‘अनपढ़ लोगों की कला’ बढ़ा रही है पढ़े-लिखे बड़े घर के लोगों के ड्राइंग रूम की शोभा
उज्जैन की मांडना चित्रकार शान्ता भाटी देश के कोने-कोने तक पहुंचा रही हैं मांडना कला, खुद के साथ-साथ दूसरी महिलाओं को भी बनाया आत्मनिर्भर
उज्जैन | शहर से कुछ दूर ग्राम चन्देसरा में रहने वाली मांडना चित्रकार शान्ता भाटी देश के कोने-कोने तक पहुंचा रही हैं गांव की मांडना कला। उनके द्वारा हाथों और ब्रश के माध्यम से कैनवास पर बनाये गये आकर्षक चित्र, चित्रावन, रंग-बिरंगे कपड़ों से बनाई गई चिड़ियाओं की आकृति, झालर, पट्टियां और तोरण की हस्तकला के क्षेत्र में काफी मांग बढ़ रही है।
उज्जैन में प्रतिवर्ष की भांति इस बार भी हस्तशिल्प और हाथकरघा मेले में शान्ता भाटी ने हाथों से बनाये गये सजावटी सामानों की स्टाल लगाई है। मध्य प्रदेश शासन के पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के ग्रामीण आजीविका मिशन की जिला मिशन प्रबंधन इकाई के तहत शान्ता भाटी ‘जय शिवशक्ति स्वयं सहायता समूह’ की संचालनकर्ता हैं। इस स्वसहायता समूह के माध्यम से शान्ता भाटी ने अपने साथ-साथ 20 अन्य महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाया है।
शान्ता भाटी एक मास्टर ट्रेनर की भूमिका का दायित्व भी उतने ही अच्छे तरीके से निभा रही हैं। मांडना कला का प्रशिक्षण अब तक उनके द्वारा एक हजार महिलाओं को दिया जा चुका है। गांव में ऐसी महिलाएं जो आज के समय में भी घर से बाहर निकल कर काम करने में असहज महसूस करती थी, उनका मनोबल भी शान्ता भाटी आकाशवाणी के संवाद कार्यक्रम के तहत बढ़ाती हैं।
शान्ता भाटी और उनके समूह की महिलाएं आसपास के अन्य गांवों की महिलाओं के लिये एक मिसाल और आदर्श बन चुकी हैं, जिनमें प्रतिभा है और जो इस प्रतिभा का प्रदर्शन कर जीवन में कुछ करना चाहती हैं। शान्ताबाई बताती हैं कि 10 वर्ष की उम्र में जब से होश संभाला, तभी से मांडना कला के प्रति उनकी रूचि जागृत हुई। उनकी शादी जल्दी हो गई थी। रोजमर्रा के गृहस्थी के कामों में आंगन को लिपना भी शामिल था, जिस वजह से कहीं न कहीं मांडना की कला से वे समय-समय पर आने वाले त्यौहारों के कारण जुड़ी रहीं और इसमें लगातार निखार आता गया।
शान्ताबाई ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं। बचपन में जब दीवार पर मांडना बनाती थी तो उनकी मां कहती थी कि ये तो अनपढ़ लोगों की कला है, लेकिन आज इसी कला की बदौलत अनपढ़ शान्ताबाई मांडना कला की शिक्षक बन चुकी हैं। देश के विभिन्न शहरों में कला के प्रति रूझान रखने वालों के द्वारा समय-समय पर उन्हें अपने यहां मांडना कला सीखाने के लिये आमंत्रित किया जाता है।
देश के विभिन्न क्षेत्रों में जाने के बाद शान्ताबाई विदेशों में भी मांडना कला को पहुंचाना चाहती हैं, इसीलिये उन्होंने अब पासपोर्ट भी बनवा लिया है। शान्ताबाई ने यह साबित कर दिया है कि कोई भी प्रतिभा व्यर्थ नहीं होती है तथा स्कूल-कॉलेज के किताबी ज्ञान की मोहताज भी नहीं होती। शान्ताबाई जब भी हस्तशिल्प कला प्रदर्शनी में मध्य प्रदेश की ओर से बाहर जाती हैं तो उनका पूरा खर्च शासन की ओर से वहन किया जाता है। शान्ताबाई का पंजीयन राष्ट्रीय हस्तशिल्प निगम में भी किया जा चुका है।
शान्ताबाई जब भित्तिचित्र, नाग महाराज का चित्र, गोबर की संजा, किलाकोट और दिवासा बनाती हैं तो लोग उन्हें एकटक देखते रहते हैं। भित्तिचित्र कैनवास पर फेब्रिक कलर और प्लास्टिक पेंट के माध्यम से बनाये जाते हैं। शान्ताबाई द्वारा बनाये गये आकर्षक चित्रों और कलाकृतियों से उन्हें हस्तशिल्प मेले के दौरान एक से डेढ़ लाख रुपये तक की आमदनी हो जाती है। शान्ताबाई का छह लोगों का परिवार है। अगली पीढ़ी को भी पढ़ाई के साथ-साथ वे इस कला में भी पारंगत कर रही हैं। सिंहस्थ-2016 में उनके समूह द्वारा ही देवास रोड और उजड़खेड़ा क्षेत्र में आकर्षक मांडना कलाकृतियां बनाई गई थी। उनकी कला को शहरों तक पहुंचाने में जिला पंचायत की ओर से समय-समय पर उन्हें हरसंभव सहयोग दिया जाता है। हाल ही में उन्होंने शहर के श्रम कल्याण केन्द्र में कई महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है।
शान्ताबाई को भोपाल के जनजातीय संग्रहालय के वार्षिक कार्यक्रम में प्रत्येक वर्ष आमंत्रित किया जाता है। साथ ही केरल, तमिलनाड़ु और कर्नाटक के एम्पोरियम में भी उनके द्वारा स्टाल लगाई जाती है। शान्ताबाई का अपनी कला के प्रति समर्पण का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुछ साल पहले उन्हें मांडना का काम करते हुए एक हफ्ते में तीन बार लकवे के तीन माइनर अटेक आये थे। डॉक्टरों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी थी, लेकिन शान्ताबाई ने यह काम नहीं छोड़ा। अब उनकी यही ख्वाहिश है कि देश के साथ-साथ दुनिया के कोने-कोने में हमारे गांव की मांडना कला पहुंचे।