पद्मश्री डॉ. हरिभाउ वाकणकर की स्मृति होंगी पुनः ताजा
ताकि आने वाली पीढ़ी को उनके व्यक्तित्व, कार्य तथा उनके शोध के बारे में जानकारी मिल सके-22 से 24 फरवरी तक होगा संगोष्ठी का आयोजन-देशभर के विश्वविद्यालय, अनुसंधान संस्थाओं के साथ आस्ट्रेलिया के विद्वान भी लेंगे हिस्सा
उज्जैन। भीमबेटका के चित्रित शैलाश्रयों की खोज, लुप्त सरस्वती के मार्ग, डोंगला ग्राम में स्थित कर्क रेखा, कायथा, दंगवाड़ा, रूणीजा आदि प्रागैतिहासिक ग्रामों की खोज करने वाले पद्मश्री डॉ. विष्णु श्रीधर (हरिभाउ) वाकणकर के जन्म शताब्दी वर्ष के अंतर्गत वाकणकर भारती संस्कृति अन्वेषण न्यास द्वारा 22 से 24 फरवरी तक होने जा रहा है। जिसमें देश के अलग-अलग विश्वविद्यालय तथा अनुसंधान संस्थाओं के साथ आस्ट्रेलिया के विद्वान भी हिस्सा लेंगे। संगोष्ठी का संचालन रॉक आर्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा किया जाएगा तथा प्रायोजक भारतीय इंतिहास अनुसंधान परिषद रहेगी।
भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद अध्यक्ष अरविंद जामखेड़कर, रॉक आर्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया महासचिव प्रो. गिरिराज कुमार एवं डॉक्टर वाकणकर संस्कृति अन्वेषण न्यास के सचिव दिलीप वाकणकर, शैलचित्र विशेषज्ञ एरविन न्यमायर आस्ट्रेलिया ने बताया कि देवास रोड़ स्थित आश्रय होटल में होने वाले रॉक आर्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया के इस 23वें अधिवेशन का उद्देश्य पद्मश्री डॉ. हरिभाउ वाकणकर की स्मृति को पुनः ताजा करना है ताकि आने वाली पीढ़ी को उनके व्यक्तित्व, कार्य तथा उनके शोध के बारे में जानकारी मिल सके। साथ ही भारतीय शैलचित्र शोध की सद्य स्थिति तथा नवीन प्रयत्नों की आवश्यकता परमंथन करना है जिससे भारतीय शैल चित्रों को विश्व मान्यता मिले। आपने इस बात पर दुख जताया कि फिलहाल वाकणकर परिवार, मित्र मंडली धन जुटाकर कार्यभार संभाल रहे हैं, राज्य या केन्द्र सरकार से कुछ भी सहायता नहीं मिल रही। आपने विविध संस्थाओं, सरकारी विभागों, व्यापारियों तथा इंडस्ट्री से अपील की है कि वे सामाजिक एवं संस्कृति संवर्धन तथा प्रचार के कार्य में आगे आकर वित्तीय सहायता करें।