top header advertisement
Home - उज्जैन << सहकारिता के लिए समर्थ विधि विधान आवश्यक

सहकारिता के लिए समर्थ विधि विधान आवश्यक



उज्जैन। सहकारी समितियों के सफल एवं उन्नति के लिए सर्वमान्य सहकारी विधान में संशोधन होना चाहिये।
उक्त विचार जिला सहकारी संघ द्वारा आयोजित अखिल भारतीय सहकारी सप्ताह अंतर्गत सरस्वती साख सहकारी समिति मर्यादित में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आरके उपाध्याय संयुक्त संचालक लोकशिक्षण संस्था ने व्यक्त किये। उपाध्याय ने आगे कहा कि सहकारी आंदोलन एक सक्षम एवं आमजन का आंदोलन है। सहकारिता का उदय विधान अनुसार सन् 1904 में हुआ किंतु भारतीय संस्कृति अनुसार यह आंदोलन हजारों वर्ष पुराना है। सहाकारिता की परिभाषा ही यह है कि एक सब के लिए और सब एक के लिए की भावना के साथ कार्य करना है, किसी भी सहकारी समिति की सफलता उसके नेतृत्व, सदस्यों की कर्मठता एवं ईमानदारी पर निर्भर करती है। सदस्यों को चाहिये की संस्था से लिया गया उधार समय पर चुकता करें। जिससे उक्त पूंजी से अपने अन्य सदस्य साथियों की मदद हो सके। कार्यकम की विशेष अतिथि उपसंचालक शिक्षा एके पिल्लई ने कहा कि सरस्वती साख समिति अपने उद्देश्यों की पूर्ति अपने सदस्यों के लिए बखूबी निभा रही है। ऐसी संस्था के लिए मेरी ओर से बधाई। कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी गिरीश तिवारी ने कहा कि जिला सहकारी संघ द्वारा सहकारिता के प्रचार-प्रसार हेतु ऐसे कार्यक्रम निरंतर करना चाहिये जिससे आमजनों में सहकारिता की योजनाओं का प्रचार प्रसार हेतु ऐसे कार्यक्रम निरंतर करना चाहिये जिससे आमजनों में सहकारिता की योजनाओं का प्रचार हो तथा इसका लाभ ले सकें। दिलीप मरमट व्याख्याता प्रशिक्षण केन्द्र इंदौर ने सहकारिता के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसका उदय 1904 में हुआ किंतु आज यह आंदोलन जन-जन के आंदोलन के रूप में फेल चुका है। कार्यक्रम में जिला संघ के सीओ दिलीप असरानी, संतोष सांकलिया, शिवकुमार गेहलोत आदि ने सहकारिता पर अपने विचार व्यक्त किये। सरस्वती साख समिति के अध्यक्ष सुरेन्द्रसिंह चैहान ने अपनी संस्था का लेखा जोखा प्रस्तुत किया। संचालन संस्था के पूर्व अध्यक्ष मानसिंह चैहान ने किया एवं आभार अशोक पंवार ने माना।

Leave a reply