता सूची तैयार करता है। वहीं नगर निगम व पंचायत जैसे स्थानीय निकायों के चुनावों के लिए राज्य चुनाव आयोग अपने-अपने स्तर पर मतदाता सूचियां तैयार करते हैं। कई राज्य चुनाव आयोग अपनी मतदाता सूची बनाने के लिए चुनाव आयोग की ड्राफ्ट मतदाता सूची का इस्तेमाल करते हैं। नई व्यवस्था से राज्य एवं केंद्र स्तर की सूचियों की विसंगति दूर होगी। स्थानीय चुनावों में रसूख के दम पर होने वाली धांधली पर रोक लग सकेगी। फर्जी मतदान पर लगाम लगाना भी संभव हो सकेगा।

संविधान में राज्यों को पंचायत एवं निकाय चुनावों के लिए अपने नियम बनाने का अधिकार दिया गया है। उन्हें यह भी अधिकार है कि वे अपने स्तर पर मतदाता सूची तैयार कराएं या विधानसभा चुनाव के लिए तैयार चुनाव आयोग की मतदाता सूची का प्रयोग करें।

केंद्र सरकार लोकसभा, विधानसभा एवं स्थानीय निकायों के लिए एक ही मतदाता सूची की संभावना तलाश रही है, जिससे एकरूपता भी आएगी और खर्च भी कम होगा। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'सरकार विचार कर रही है कि क्या इन तीनों तरह के चुनाव के लिए एक ही मतदाता सूची हो सकती है? राज्यों को केंद्रीय मतदाता सूची को ही अपनाने के लिए राजी किया जा सकता है।' एक अन्य अधिकारी ने कहा कि अलग-अलग मतदाता सूची होने के कारण एक ही काम पर दोहरा खर्च होता है। यह मतदाताओं के लिए भी अच्छा होगा क्योंकि मतदाता सूचियों में कोई विसंगति नहीं रहेगी। कई बार ऐसा देखने में आता है कि किसी व्यक्ति का एक मतदाता सूची में नाम होने के बाद भी दूसरी सूची में नाम नहीं होता है।

इस महीने के प्रारंभ में प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस संबंध में बैठक बुलाई थी, जिसमें कानून मंत्रालय एवं चुनाव आयोग के शीर्ष अधिकारियों से मौजूदा व्यवस्था एवं संभावनाओं राय मांगी गई।

चुनाव आयोग, विधि आयोग, कानूनी मामलों पर संसद की स्थायी समिति और कार्मिक मंत्रालय पहले भी कई मौकों पर एक मतदाता सूची की वकालत कर चुके हैं। नवंबर, 1999 में चुनाव आयोग ने सरकार को पत्र लिखकर कहा था कि चुनाव आयोग और राज्य चुनाव आयोगों की ओर से अलग-अलग मतदाता सूचियों से मतदाताओं के भी भ्रम की स्थिति बनती है। कई बार एक सूची में नाम होने पर भी दूसरी में नहीं होता। वहीं एक ही काम के लिए दो बार आवेदन करना पड़ता है और पूरा खर्च भी दोगुना हो जाता है।

संसदीय समिति ने कानून मंत्रालय के मांग एवं अनुदान (2016-17) की रिपोर्ट में चुनाव आयोग एवं राज्य चुनाव आयोगों की ओर से अलग-अलग मतदाता सूचियां बनाने का उल्लेख किया था। इसमें कहा गया था कि मतदाताओं का रजिस्ट्रेशन एवं अपडेशन अलग-अलग किया जाता है और सूचियों में मतदाताओं की संख्या भी भिन्न रहती है।

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