विश्व की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा पद्धति गुरुकुल प्रणाली है - श्री सुखदेव व्यास
उज्जैन । प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति एक पूर्ण शिक्षा व्यवस्था है। गुरुकुल शिक्षा पद्धति से अगर शिक्षा दी जाती है तो 24 वर्ष में ही शिक्षित युवा तैयार हो जाता है। प्राचीन युग में प्रत्येक गांव में गुरुकुल हुआ करते थे। उसमें स्थानीय भाषा या संस्कृत में शिक्षा दी जाती थी। अंग्रेजों ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को ध्वस्त कर अपने स्वार्थ के लिए अंग्रेजी शिक्षा पद्धति लागू की। अंग्रेज यह प्रचारित करते थे कि भारतीयों के पास उनकी अपनी कोई शिक्षा पद्धति नहीं है।
सन 1931 ईस्वी में गोलमेज सम्मेलन में महात्मा गांधी लंदन गए थे। उस समय अंग्रेज अधिकारियों ने गांधी जी से कहा था -" यदि अंग्रेज भारत नहीं आते तो भारत की शिक्षा व्यवस्था बन ही नहीं पाती।" गांधी जी को यह बात सही नहीं लगी, उन्होंने विख्यात इतिहासकार श्री धर्मपाल से कहा कि भारत की पुरातन शिक्षा व्यवस्था के बारे में प्रमाण एकत्रित करें।
गांधी जी के कहने पर इतिहासकार धर्मपाल भारत के प्राचीन इतिहास की खोज करने में संलग्न हो गए। उन्होंने 40 वर्ष तक अध्ययन और अध्यापन किया तथा उनके दस्तावेज एकत्रित किए। एकत्रित दस्तावेजों का विश्लेषण कर उन्होंने यह सिद्ध किया कि -" अंग्रेजों के आने के पूर्व भारत की शिक्षा व्यवस्था अत्यन्त ही श्रेष्ठ थी। भारत के प्रत्येक परिवार में शत-प्रतिशत साक्षरता थी और भारतीय जन अपने बच्चों को शिक्षित करने में अपना तन-मन-धन खर्च करते थे।
विलियम एडम मैकाले के गुरु थे। मैकाले भारत की शिक्षा पद्धति के विषय में जो खोज करते थे, उसे अपने गुरु विलियम एडम के पास भेजते थे। उसे आधार बनाकर विलियम एडम ने भारत की शिक्षा पद्धति और व्यवस्था पर 1780 पृष्ठों की रिपोर्ट तैयार की थी। उस रिपार्ट को ब्रिटिश संसद में पेश किया गया और व्यवस्था पर भाषण किया था। ये सभी रिकार्ड के रुप में अभी तक सुरक्षित है। रिपोर्ट के अंश :-
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मैने पूरा भारत देखा, लेकिन भारत देश में कहीं भी स्थान पर भिखारी देखने को नहीं मिला। भारत इतना समृद्ध है।
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सूरत शहर में जितनी सम्पत्ति है, उतनी यूरोप में सभी शहरों की संम्पत्ति नहीं है। अर्थात भारत का शहरी इलाका व्यापार-धंधों में इतना समृद्ध था, कि यहां किसी प्रकार की बेरोजगारी नहीं थी।
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भारत में जितना भी धन, वैभव, संम्पत्ति है, वह भारत की शिक्षा व्यवस्था के कारण है। जिसका तात्पर्य है शिक्षा रोजगारपरक और योग्यता पर आधारित होने के कारण यह संमृद्धि थी।
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भारत में लगभग शत-प्रतिशत साक्षरता है। दक्षिण भारत में साक्षरता 100 प्रतिशत है। दक्षिण भारत अर्थात कर्नाटक, तलंगाना, तमिलनाडू, उत्तर भारत में लगभग 82 प्रतिशत, मध्य भारत में 87 प्रतिशत साक्षरता है। मैं कह सकता हूँ सम्पूर्ण भारत साक्षर है अर्थात यहां पर कोई अनपढ़ नहीं है।
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भारत में 07 लाख 32 हजार गांव हैं, जहां से रेवेन्यू प्राप्त होता है और कोई भी गांव ऐसा नहीं है, जहां गुरुकुल या स्कूल नहीं हो। यहां स्कूलों को गुरुकुल कहा जाता है। इससे यह सिद्ध होता है कि गुरुकुलों में पढ़ने वाले ब्राह्मण विद्वान और गुरु की योग्यता वाले थे।
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गुरुकुलों में 200 से 20 हजार तक छात्र पढ़ते हैं, जिनमें मोनिटोरियम शिक्षण पद्धति है। यही कारण है यहां से निकलने वाला विद्यार्थी सब विषयों में पारंगत होता था।
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गुरूकुलों में विद्या और शिक्षा दोनों प्रदान की जाती है। नैतिक, आध्यात्मिकता, न्याय आदि को सिखाना विद्या है। गणित, रसायनशास्त्र, विज्ञान आदि को सिखाना शिक्षा है।
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गुरूकुलों में 8 विषयों गणित, खगोलशास्त्र, धातु विज्ञान, इंजीनियरिंग, ससायन, चिकित्साशास्त्र, भौतिक शास्त्र पढ़ाये जाते थे। एक विषय पूर्ण होने पर दूसरा विषय पढ़ाया जाता है। गुरूकुलों से निकलने वाला छात्र विद्वान होकर ही निकलता है।
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भारत में विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा होती थी। ऐसे गुरूकुलों की संख्या 15,800 सन् 1935 तक थी।
विशेष रेखांकित करने वाली बात है कि ब्रिटेन के तत्कालीन शिक्षामंत्री ने भी इस रिपोर्ट के आधार पर स्वीकार किया कि भारत पूर्ण शिक्षित देश रहा है। भारत में अंग्रेजों के आने के पूर्व जब 7 लाख 32 हजार से भी अधिक स्कूल थे, वहीं इसके विपरीत तत्कालीन समय में ब्रिटेन में मात्र 240 स्कूल थे।
मैकाले ने ब्रिटिश संसद में कहा था कि भारत को यदि गुलाम बनाना है तो उसकी शिक्षा पद्धति को ध्वस्त किया जाए। इसी आधार पर ब्रिटिश सरकार ने भारतीय शिक्षा अधिनियम द्वारा स्थानीय भाषा और संस्कृत में शिक्षा देने को गैरकानूनी घोषित कर अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा पद्धति लागू कर दी थी।
आज हमारा देश स्वतंत्र है और स्वतंत्रता को 71 साल हो चुके हैं, फिर भी हम अंग्रेजी के माध्यम से शिक्षा दे रहे हैं। भारत में स्थानीय भाषा और संस्कृत में शिक्षा देने के स्थान पर अंग्रेजी के माध्यम से शिक्षा देने से देश की बेरोजगारी में वृद्धि हो रही है। भारतीय शिक्षा व्यवस्था अत्यन्त ही समृद्ध थी और 100 प्रतिशित साक्षरता थी। यह हमारा दुर्भाग्य था कि 100 प्रतिशत साक्षर देश अंग्रेजों के कारण अल्प-साक्षर देश में बदल गया। अंग्रेज हमारी शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करके चले गये। जब हमारे देश में भारतीय भाषाओं में शिक्षा देने की व्यवस्था थी तब हमारा देश विकसित था और आज हमारा देश शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़कर विकासशील देश की श्रेणी में चल रहा है। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम पुन: अपनी प्राचीन गुरूकुल शिक्षा प्रणाली की ओर लौटें।