‘जो शोहरत बेटा न दिला पाता, वो बेटी ने दिलाई
बचपन से पढ़ाई में लगन लगाई, गरीबी भी हौसले कम न कर पाई, पिता मिस्त्री, मां करती है सिलाई, बेटी विदेश में रहकर कर रही पढ़ाई’
उज्जैन | साहब शोहरत तो शोहरत होती है, बेटा दिलाये या बेटी। जो शोहरत और इज्जत शायद बेटा भी न दिला पाता, वह आज हमारी बड़ी बेटी की वजह से नसीब हो रही है। ये कहते हुए ताहिरा के पिता सादीक खान की आंखें नम हो गई थी। यह सच्ची कहानी शहर की उस 26 वर्षीय ताहिरा खान की है, जिसका कद तो छोटा है लेकिन हौसले इतने बड़े हैं कि उसके परिवार की कमजोर माली हालत भी उन्हें कम न कर सकी।
“जिन्दगी की असली उड़ान अभी बाकी है, अपने इरादों का इम्तेहार अभी बाकी है, अभी तो नापी है मुट्ठीभर जमीन हमने, आगे सारा आसमान अभी बाकी है।”
ऊपर लिखी ये पंक्तियां ताहिरा के हौसले को पूरी तरह बयां करती है। उज्जैन में 18 अगस्त 1992 को जन्मी ताहिरा ने यह साबित कर दिया कि हौसले बुलन्द हों तो लक्ष्य को हासिल करने में रास्ते की बड़ी से बड़ी रूकावट भी कुछ बिगाड़ नहीं सकती। ताहिरा ने यह साबित कर दिया कि लड़कियां किसी भी मामले में लड़कों से कम नहीं है, बल्कि यह लिखा जाये तो ज्यादा मुनासिब होगा कि ज़िन्दगी में आगे बढ़ने और कुछ बनकर माता-पिता का नाम रोशन करने में अब लड़कियां लड़कों से बीस साबित हो रही हैं।
ताहिरा उन लड़के-लड़कियों के लिये एक मिसाल है जो ज़िन्दगी में पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहते हैं, लेकिन अभाव के कारण अपने सपने साकार नहीं कर पाते।
बचपन से पढ़ाई में खूब लगता था मन
शहर के निजातपुरा में मोहन टॉकीज के सामने एक तंग गली से होकर गुजरना पड़ता है। गली जहां खत्म होती है वहां दो कमरों के एक कच्चे-से मकान में पली-बढ़ी ताहिरा के परिवार में माता-पिता, छोटा भाई और छोटी बहन है। ताहिरा के पिता 51 वर्षीय मोहम्मद सादिक खान को आसपास के लोग कल्लू मिस्त्री के नाम से बेहतर जानते हैं। जैसा कि नाम से जाहिर है, सादिक पेशे से मिस्त्री हैं। हमेशा दूसरों के बड़े-बड़े घर बनाने वाले सादिक उर्फ कल्लू मिस्त्री पैसों की तंगी के कारण अब तक अपने कच्चे मकान को पक्का नहीं बना सके।
बचपन में इसी गरीबी की वजह से पढ़ाई छोड़कर सादिक को काम-धंधे पर लगना पड़ा था। ताहिरा की अम्मी जहांआरा सिलाई का काम करके घर चलाने में अपने पति का हाथ बटाती हैं। उन्हें भी बचपन में समाज की संकीर्ण विचारधारा- “लड़कियां ज्यादा पढ़कर क्या करेंगी’ की वजह से पढ़ाई अधूरी छोड़कर शादी करना पड़ी थी।
ताहिरा के माता-पिता की हमेशा से यह ख्वाहिश थी कि जिन कारणों से वे पढ़ न सके, उनके बच्चों पर उनका साया भी नहीं पड़ने देंगे। कहते हैं कि माता-पिता के गुण बच्चों में आते हैं। कड़ी मेहनत करने का जज़्बा ताहिरा को अपने माता-पिता से विरासत में मिला था। ताहिरा का शुरू से पढ़ाई में बहुत मन लगता था। जिस गली में एक वक्त पर केवल एक व्यक्ति निकल सके, उस गली में घूम-घूमकर अपनी किताबों के सबक याद करती थी ताहिरा। स्कूल के किताबी सबक के साथ-साथ ज़िन्दगी भी उसे कई सबक सिखा रही थी।
