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‘कृषि और पशुपालन हमेशा एक-दूसरे के साथ-साथ चलते हैं’ प्रदेश में सबसे ज्यादा दुधारू पशु उज्जैन में


 

कृषकों की आय दोगुनी करने में पशुपालन की भूमिका पर

संभाग स्तरीय कार्यशाला आयोजित

    उज्जैन। शनिवार को होटल मित्तल पेरेडाइस में ‘कृषकों की आय दोगुनी करने में पशुपालन की भूमिका’ पर संभाग स्तरीय कार्यशाला आयोजित की गई। इस अवसर पर संयुक्त आयुक्त विकास श्री प्रतीक सोनवलकर, प्रभारी संयुक्त संचालक पशुपालन डॉ.एचव्ही त्रिवेदी, जिला अग्रणी प्रबंधक श्री अरूण कुमार गुप्ता, पशु चिकित्सा महाविद्यालय महू के प्रोफेसर और एचओडी डॉ.संदीप नानावटी, बायफ पुणे के डॉ.डीवी रांगणेकर, पशुपालन संचालनालय भोपाल के संयुक्त संचालक श्री डाबर, इन्दौर की देवी अहिल्या माता गोशाला के संचालक श्री रवि सेठी, आईटीसी के श्री गिरिराज शाह, सभी जिलों के पशुपालन अधिकारी और पशु चिकित्सा अधिकारी तथा अन्य सम्बन्धित विभागों के अधिकारी मौजूद थे।

    अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित कर कार्यशाला का शुभारम्भ किया। स्वागत भाषण और संचालन संयुक्त आयुक्त डॉ.संतोष श्रीवास्तव ने किया। डॉ.एचव्ही त्रिवेदी ने संभाग स्तर पर पधुधन और पशुपालन की भावी संभावनाओं और योजनाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने जानकारी दी कि उज्जैन संभाग में लगभग 43 लाख पशुधन है। तकरीबन 505 पशु चिकित्सा संस्थाएं है, जो सक्रिय रूप से पशु चिकित्सा कर रही हैं। उज्जैन के महिदपुर और तराना तथा शाजापुर जिले में गोवंश की कुछ उन्नत नस्लें विकसित की गई हैं। आगर-मालवा जिले में कुछ समय पूर्व ही केटल ब्रिडिंग फार्म बनाया गया है। समय-समय पर संभाग स्तर पर गोकुल महोत्सव का आयोजन शासन द्वारा दिये गये निर्देशों के परिपालन में किया जा रहा है। इस दौरान लगभग 5 लाख पशुपालकों का पंजीयन किया गया है।

    डॉ.त्रिवेदी ने बताया कि उज्जैन संभाग में तकरीबन 156 नवीन गोशालाएं प्रारम्भ करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिये समितियों का गठन भी कर लिया गया है।

    संयुक्त आयुक्त श्री प्रतीक सोनवलकर ने इस अवसर पर कहा कि आज की कार्यशाला बेहद प्रासंगिक है। उज्जैन संभाग में पशुपालन में उल्लेखनीय कार्य हुआ है। उज्जैन संभाग कृषि और पशुपालन में अग्रणी है। यहां के कृषक और पशुपालक बेहद जागरूक हैं, जो समय-समय पर परम्परागत तरीकों की जगह आधुनिक तरीकों का प्रयोग करते हैं। मध्य प्रदेश शासन द्वारा प्रदेश के एक लाख निराश्रित गोवंश के लिये लगभग एक हजार गोशालाएं बनाई जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। उन्होंने कहा कि उन्हें पूरी उम्मीद ही नहीं, बल्कि विश्वास है कि राज्य में सबसे पहले आगामी जून माह तक उज्जैन में गोशाला निर्माण के निर्धारित लक्ष्य को पूरा कर लिया जायेगा।

