साहित्य की अन्य विधाओं से भी जुड़ना जरुरी- पंकज सुबीर
उज्जैन। एक विधा के साहित्यकारों ने दूसरी विधा के साहित्यकारों के बीच बैठना बंद कर दिया है और विधाओं के बीच आवाजाही पूर्ण रूप से बन्द हो गई है। लेकिन आज की इस व्यंग्य-कविता गोष्ठी में सभी विधाओं का संगम हैं और सारे लोग एक ही जगह बैठे हैं। हम किसी भी विधा के हों, हमारा साहित्य की अन्य विधाओं से जुड़ना जरूरी है और सचेत और सावधानी से साहित्य सृजन सबका लक्ष्य होना चाहिए।
ये विचार साहित्य मंथन के द्वारा आयोजित व्यंग्य-कविता गोष्ठी में कथाकार पंकज सुबीर ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में व्यक्त किये। अतिथि शिव चैरसिया ने कहा कि उज्जैन के लिए आज का दिन आनंद का दिन है क्योंकि सभी विधाओं के कलमकार यहाँ उपस्थित हैं। असल में शब्दों का प्रकाश पर्व आज यहाँ दिखाई दे रहा है। मुख्य अतिथि साहित्यकार धर्मपाल महेंद्र जैन ने कहा कि कविता का मूल स्वर विद्रोह है और रचनाकार की रचना में यह परिलक्षित होना चाहिए। गोष्ठी में कनाडा से पधारे साहित्यकार धर्मपाल महेंद्र जैन का सारस्वत सम्मान हम हिन्दुस्तानी संस्था द्वारा किया गया। कहानीकार मनीष वैद्य, आलोचक गंगाशरण, प्रकाशक शहरयार विशिष्ट अतिथि थे। गोष्ठी में बाबू घायल, कुमार संभव, जिया राणा, शशिकांत यादव, मोहन बैरागी, सौरभ जैन, विजय सुखवानी, शिवदान सांवरे, शुभम, हेमन्त श्रीमाल, संतोष सुपेकर आदि ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। इस रंगारंग आयोजन में प्रमोद त्रिवेदी, शैलेंद्र पाराशर, गिरजेश व्यास, प्रो गोपाल शर्मा, दौलत सिंह दरबार, सुरेन्द्र सर्किट, योगेश कुल्मी, वरुण गुप्ता, प्रशांत सोहले, अनिल कुरेल आदि उपस्थित थे। अतिथि स्वागत प्रेम पथिक, योगेश कुल्मी, राकेश बनवट, मुकेश जोशी, गोपीकृष्ण भाटी, संदीप नाडकर्णी, संजय शर्मा आदि ने किया। संचालन अशोक भाटी ने किया एवं आभार डॉ हरीशकुमार सिंह ने व्यक्त किया।