एक साल का पेयजल स्टोरेज करने की होगी क्षमता सिलारखेड़ी जलाशय को दिया जा रहा नया स्वरूप सिंहस्थ में साधु संत कर सकेंगे शिप्रा में स्नान, पेयजल के लिए भी होगा पानी का उपयोग
उज्जैन - महाकाल की नगरी में शिप्रा को शुद्ध, पावन, पवित्र बनाए रखने के लिए अरबों खरबों रूपया पानी की तरह बहाया गया। हर पांच साल में बनने वाली नई सरकार ने करोड़ों रूपए खर्च किए, लेकिन सफलता का वो आयाम हासिल नहीं हो पाया जिसकी बार बार परिकल्पना की जा रही थी। मगर अब वो होने जा रहा है, जो सालों के प्रयासों से नहीं हो पाया था। प्रदेश के मुखिया डॉ. मोहन यादव की परिकल्पना अनुसार उज्जैन में सिंहस्थ को लेकर कई सारे काम किए जा रहें हैं। इनमें सबसे प्रमुख है शिप्रा नदी को स्वच्छ, अविरल व प्रवाहमान बनाए रखना। जल संसाधन विभाग इसके लिए सिलारखेड़ी के वर्षों पुराने जलाशय को नए सिरे से तैयार करने में जुट गया है। सबसे अहम बात ये है कि सिलारखेड़ी जलाशय के पूर्ण क्षमता से तैयार होने के बाद इसमें इतना जल संग्रहित होगा कि एक साल तक उज्जैन नगर की जनता के लिए पेयजल आपूर्ति की जा सकेगी। यदि आंकडों की बात की जाए तो सिलारखेड़ी जलाशय की जल संग्रहण क्षमता बढ़कर 1800 एमसीएफटी से अधिक हो जाएगी, जो गंभीर बांध से लगभग 400 एमसीएफटी ही कम होगी।
ऐसे भरा जाएगा जलाशय
जल संसाधन विभाग द्वारा सेवरखेड़ी में वर्षा के जल को रोकने के लिए 23 मीटर ऊंचे टेंक नुमा संरचना बनाई जाएगी। इसमें वर्षा के जल को रोका जाएगा। रुके हुए जल को साढ़े 6 कि.मी. लम्बी पाईप लाईन्स् से लिफ्ट कराकर सिलारखेड़ी के जलाशय में रखा जाएगा। सेलारखेड़ी से पानी निकालकर सीधे शिप्रा में छोड़ा जाएगा। इससे पूरे साल शिप्रा नदी को प्रवाहमान रखा जा सकेगा।
कम लागत व पर्यावरण हितैशी परियोजना
यह अपनी तरह की एक अनूठी और अद्भुत परियोजना है। जिसकी लागत बहुत कम होगी। खास बात ये है कि यह प्रकृति को बगैर नुकसान पहुंचाए, पर्यावरण अनुकूलन तरीके से ये संचालित की जाएगी। इसके लिए बिजली का खर्च भी बहुत कम आएगा। गर्मी में शिप्रा का पानी कम होने पर सिलारखेड़ी जलाशय से नदी में पानी प्रवाहित होता रहेगा। जिससे शिप्रा को निरंतर प्रवाहमान रखा जा सकेगा।
सिंहस्थ पूर्व परियोजना पूरा करने का लक्ष्य
मुख्यमंत्री डॉ यादव की परिकल्पना अनुसार यह परियोजना जब मूर्तरुप लेगी, तो 2028 का सिंहस्थ खिल उठेगा। संत समाज और श्रद्धालुजन शिप्रा के पावन जल में ही डुबकी लगा सकेंगे। जबकि बीते कुछ दशकों में शिप्रा के साथ अन्य नदियों का संगम करवाकर सिंहस्थ पर्व आयोजित होता आया है। 1980 के सिंहस्थ में दूसरी नदी का जल शिप्रा में लाकर सिंहस्थ पर्व आयोजित किया गया था, तब से यही सिलसिला बरकरार है। लेकिन मोहन सरकार ने इस बार शिप्रा के जल से ही स्नान कराने का बीड़ा उठाया है।
कान्ह डायवर्शन डक्ट से भी मिलेगा लाभ
शिप्रा शुद्धिकरण के लिए कान्ह नदी के जल को भी शिप्रा में मिलने से रोका जा रहा है, ताकि श्रद्धालु स्वच्छ जल में डुबकी लगा सकें और उनकी आस्था पर कोई असर न हो। इसके लिए लगभग 30 किमी लंबाई (18.15 किमी कट एंड कवर भाग एवं 12 किमी टनल भाग) की कान्ह डायवर्शन क्लोज डक्ट परियोजना निर्माणाधीन है। जिसके कट एंड कवर भाग में खुदाई एवं पीसीसी कार्य, टनल भाग में चार शाफ़्ट के माध्यम से वर्टिकल एवं हॉरिजॉन्टल खुदाई का कार्य एवं कास्टिंग यार्ड में प्री कास्ट सेगमेंट की कास्टिंग का कार्य प्रगतिरत है। ये चार शाफ़्ट क्रमशः ग्राम पालखेड़ी, चिंतामन जवासिया, बामोरा एवं देवराखेड़ी में बनाए गए हैं। सितम्बर 2027 तक यह परियोजना पूर्ण होगी और कान्ह नदी का अशुद्ध पानी उज्जैन शहर की सीमा से बाहर-बाहर ही गंभीर डाउन स्ट्रीम में स्वच्छ कर छोड़ा जाएगा।
परियोजना की खास बातें
इस परियोजना से पतित पावनी मां शिप्रा सर्वदा प्रवाहमान रहेगी
सिंहस्थ के बाद भी पूरे साल पर्व स्नान के लिए स्वच्छ जल मिलेगा
सिलारखेड़ी जलाशय के रूप में पेयजल की वैकल्पिक सुविधा रहेगी
जलाशय के आसपास के ग्राउंड वाटर लेवल में इजाफा होगा
किसानों को खेती में भी सहायक होगा जलाशय