    श्री सोनवलकर ने अपील की कि इस कार्य को शासकीय कार्य के साथ-साथ एक अत्यन्त पुण्य का काम मानकर किया जाये, तो हम सभी को इसमें शत-प्रतिशत सफलता प्राप्त होगी। शासन-प्रशासन के साथ-साथ आम जनता का भी इसमें सहयोग अपेक्षित है। गोशाला निर्माण के लिये ऐसे निजी स्वसहायता समूह को भी चिन्हित किया जाये, जो इसमें आवश्यक सहयोग और सेवा देना चाहते हैं। जिला और खण्ड स्तर पर समय-समय पर बैठकें आयोजित की जायें तथा समाज और आम लोगों को भी उनमें सम्मिलित कर उनकी भूमिका से उन्हें परिचित कराया जाये।

    प्रो.संदीप नानावटी ने पॉवर पाइन्ट प्रजेंटेशन के माध्यम से पशुपालन के भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्व और 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के उपाय पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार छत्तीसगढ़ धान का कटोरा है, उसी प्रकार उज्जैन दूध का कटोरा है। पूरे मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा दुधारू पशु उज्जैन में हैं। पिछले कुछ वर्षों में हमने दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में बेतहाशा वृद्धि की है। उज्जैन और इन्दौर संभाग में पिछले 10 सालों में पशुपालन के क्षेत्र में निरन्तर प्रयासों से विकास हुआ है, लेकिन उत्पादन के साथ-साथ पशुपालकों की आय में वृद्धि करना भी जरूरी है।

    कृषि और पशुपालन हमेशा एक-दूसरे के साथ-साथ चलते हैं। पशुपालन की हमारे देश की जीडीपी में बहुत बड़ी भूमिका है। लगभग 18 प्रतिशत लोगों को रोजगार पशुपालन के माध्यम से मिलता है। कृषि की अपेक्षा पशुपालन में जोखिम न के बराबर है। हमारा लक्ष्य भूमिहीन किसान हैं। प्रदेश में साढ़े 6 लाख निराश्रित पशुओं के लिये सरकार द्वारा गोशालाएं बनाई जाना हैं। जो गाय दुधारू नहीं हैं, उनके गोबर और गोमूत्र को विक्रय कर अपेक्षित लाभ प्राप्त किया जा सकता है, जिससे गोशालाओं के संचालन में होने वाले खर्च को निकाला जा सके। ये सभी की महती जिम्मेदारी होना चाहिये।

    आज भी हमारे यहां आदिवासी पशुपालकों का पशुधन ही उनका बैंक है। एक प्रकार से चलता-फिरता एटीएम है। आज भी पैसों की जरूरत पड़ने पर घर में मौजूद पशुधन को उचित दामों में बेचा जाता है। दुग्ध उत्पादन में हमारा देश विश्व में अग्रणी है। प्रतिवर्ष 165.40 मिलीयन टन दुग्ध उत्पादन हमारे देश में किया जाता है। इसी प्रकार पूरे विश्व में अण्डे में तृतीय, चिकन में चतुर्थ और पोल्ट्री में पांचवा स्थान भारत का है। हमारे यहां पशुधन की कमी नहीं है लेकिन पशुपालकों और कृषकों की आय बढ़ाने के लिये एक बेहतर वित्तीय प्रबंधन की आवश्यकता है। हमारे मध्य प्रदेश में दुधारू गायों में मालवी, निमाड़ी, गाओलाओ और केंकथा नस्लें प्रमुख हैं, लेकिन दूध के लिये हम मुख्य रूप से भैंसों पर निर्भर हैं। दुधारू गायों की हमारे प्रदेश में कमी है, इसीलिये इनकी नस्ल में सुधार हमारा मुख्य लक्ष्य है। गाय का दूध भैंस के दूध की अपेक्षा कम गाढ़ा होता है। इसमें कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है, इसीलिये यह सुपाच्य होता है और इसकी कई अन्य विशेषताएं हैं, जिसे विकसित कर गाय के दूध को अच्छे दामों में बेच सकते हैं।

