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मालवा की गंगा को श्रद्धांजलि देने वालों, भगवती यमुना और गंगा पर रहम करो -आचार्य सत्यम्



उज्जैन। भारतीय संस्कृति की पहचान और धरोहर भगवती गंगा जो देवभूमि भारत पर मृत्युंजय महादेव की जटा से प्रवाहित होकर प्रकट हुई, उसकी जो दुर्गति आजाद भारत के भ्रष्ट शासकों, प्रशासकों तथा नाकारा गंगा भक्तों ने की है, वही इतिहास मालवा की गंगा मोक्षदायिनी शिप्रा के साथ दोहराया गया और शिप्रा मैया का लगभग अंतिम संस्कार कर चुके दोगले शासकों-प्रशासकों ने कान्ह डायवर्शन के नाम पर जो तुगलकी कारनामा किया था, उसका अंतिम संस्कार करने का समय आ चुका है। पिछले कई दिनों से जिस गोदी मीडिया ने इस तुगलकी योजना को मोक्षदायिनी के ज़हर से मोक्ष की अचूक योजना बताकर प्रचारित किया था, वही विफलता के रंगीन चित्र प्रकाशित कर रहा है। कान्ह को इन्दौर से आकर त्रिवेणी उज्जयिनी पर शिप्रा में मिलने से रोक कर सिद्धवट के आगे कालियादेह महल के पास शिप्रा में ही मिलाने की 18.7 किलोमीटर लम्बी इस 100 करोड़ी तुगलकी डायवर्शन योजना को हमने स्वयं ने उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश की इंदौर खण्डपीठ के समक्ष लोकहित याचिका क्रमांक 9171/2014 के माध्यम से चुनौती देकर इसे निरस्त करने की मांग की थी। सिंहस्थ मेला प्राधिकरण के तत्कालीन अध्यक्ष से लेकर जिला पंचायत अध्यक्ष और उज्जैन जनपद के कई निर्वाचित सदस्यों, कई ग्राम पंचायतों की ग्राम सभाओं ने इस योजना का विरोध कर न्यायालय में शपथ-पत्रों के माध्यम से सस्ती वैकल्पिक योजना करोहन तालाब में कान्ह का पानी ले जाने तथा उसके आगे के तीन और बड़े तालाबों में जहरीले प्रदूषण से मुक्त करके पानी छोड़े जाने की प्रस्तावित की थी। मध्यप्रदेश शासन के साथ ही उच्च न्यायालय ने भी सैंकड़ों निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों के समर्थन से प्रस्तुत हमारी याचिका का संज्ञान न लेकर इस तुगलकी योजना को क्रियान्वित होने दिया था। सिंहस्थ के पश्चात् 14 जून 2016 को उच्च न्यायालय ने हमारी याचिका का निराकरण इस उल्लेख के साथ किया कि शासन की ओर से प्रभारी मुकुल जैन के दिनांक 23.04.2016 के शपथ-पत्र के आधार पर योजना का 90 प्रतिशत कार्य पूर्ण हो चुका है और शेष कार्य सिंहस्थ के पश्चात् पूर्ण कर लिया जावेगा। याचिकाकर्ता पर कृपा करते हुए उसे यह आजादी दी गई कि योजना का कार्य पूर्ण न होने पर वह न्यायालयीन आदेश की अवमानना की कार्यवाही कर सकेगा। यह योजना केवल सिंहस्थ अवधि के लिए मध्यप्रदेश शासन ने प्रस्तावित की थी तथा योजना के लिए भूमि अधिग्रहण भी अस्थाई रूप से नाम मात्र की क्षतिपूर्ति राशि जो सिंहस्थ के दौरान निजी भूमि के भूमि स्वामियों को दी जाती है, के आधार पर किया गया था। सिंहस्थ के दौरान भी योजना अपूर्ण और विफल होने के कारण कान्ह का ज़हरीला पानी शिप्रा में मिलता रहा और शिप्रा ओजोनेशन के नाम पर डायलेसिस पर डाल दी गई थी। गोदी मीडिया कान्ह के जहरीले पानी से शिप्रा के प्रदूषित होने के रंगीन फोटो छाप रहा है। जबकि इस जनविरोधी और शिप्राद्रोही तुगलकी योजना का समापन करना वैधानिक रूप से भी अनिवार्य है। क्योंकि कान्ह जो भारत की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में से एक है, का ज़हर शिप्रा में ही मिलाकर भगवती यमुना और गंगा को ज़हर का परनाला बनाने का अक्षम्य पाप जन धन की भीषण लूट और प्राकृतिक विनाष के साथ किया गया था। नाथ सरकार और उसका प्रशासन शिवराज सरकार की इस जनविरोधी अवैध योजना के अंतिम संस्कार के स्थान पर करोड़ों रूपये बर्बाद कर उज्जयिनी में शिप्रा शुद्धिकरण के नाम पर देश के नागरिकों की आंखों में धूल झोंक रहे हैं, जिसे सहन नहीं किया जावेगा। गया कोटा की याचिका को उच्च न्यायालय ने अनुचित और अन्यायपूर्ण आधार पर निरस्त किया था, हमने उसे सर्वोच्च न्यायालय से पुनःर्जीवित कर दिया है। यदि शासक प्रशासक इस तुगलकी योजना पर जन धन की बर्बादी करेंगे और प्रदेश की नदियों को प्रदूषण मुक्त करने की वैज्ञानिक योजनाओं को ठुकरायेंगे तो उन्हें वैधानिक संघर्ष के साथ ही जन प्रतिरोध का सामना भी करना होगा।

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