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डॉ. वाकणकर ने सायकल चलाकर अपने शिष्यों के साथ पुरातत्व की खोज की



23वें रॉक ऑर्ट सोसायटी ऑफ इंडिया कांग्रेस 2019 के त्रिदिवसीय सेमीनार का हुआ समापन-वाकणकरजी के जीवन पर आधारित प्रदर्शनी व वाकणकर संग्रहालय का किया अवलोकन
उज्जैन। पद्मश्री डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर के जन्म शताब्दी वर्ष में आयोजित 23वें रॉक ऑर्ट सोसायटी ऑफ इंडिया कांग्रेस 2019 के त्रिदिवसीय सेमीनार के समापन सत्र के पूर्व सभी आमंत्रित प्रतिभागियों को वाकणकर शोध संस्थान में लगाई गई वाकणकरजी के जीवन पर आधारित प्रदर्शनी व वाकणकर संग्रहालय का अवलोकन करवाया गया। तत्पश्चात विक्रम कीर्ति मंदिर में पुरातत्व विभाग में वाकणकर संग्रहालय भी दिखाया गया जहां डॉ. रमण सोलंकी ने विस्तार से सभी संग्रहित मूर्तियों, सिक्कों के विषय में बताया। 
ऑल इंडिया रॉक आर्ट सोसायटी सचिव डॉ. गिरीराज कुमार, डॉ. दिलीप वाकणकर ने बताया कि दोपहर 2 बजे समापन सत्र प्रारंभ हुआ। दीप प्रज्जवलन, पुष्पांजलि के पश्चात वाकणकर न्यास की वेबसाईट व रॉक आर्ट सोसायटी की वेबसाईट को लांच कर विस्तार से जानकारी दी। वाकणकर न्यास वेबसाइड का कार्य यशोवर्धन सोवले सॉफ्टवेयर इंजीनियर पुणे ने किया। रॉक ऑर्ट सोसायटी की वेबसाइड का कार्य रामकृष्णा इंजी. आगरा ने किया। प्रचार सचिव राकेश तिवारी ने बताया कि डॉ. रमण सोलंकी मुख्य अतिथि थे तथा अध्यक्षता डॉ. गिरीराज कुमार ने की। दोनों का शाल श्रीफल, स्मृति चिन्ह से स्वागत किया गया। डॉ. अरिकेता प्रधान उड़ीसा ने सभी पत्रों में पढ़े गए शोध पत्रों व आलेखों के संक्षिप्त बिंदू प्रस्तुत किये। डॉ. पुष्पा चौरसिया ने कविता के माध्यम से डॉ. वाकणकर को भावांजलि अर्पित की। डॉ. इरविना नॉमयर आस्ट्रिया ने सेमीनार में अपने अनुभवों को रखा। डॉ. नारायण व्यास भोपाल, शोधार्थी रॉक आर्ट नीलमसिंह बनारस उ.प्र. ने भी अपने अनुभवों को रखा। डॉ. विद्या जोशी ने गीत के माध्यम से भावांजलि अर्पित की। डॉ. रमण सोलंकी ने अपने उद्बोधन में कहा कि डॉ. वाकणकर सायकल चलाकर अपने शिष्यों के साथ पुरातत्व की खोज करते थे, लोगों ने उन्हें इस कार्य को करते हुए देखा है। वे चित्रकला के विद्यार्थी थे। पुरातत्व में सारे विषय समाहित है परंतु चित्रकला से पुरातत्व है क्योंकि प्राचीन भारतीय सभ्यता के प्रमाण चित्रकला में मिलते हैं। डॉ. वाकणकर को 1975 में विपरीत परिस्थितियों में इंदिरा गांधी के काल में पद्मश्री से विभूषित किया गया परंतु उन्होंने कहा कि मैं स्वयंसेवक हूं। काली टोपी पहनकर ही आउंगी और उन्होंने संघ के गणवेश में ही पद्मश्री की उपाधि प्राप्त की आपने और भी विस्तार से इतिहास व पुरातत्व विषय में प्रामाणिक तथ्यों के साथ डॉ. वाकणकर द्वारा किये गये कार्यों को बताया। अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. गिरीराज कुमार अपने गुरू के विषय में बोलते समय भावुक हुए और उन्होंने कहा कि मैं गुरूजी के विषय में बोलते समय कहां से शुरू करूं इस असमंजस में पड़ जाता हूं। आपने नवीन पीढ़ी के लिए इस रॉक आर्ट में नई संभावनाओं को व्यक्त किया व कहा कि इस तकनीकी युग में नई पीढ़ी बहुत अच्छा काम करेगी। डॉ. दिलीप वाकणकर ने सेमीनार से संबंधित कुछ बिंदुओं को रखा व सबका धन्यवाद ज्ञापित किया व आगामी योजनाओं की संक्षिप्त जानकारी दी। डॉ. नलिनी रेवड़ीकर ने सभी का आभार माना एवं डॉ. विद्या जोशी ने संचालन किया। 

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