    पशुपालकों की आय को दोगुना करने के लिये दुग्ध उत्पादन की लागत को कम किया जाये और पशुपालकों तथा ग्राहकों के बीच बिचौलियों के किरदार को खत्म किया जाये। पशुपालकों को मार्केटिंग की भी पूरी-पूरी जानकारी दी जाये, जिससे वे उत्पादन की लागत को निकालने के बाद मुनाफा भी कमा सके। पशुओं को संतुलित आहार दिया जाये। दूध के प्रमुख स्त्रोत भैंस के नवजात की मृत्यु दर में कमी भी हमें लाना होगी, इसीलिये पशुपालकों को जानकारी दी जाये कि बछड़े के जन्म के एक घंटे के भीतर उसे उसकी मां का कोलेस्ट्रम से भरपूर दूध पिलाया जाये, ताकि बछड़े में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास हो सके।

    इसके अलावा क्रॉस ब्रिडिंग को बढ़ावा दिया जाये। कम्युनिटी ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा दिया जाये, जिसमें एक गांव से सभी पशुपालकों को एकसाथ शहर में लाकर दुग्ध उत्पादों का विक्रय किया जाये। इसके अलावा समस्त पशुपालकों के लिये यह अत्यन्त आवश्यक है कि वे अपने व्यापार का लिखित में लेखा-जोखा अवश्य रखें।

    एकीकृत प्रक्षेत्र फार्मिंग (मल्टीफार्मिंग) से भी काफी हद तक कृषकों की आय में बढ़ौत्री की जा सकती है। इसके लिये कृषक अपनी कृषि भूमि को अलग-अलग हिस्सों में बांटें। एक हिस्से में तालाब, एक में उद्यानिकी फसलें, एक में पारम्परिक फसलें और एक हिस्से में पशुपालन किया जाये। ये सभी एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं तथा एक-दूसरे के ऊपर निर्भर करते हैं। यदि किसी कारण से एक हिस्सा खराब हो भी जाता है तो कृषक दूसरे हिस्सों से नुकसान की भरपाई कर सकते हैं।

    डॉ.रांगणेकर ने कहा कि प्राचीनकाल से हमारे किसान खेती के लिये और खाद के लिये पशुधन के ऊपर निर्भर रहे हैं। हमारे भारतीय समाज में पशु भी हमारे परिवार का एक अंग होता है। कोई भी पशु निरूपयोगी नहीं है। पशुधन विकास को स्थिरता देना होगी। जलवायु परिवर्तन का पशुओं पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, इस बात का हमें ध्यान रखना होगा। भारतीय पशुपालन में महिलाओं का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है, इसलिये उनका सशक्तिकरण भी बेहद जरूरी है। समय-समय पर महिलाओं के लिये ट्रेनिंग और एक्सटेंशन प्रोग्राम आयोजित किये जाना चाहिये। पशुपालन हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में सदियों से किया जा रहा है, इसलिये ग्रामीणजनों के साथ सामंजस्य बैठाना बहुत जरूरी है।

    पशुपालकों के मल्टीपल और ब्रिडर ग्रुप्स बनाये जायें। उनकी जरूरत और प्राथमिकताओं को ध्यान में रखकर प्रोजेक्ट बनाये जायें। गोवंश में सन्तान उत्पत्ति के लिये प्रयुक्त होने वाले नरों का क्षेत्र हर 3 वर्ष में बदला जाये, ताकि क्रॉस ब्रिडिंग अधिक से अधिक हो सके।

    डॉ.अशोक जापे ने कहा कि पशुपालन में आधुनिक तकनीकों का प्रयोग कर उन्नत नस्लों की प्राप्ति की जा सकती है। एमब्रायो ट्रांसफर तकनीक को अपनाया जाये। इसमें अच्छी नस्ल के पशुओं के एमब्रायो एकत्र कर संग्रहित किये जाते हैं।

    पशुपालन में बैंकों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए एलडीएम श्री अरूण कुमार गुप्ता ने कहा कि वर्तमान में किसी भी व्यवसाय को शुरू करने और उसे निर्बाध रूप से संचालित करने में बैंकिंग सेक्टर का विशेष महत्व है। कृषि क्षेत्र में लोन देना बैंकों की प्राथमिकताओं में से एक है। शासन द्वारा भी विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत कृषकों को ऋण मुहैया कराया जाता है। कृषकों की आय को दोगुना करने के लिये उनके उत्पादन का मिनीमम सपोर्ट प्राइज उन्हें अवश्य मिलना चाहिये, तभी किसानों और पशुपालकों की तरक्की हो सकेगी। पशुपालन के अन्तर्गत विभिन्न प्रोजेक्ट्स में लोन की सुविधा उपलब्ध है। बैंकिंग सेक्टर हमेशा कृषकों के साथ है और उन्हें आवश्यक सहयोग प्रदान करती रहेगी।

