top header advertisement
Home - राष्ट्रीय << एक अध्‍ययन से पता चलता है, कैसे 6 साल तक के बच्‍चों पर माता-पिता करते है 30 तरह के दुव्‍र्यव्‍हार

एक अध्‍ययन से पता चलता है, कैसे 6 साल तक के बच्‍चों पर माता-पिता करते है 30 तरह के दुव्‍र्यव्‍हार



 यूनिसेफ के एक अध्ययन से पता चलता है भारतीय माता-पिता अपने छह साल तक के बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए शारीरिक और मौखिक दुर्व्यवहार के 30 अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में दो जिलों, राजस्थान में तीन जिलों और 2019 में महाराष्ट्र के चार जिलों में 'पेरेंटिंग मैटर्स: एग्जाम पेरेंटिंग अप्रोच एंड प्रैक्टिस' नाम से एक अध्ययन किया गया। इसमें पता चला है कि परिवारों, स्कूलों और सामुदायिक स्तर पर लड़कियों और लड़कों, दोनों को अनुशासित करने के लिए सजा देना एक व्यापक रूप से स्वीकृत तरीका है।

रिपोर्ट के बारे में भारत में यूनिसेफ की प्रतिनिधि यास्मीन अली हक ने कहा कि बच्चों के खिलाफ हिंसा के विभिन्न रूपों में शारीरिक हिंसा (जलाना, चुटकी नोंचना, थप्पड़ मारना, डंडे, बेल्ट, छड़ी से पीटना) जैसे अपराधों के साथ मौखिक हिंसा (आलोचना करना, चिल्लाना, गाली देना, अभद्र भाषा का इस्तेमाल करना), शारीरिक हिंसा को देखना (माता-पिता की तरफ, भाई-बहनों की तरफ, परिवार के बाहर) और भावनात्मक दुर्व्यवहार (गतिविधियों को बाधित करना, खाना देने से मना करना, भेदभाव करना डर पैदा करना) शामिल है।

उन्होंने कहा कि इबोला संकट जैसी महामारी के दौरान, हमारे अनुभव से पता चला है कि हिंसा, दुर्व्यवहार और उपेक्षा का सामना करने की आशंका छोटे बच्चों के मामले में अधिक होती है क्योंकि परिवार उससे उबरने की कोशिश करते हैं, जिसका असर उनके जीवन पर आजीवन पड़ता है। COVID-19 महामारी के समय में आवश्यक सेवाओं के रूप में बाल संरक्षण सेवाओं को नामित करने की तत्काल जरूरत है।

प्रतिक्रिया में मानसिक स्वास्थ्य और मनोसामाजिक सहायता और वैकल्पिक देखभाल व्यवस्था सहित महत्वपूर्ण स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण और बाल संरक्षण सेवाओं का प्रावधान शामिल होना चाहिए। ये सेवाएं बच्चों और प्रवासियों, बिना माता-पिता की संतानों, सभी के लिए उपलब्ध होनी चाहिए, ताकि सबसे कमजोर बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें।

अध्ययन से यह भी पता चला है कि लड़कियों और लड़कों को बहुत कम उम्र से ही अलग तरह से पाला जाता है। घर के कामों के बोझ के साथ, दिन प्रतिदिन के प्रतिबंधों के कारण, लड़कियों को दिए जाने वाले खिलौनों में भी अंतर होता है। बच्चों के लिए मुख्य देखभालकर्ता माताएं होती हैं, जबकि पिता बच्चों की परवरिश में बहुत कम शामिल होते हैं। हालांकि, अध्ययन में पाया गया कि कई मामलों में वे शामिल होना चाहते थे, लेकिन यह नहीं जानते थे कि वे ऐसा कैसे कर सकते हैं।

बच्चों की मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की भलाई को बढ़ावा देने के लिए सकारात्मक अभिभावक प्रथाओं पर जागरूकता अब पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं। यूनिसेफ ने पाया कि महाराष्ट्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़, असम, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य इनोवेटिव पैरेंटिंग प्रोग्राम (नए तरीकों से बच्चों को पालने के कार्यक्रम) को लागू करने में काफी आगे हैं और इन्हें अन्य राज्य अपना सकते हैं।

Leave a reply