यह बात ताहिरा के अच्छे-से समझ में आ गई थी कि ज़िन्दगी में कुछ भी बनने के लिये अच्छी तालीम बहुत जरूरी है। आज के समय में आत्मनिर्भर बनना बहुत जरूरी है। अपनी बेटी की पढ़ाई के प्रति लगन देखकर ताहिरा के माता-पिता ने उससे कहा कि वह जो बनना चाहती है बनें, उसके हर फैसले में वे उसके साथ हैं।
स्कूली पढ़ाई हिन्दी मीडियम से की
आज ऑस्ट्रेलिया में फर्राटेदार इंगलिश बोलती है ताहिरा
ताहिरा ने स्कूल की पढ़ाई गुजराती समाज स्कूल से हिन्दी माध्यम में की थी। इसके बाद उसने साफ्टवेयर डेवलपिंग में आरजीपीवी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। इंजीनियरिंग में हिन्दी से इंगलिश माध्यम में पढ़ाई करना ताहिरा के लिये बहुत मुश्किल था, लेकिन इसके लिये ताहिरा ने इंगलिश की कोचिंग ली। कड़ी मेहनत का ही नतीजा है कि आज ऑस्ट्रेलिया में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये गई ताहिरा फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती है।
कदम कदम पर थी मुश्किलें
स्कूल तक की पढ़ाई का खर्चा जैसे-तैसे निकल जाता था, लेकिन कॉलेज की पढ़ाई और अन्य कोचिंग की फीस वहन कर पाना ताहिरा के माता-पिता के लिये मुश्किल हो गया था। इसके लिये ताहिरा को पढ़ाई के साथ-साथ पार्टटाइम जॉब भी करना पड़ा।
पढ़ाई के खिलाफ थे रिश्तेदार, लेकिन मां-बाप ने दिया साथ
इंजीनियरिंग में बैचलर करने के बाद ताहिरा मास्टर्स करना चाहती थी, लेकिन ताहिरा के कई रिश्तेदार अब उसकी पढ़ाई के खिलाफ हो गये थे। रिश्तेदारों ने अब उसके मां-बाप से कहना शुरू कर दिया था कि “लड़की को इतनी पढ़ा-लिखाकर क्या करोगे, अब इसकी शादी की उम्र हो गई है, ज़रा अपनी हैसियत देखो, लड़की इतनी पढ़ा लोगे तो अपनी बराबरी में इसके काबिल लड़का नहीं मिलेगा। क्या लड़की से नौकरी कराओगे, क्या उसकी कमाई खाओगे।” ऐसे जुमले ताहिरा के माता-पिता को मधुमक्खी के डंक की तरह लगते थे, लेकिन उन्होंने कभी इसका असर बेटी की पढ़ाई पर नहीं आने दिया।
ताहिरा के पिता हर बार रिश्तेदारों का मुंह यह कहकर बन्द कर देते थे कि वे खुद का मकान तो नहीं बना सके, लेकिन बेटी का भविष्य ज़रूर बनायेंगे। ताहिरा आगे की पढ़ाई के लिये विदेश जाना चाहती थी, लेकिन इसके लिये दिन-रात मेहनत करने के बावजूद रुपये जमा नहीं हो रहे थे।
जब लगा कि ख्वाब अधूरा रह जायेगा, रातभर रोई थी ताहिरा
जब ताहिरा को लगा कि उसका विदेश में पढ़ाई करने का सपना अधूरा ही रह जायेगा, तो वह रातभर रोई थी। उसे कई रातों तक नींद भी नहीं आई थी। आती भी कैसे ताहिरा सोती ही इसलिये थी ताकि खुद को विदेश में पढ़ने का ख्वाब देख सके। ताहिरा की मां बताती हैं कि जब उन्होंने ताहिरा की आगे की पढ़ाई के लिये रिश्तेदारों से कर्ज मांगा तो उन्होंने साफ मना कर दिया था। वे ताहिरा की शादी करने के लिये कहने लगे। इस बात से ताहिरा बहुत निराश हो गई थी।
कुछ दिन बाद ताहिरा को कहीं से पता चला कि मध्य प्रदेश सरकार के पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग द्वारा विदेश अध्ययन छात्रवृत्ति योजना संचालित की जा रही है। इसके तहत अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्ग के विद्यार्थियों को विदेशों में विशिष्ट क्षेत्रों में स्नातकोत्तर स्तर के पाठ्यक्रमों/शोध उपाधि/पीएचडी और शोध उपाधि उपरान्त शोध कार्यक्रमों में भाग लेने के लिये छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है।