    संयुक्त संचालक पशुपालन भोपाल श्री डाबर ने पशुपालकों के लिये वर्तमान में शासन द्वारा संचालित योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि शासन की योजनाओं का लाभ एक-एक किसान, एक-एक पशुपालक तक पहुंचना बेहद जरूरी है। वर्मी कम्पोस्ट और ऑर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। पशुपालन विभाग के अन्तर्गत 10 योजनाएं प्रमुख हैं। पांच प्रोत्साहन योजनाएं आचार्य विद्या सागर योजना के अन्तर्गत 2 से 10 पशु किसानों को दिये जाते हैं। उन्नत नस्लें तथा दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देना इस योजना का मुख्य उद्देश्य है। छोटे किसानों में मुर्गीपालन को बढ़ावा देने के लिये बेकयार्ड योजना और कड़कनाथ योजना चलाई जा रही है। इसके अलावा गोकुल महोत्सव पिछले 2 वर्षों से आयोजित किया जा रहा है, जिसमें शिविर लगाकर पशुपालकों की समस्याओं का निराकरण किया जाता है। पशुपालन विभाग के टोलफ्री नम्बर 1962 में चौबीस घंटे की सेवा दी जाती है, जिसमें पशुपालकों की सुविधा, समस्या और शिकायतों का निराकरण किया जाता है। घर-घर पहुंचकर पशु चिकित्सा कराई जा रही है। पशुओं में होने वाले रोग ब्रूसेलोसिस के वेक्सिनेशन के लिये विशेष अभियान चलाया जा रहा है।

    श्री रवि सेठी ने गोशालाओं के प्रबंधन के ऊपर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गोशालाओं में गायों को पानी पिलाने तथा उनकी अन्य सुविधाओं का विशेष ध्यान रखना बेहद जरूरी है। गोबर और गोमूत्र को एकत्रित कर उनका विक्रय किया जा सकता है। बाड़े में गायों को घूमने-फिरने के लिये पर्याप्त जगह देनी चाहिये। गायों को पिलाने वाले पानी में निर्धारित मात्रा में चूना अवश्य मिलाया जाना चाहिये।

    गोशालाओं को स्वावलम्बी बनाये जाने के लिये ये जरूरी है कि हमें चारा खरीदने की नौबत न आये। एक सीमित क्षेत्र में हरे चारे के लिये ‘एझोला फार्मिंग’ की जा सकती है। दुधारू और अदुधारू गायों का अनुपात गोशालाओं में 60:40 होना चाहिये।

    गोशालाओं को आर्थिक स्वावलम्बी बनाने के लिये सीएसआर के अन्तर्गत उपलब्ध आर्थिक सहयोग के लिये संचालकों को सक्रिय प्रयास करना होंगे। गायों से प्राप्त गोबर और गोमूत्र को उचित दामों में बेचकर भी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है, जिससे गोशालाओं के रख-रखाव में आर्थिक आजादी मिलेगी। वर्तमान में फिनाइल गोनाइल के भी अच्छे दाम पशुपालकों को प्राप्त हो रहे हैं। हमें इस बात को समझना जरूरी है कि हम गाय को नहीं बल्कि गाय हमें खिलाती है।

    आईटीसी के श्री गिरिराज शाह द्वारा कार्यशाला में पशुपालन में आईटीसी के भूमिका पर प्रकाश डाला गया। इसके बाद द्वितीय सत्र में पशुपालन के महत्व, इसमें संभावनाएं और वर्तमान चुनौतियों पर ग्रुप डिस्कशन किया गया। आभार प्रदर्शन डॉ.संतोष श्रीवास्तव द्वारा किया गया।

 

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