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गुरूकुलों में विद्याध्ययन ट्रेंड में लाना होगा, गुरूकुल संस्कृति पर मुक्त चर्चा आयोजित


गुरूकुलों का आधार आचार्य हैं, इनके निर्माण के लिए विधिवत केन्द्र बनाये जाएंगे

गुरूकुलों की कार्यपद्धति का जन-जन  में प्रसार किया जाए

    उज्जैन ।  तीन दिवसीय अंतराष्ट्रीय गुरूकुल सम्मेलन के अंतिम दिवस श्री मुकुल कानिटकर के सानिध्य में गुरूकुल संस्कृति और शिक्षा पदध्ति पर मुक्त चर्चा का आयोजन किया गया। इस दौरान देश के विभिन्न प्रांतो से आये आचार्यो और बुध्दिजीवियों ने अपने विचार व्यक्त किये और गुरूकुल शिक्षण पद्धति को और बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण सुझाव दिये। चर्चा में बताया गया कि स्कूलों में संस्कृ‍त विषय और योग की शिक्षा को अनिवार्य किया जाना बेहद जरूरी है। श्री कानिटकर ने चर्चा के दौरान कहा कि गुरूकुलों का आधार आचार्य हैं अत: इनके निमार्ण के लिए भारतीय शिक्षण मंडल द्वारा विधिवत केन्द्र बनाये जाएगे।  इन केन्दों में गुरूकुलों में शिक्षण के लिए आचार्यों को तैयार किया जाएगा।

    जोधपुर से आये रिटायर्ड इंजीनियर श्री प्रदीप भारद्वाज ने कहा कि वर्तमान समय में हमें मानसिक रूप से स्थिर होने की जरूरत है, जिसके लिए गुरूकुलों में विदयार्थियों को कराये जाने वाले मेडिटेशन (ध्यान) को हम सभी को अपनाना होगा। इसके बिना हम मानसिक शांति प्राप्त नहीं कर सकेंगे।

    विक्रम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. दीनदयाल वेदिया ने कहा कि गुरूकुलों में एक रिसर्च सेंटर अथवा लेबोरेटरी का भी वृह्द स्तर पर निर्माण किया जाना चाहिए। इस पर श्री कानिटकर ने जानकारी दी कि नागपुर में एक रिसर्च सेंटर का निमार्ण शीघ्र ही किया जाएगा।

    चैन्नई के गुरूकुल से आये श्री राजेश. आर ने सुझाव दिया कि गुरूकुलों में उचित तरीके से प्रबंधन किये जाने हेतु वहां पर प्रशासकों की नियुक्ति अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए। इसके अलावा गुरूकुलों की कार्य पदध्ति का जन-जन में वृह्द स्तर पर प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए।

    भारत में एमबीबीएस और बीई की डिग्री प्राप्त करने के बाद डॉक्टर्स और इंजीनियर्स को प्रैक्टिस शुरू करने के पूर्व एक वर्ष गुरूकुलों में भी नैतिक शिक्षा दी जाना चाहिए, ताकि उनके भीतर मानव सेवा की भावना सर्वोपरि हो सके।

    चर्चा में सुझाव दिये गये कि गुरूकुलों में शिक्षण को इस तरह से रिप्रजेंट किये जाने की आवश्यकता है, ताकि लोग अपने बच्चों को उनमें शिक्षित कराने के लिए प्रोत्साहित हों। इसके लिए गुरूकुलों में विद्याध्ययन को एक ट्रेंड के रूप में स्थापित करना होगा। गुरूकुलों में ग्रीष्म अवकाश में विशेष ग्रीष्मकालीन सत्र लगाये जाने चाहिए जिनमें बच्चों के अलावा युवाओं और अभिभावकों को भी हिस्सा लेना चाहिए।