बस फिर क्या था, ताहिरा ने बिस्मिल्लाह किया और योजना के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिये देवासरोड स्थित आरटीओ के समीप पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण कार्यालय पहुंची। वहां उन्हें सहायक संचालक डॉ.अनुराधा सेकवाल द्वारा विस्तार से योजना की जानकारी दी गई तथा छात्रवृत्ति की पूरी प्रक्रिया के बारे में बताया गया। इसके बाद ताहिरा ने भोपाल में पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण संचालनालय में आवश्यक दस्तावेज संलग्न कर आवेदन दिया। छात्रवृत्ति के लिये नियमानुसार पीटीआईएस परीक्षा पास की, इंटरव्यू दिया और पूरी प्रक्रिया हो जाने के बाद आखिरकार उन्हें विदेश में उच्च शिक्षा के लिये छात्रवृत्ति मिल गई।
वर्तमान में ताहिरा ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में इंफॉर्मेशन टेक्नालॉजी के तहत बिजनेस एनालिस्ट की पढ़ाई कर रही है। अल्पसंख्यक कल्याण कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार ताहिरा को 19 लाख 77 हजार रुपये की पहली किश्त और 19 लाख 69 हजार रुपये की दूसरी किश्त बतौर छात्रवृत्ति मिली है। फोन पर ताहिरा ने बताया कि वे केवल पढ़ाई के लिये विदेश गई हैं लेकिन नौकरी अपने देश में ही करेंगी। वहां सिखाई गई तकनीकों का उपयोग वे देश के विकास में करना चाहती हैं। यहां मल्टीनेशनल कंपनी को ज्वाइन कर वे बिजनेस को अत्याधुनिक तकनीक से जोड़ना चाहती हैं।
जब ऑस्ट्रेलिया के लिये ताहिरा रवाना हो रही थी, तब भी ताहिरा के आस-पड़ौस के लोगों और रिश्तेदारों में इस बात का बहुत विरोध किया था कि लड़की को अकेली इतनी दूर मत भेजो, लेकिन ताहिरा के माता-पिता को अपनी बेटी पर पूरा भरोसा था। इसी विश्वास की बदौलत ताहिरा अपने उज्ज्वल भविष्य की इबारत लिखने को तैयार है। जो रिश्तेदार उसके इस फैसले का विरोध करते थे, वे अब ताहिरा की तारीफ करते नहीं थकते। साथ ही अपने बच्चों को भी ताहिरा से प्रेरणा लेने के लिये कहते हैं। कई लोग ताहिरा के माता-पिता के घर जाकर जब पूछते हैं कि क्या आपकी ही लड़की आज ऑस्ट्रेलिया में रहकर पढ़ रही है, तो उन दोनों का सिर फख्र से उठ जाता है और उनकी आंखों में खुशी के आंसू आ जाते हैं।
ताहिरा के माता-पिता को आज अपनी बेटी पर बहुत गर्व है। वे कहते हैं कि यदि बेटे-बेटियां पढ़कर कुछ बनना चाहते हैं तो बिना कोई रोकटोक किये उन्हें अपने सपने पूरे करने दें। पैसों की चिन्ता बिलकुल न करें। इसके लिये सरकार तो है ही। निश्चित रूप से विदेश अध्ययन छात्रवृत्ति योजना ताहिरा और उसके जैसे कई विद्यार्थियों को विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त कर विशिष्ट शैक्षणिक उपलब्धियां हासिल करने का अवसर प्रदान कर रही हैं वहीं दूसरी ओर पिछले और अल्पसंख्यक वर्ग के अन्य विद्यार्थी भी इनकी उपलब्धियों से प्रेरणा लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। ताहिरा और उसके माता-पिता छात्रवृत्ति के लिये मध्य प्रदेश सरकार के हमेशा शुक्रगुजार रहेंगे।