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गुरूकुलों के कारण विकसित हो रही है भारतीय शिक्षा पद्धति


 

अनादि काल से ही भारतीय शिक्षा पद्धति पाठशालाओं और गुरूकुलों के कारण विश्वविख्यात रही है।  अनेक देशों से ज्ञानार्थी छात्र विद्या ग्रहण करने के लिए भारत में आते रहे हैं। नालंदा, तक्षशिला, वल्लभी, विक्रमशिला से सुविख्यात गुरूकुल अत्यंत विराट स्वरूप में कार्य करते थे। यहाँ के छात्रों की संख्या सहस्त्रों में थी और आचार्य भी बड़ी संख्या में थे। वैदिक सनातन परंपरा के साथ ही बौद्ध तथा जैन आदि भारतीय मूल के मतों में भी गुरूकुलों का प्रचलन रहा है।  11 वीं- 12वीं शताब्दी में ध्वस्त किये गये नालंदा व तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय उन दिनों बौद्ध मत का ही परिपालन करते थे।

    इस बात के प्रमाण हैं कि सन 1823 तक देश के प्रत्येक ग्राम में बड़ी संख्या में पाठशालाओं के द्वारा समाज के सभी वर्गों को जीवनोपयोगी शिक्षा उपलब्ध कराई जाती रही है। साथ ही उन्नत शिक्षा हेतु आवासिय गुरूकुलों की व्यवस्था भी प्रचलित रही है। गृह-गुरूकुलों के माध्यम से भी ज्ञान परंपरा सदैव अक्षुण्ण रखी गई।

    आवासीय व्यवस्था, समग्र शिक्षा तथा अनुभूतिजन्य प्रायोगिक प्राविधि ये कुछ विशेषताएं हैं जो गुरूकुल शिक्षा को आज भी प्रासंगिक बनाती हैं। साक्षात्कारी आचार्यों के सत्संग में रहकर विद्यार्थी अपने व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करते हैं। वेद, आगम, शास्त्र, दर्शन आदि के साथ ही निसर्ग विज्ञान, आयुर्वेद, शिल्प आदि का उन्नत शिक्षण गुरूकुलों में दिया जाता रहा है।  आज की शब्दावली में ये केवल शिक्षा केंद्र ही नहीं अपितु अत्यंत प्रभावी अनुसंधान केंद्र भी थे। 1835 के बाद अंग्रेजों द्वारा थोपी हुई शिक्षा का सर्वत्र बोलबाला हुआ।

    भारतीय संस्कृति की विशेषता यह है कि इस संघर्ष एवं राजनैतिक उथलपुथल के बाद भी ज्ञानार्जन की वैज्ञानिक विधि पाठशाला एवं गुरूकुल को हमने जीवित रखा। भले ही लोकप्रियता न्यूनाधिक रही हो किन्तु हमारी पारंपरिक व्यवस्था पूर्णरूपेण कभी भी समाप्त नहीं हुई। बड़े-बड़े संस्थागत गुरूकुलों का संचालन जब अत्यन्त दुष्कर एवं असंभव हो गया तब गृह-गुरुकुलों की परम्परा विकसित हुई। विद्वान आचार्य अपने घरों में ही छात्रों के सम्पूर्ण योग-क्षेम की व्यवस्था करते हुए वेद शास्त्र आदि का ज्ञान सम्पादित करते रहे।

    समय-समय पर श्रीमत शंकरदेव के सत्र, रामानुजादि सम्प्रदाय, आर्य समाज आदि धार्मिक, आध्यात्मिक आन्दोलनों ने विभिन्न रुपों में गुरुकुलों को पुनर्जीवित एवं प्रस्थापित किया। वर्तमान में भी पूरे देश में अनुमानत: एक सहस्त्र से अधिक गुरुकुल संचालित हो रहे हैं।

 

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