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प्रकृति और जीवन का सह अस्तित्व परिलक्षित होता है कालिदास साहित्य में -डॉ.पण्ड्या


 

उज्जैन | सोमवार 11 नवम्बर को कालिदास के साहित्य में प्रकृति का प्रसाद अनेक रूपों में परिलक्षित होता है जो चित्त को स्थूल से सूक्ष्म की यात्रा करता है। उनके ऋतुसंहार में ऋतुओं में ग्रीष्म ऋतु से वसन्त ऋतु तक का वर्णन उनके ज्ञान की चेतना का परिचायक है। तप और ताप जीवों को एकीकृत करते हैं इसीलिये प्रकृति के चित्रण में कालिदास ने अनेक पशुओं को एकत्र उपस्थित किया है। प्रकृति और जीवन का एकाकार जीवों का सह अस्तित्व कालिदास साहित्य में परिलक्षित होता है।
    ये विचार डॉ.नरेन्द्रकुमार पण्ड्या, सोमनाथ ने महाकवि कालिदास व्याख्यानमाला में कालिदास का प्रकृतिप्रसाद शीर्षक व्याख्यान देते हुए व्यक्त किये। अध्यक्षता करते हुए आचार्य कृष्णकान्त चतुर्वेदी ने कहा कि कालिदास ने प्रकृति का मानवीकरण किया है। उन्होंने देवताओं में मानव व्यवहार को प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया है। कालिदास ने शिव के विशेष स्वरूप अष्टमूर्ति शिव का अपने साहित्य में प्रमुखता से स्थान दिया है। मालवा का शैवमत असाधारण है। सातवीं शताब्दी के पश्चात् और इससे पूर्व के शैव मत में विविधता है। महाभारत काल में रुद्र एवं शिव का एकाकार हुआ है। जबकि ये दोनों पृथक हैं। मालवा के शैव मत पर विद्वानों की चर्चा आयोजित करते हुए इस विषय पर शोध होना चाहिये।
इस अवसर पर प्रो. वसन्तकुमार म. भट्ट, अहमदाबाद की संस्कृत साहित्य अकादमी गांधीनगर द्वारा सद्यः प्रकाशितरचना कालिदास-काव्यालोकन ग्रन्थ का विमोचन प्रो.बालकृष्ण शर्मा एवं प्रो. कृष्णकान्त चतुर्वेदी ने किया । इस ग्रन्थ में प्रो. भट्ट  के कालिदास पर केन्द्रित आलेखों का प्रकाशन किया गया है। कार्यक्रम की पीठिका एवं संचालन प्रो. शैलेन्द्र पाराशर ने किया अतिथियों का स्वागत श्रीमती प्रतिभा दवे ने तथा आभार डॉ.तुलसीदास परौहा ने किया।

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