विवाह हमारी संस्कृति का श्रेष्ठतम अलंकरण- भाई प्रदीप संज्ञा महाराज
उज्जैन। भारत भूमि सामाजिक मर्यादाओं के दायरे में रहकर ही फल फूल रही है। विवाह हमारी संस्कृति का श्रेष्ठतम अलंकरण है। हम जीवन के पहले दिन से मृत्य तक सोलह संस्कारों में जीते हैं और इन्हीं संस्कारों में से एक है विवाह। भगवान कृष्ण और रूक्मणि का विवाह नारी शक्ति के प्रति मंगल भाव का सूचक है। विवाह एक अटूट बंधन है जो दो परिवारों के साथ ही मर्यादा एवं धर्म संस्कृति का प्रतीक है।
उक्त बात महाकाल प्रवचन हॉल में श्री हरिहर धार्मिक सेवा संस्थान द्वारा प्रकृति सौंदर्य के संरक्षण व संवर्धन हेतु आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में शुक्रवार को भाई प्रदीप संज्ञा महाराज ने रूक्मणी विवाह के अवसर पर सुनाई। कथा में रुक्मणि विवाह के दौरान श्रद्धालुओं ने पुष्पवर्षा कर कृष्ण कन्हैयालाल के जयकारे लगाए। संस्थान के अर्जुनसिंह हाड़ा ने बताया कि प्रतिदिन दोपहर 2 बजे से हो रही कथा को हरिहर प्रेम यूट्युब चैनल के माध्यम से लाईव देख सकते हैं।