    सैलाना रतलाम से आये आशीष बोहरा ने सुझाव दिया कि आज के समय में गुरूकुलों में विद्याध्ययन कर निकलने वाले बच्चे भारत के स्वर्णिम भविष्य निमार्ण में सशक्त सहभागिता  कर सकें, ऐसा प्रयास आचार्यो का होना चाहिए। गुरूकुल संस्कृति को युवा अनुकूल बनाये जाने की भी जरूरत है। इसके लिए युवा पीढ़ी को इससे परिचित करवाने की आवश्यकता है। इसके अलावा आईआईटी के विषयों को भी गुरूकूलों में पढ़ाया जाना चाहिए।

    प्रायवेट स्कूलों में भी योग की शिक्षा को अनिवार्य किया जाना चाहिए ताकि विदयार्थियों मे नैतिक मूल्यों और आदर्शों का विकास हो सके। प्राचीन समय में समाज में गुरूकुलों की जो छव‍ि समाज में बनायी गयी थी, उसकी पुर्नस्‍थापना की जाने की जरूरत है।

    रोबोटिक्स में कार्यरत किरण शर्मा ने सुझाव दिया कि गुरूकुलों की शिक्षण पद्धति का वृह्द स्तर पर रिसर्च कर उसे संपूर्ण विश्व के सामने लाये जाने की भी जरूरत है। इसके अलावा गुरूकुलों में केस स्टडीज भी करवायी जानी चाहिएं। श्री मुकुल कानिटकर ने कहा कि अनुसंधान नि: संदेह भारतीय संस्कृति का प्राण है, लेकिन अनुसंधान का विधिवत दस्तावेजीकरण भी किया जाना चाहिए। इसके पश्चात श्री मुकुल कानिटकर द्वारा समस्त अतिथियों के समक्ष संकल्प पत्र का वाचन किया गया।

    इसमें सभी ने एक स्वर में कहा कि हम भारत, नेपाल, म्यामांर, भूटान, थाईलेंड आदि देशों से आये प्रतिनिधि, शोधार्थी एवं शिक्षक तीन दिवसीय अंतराष्ट्रीय गुरूकुल में सहभागी रहे। इन तीन दिनों में गुरूकुल शिक्षा को लेकर हुए विचार विमर्श के उपरांत हम यह संकल्प लेते हैं कि प्राचीन काल से समर्थ व स्वावलंबी समाज का  निर्माण करने वाली गुरूकुल शिक्षा प्रणाली को प्रोत्साहन देने के लिए मन, वचन और कर्म से किर्याशील रहेंगे और अपने अपने क्षेत्र में संचालित गुरूकुलों को समाज पोषित एवं स्वाबलंबी बनाने हेतु योगदान देंगे। गुरूकुलों की शिक्षा को युगानुकूल एवं देशानुकूल बनाने के लिए प्रारूप बनाने का कार्य करेंगे। आधुनिक शिक्षा संस्थानों में गुरूकुल शिक्षा के तत्व, वैज्ञानिक शिक्षण पद्धति तथा शैक्षणिक वातावरण निर्मित कराने हेतु व्यक्तिगत तथा संस्थागत स्तर पर कार्य करेंगे। व्यक्तित्व का सर्वागीण विकास कर उन्हें समाज एवं राष्ट्रोपयोगी नागरिक बनाने वाली गुरूकुल शिक्षा प्रणाली में अपने बालक बालिकाओं को प्रवेश दिलाने हेतु अभिभावकों को प्रेरित करेंगे। समाज और मानवता का कल्याण करने वाली गुरूकुल शिक्षा प्रणाली के विभिन्न आयामों पर शोध करने एवं कराने हेतु उसे प्रकाशित करके विश्व के उन्नयन में लगाने हेतु शिक्षाविदों को प्रोत्साहित करेंगे। सहयोग करने वालों को साथ लेकर, न करने वालों को क्रमश: मनाकर तथा विरोध करने वालों को प्रयत्‍न पूर्वक अनुकूल बनाकर अंतत: हमारे लक्ष्य को पूर्ण करके ही मानेंगे।

 

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