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प्राचीन गुरूकुलों की कलाओं और विद्याओं से परिचित हुए लोग, संस्कृति और विज्ञान का अनूठा संगम थे हमारे गुरूकुल


गुरूकुलों की दिनचर्या की भी आकर्षक प्रस्तुतियां दी गई

उज्जैन । शनिवार से शुरू हुए तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय गुरूकुल सम्मेलन की प्रथम सांस्कृतिक कार्यक्रमों की संध्या पर गुरूकुलों की दिनचर्या और वहां विद्यार्थियों को सिखाई जाने वाली विभिन्न कलाओं और विद्याओं से सम्मेलन में आए लोग परिचित हुए।  इस कार्यक्रम में गुरू कार्षणिय वेद विद्यालय गोकुल उत्तर प्रदेश, एएस बालासाहू गुरूकुल रत्नागिरी महाराष्ट्र, मैत्रेय वेद विज्ञान प्रतिष्ठान कर्नाटक और ऋषि कण्व वेद विद्या गुरूकुल प्रतिष्ठान उज्जैन से आए विद्यार्थियों ने सहभागिता की। सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरूआत वेद पाठन से की गई।  इसके पश्चात मैत्रेय गुरूकुल, प्रबोध गुरूकुल और वेद विद्या प्रतिष्ठान द्वारा गुरूकुल में सिखाई जाने वाली विद्याओं और कलाओं का संक्षिप्त परिचय दर्शकों को दिया गया।

सांस्कृतिक कार्यक्रम के सूत्रधार आपस में संस्कृत और शुद्ध हिन्दी में रोचक वार्तालाप कर कार्यक्रम का संचालन कर रहे थे। बताया गया कि विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा हमारी भारतीय शिक्षण पद्धति को बहुत हानि पहुंचाई गई और गुरूकुल का ह्रास किया गया। भारत के विश्वगुरू बनने के लिए प्राचीन गुरूकुल पद्धति की पुन: स्थापना की जाने की आवश्यकता है। एक स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए गुरूकुकलों की फिर से स्थापना की जाना चाहिए।  

सांस्कृतिक कार्यक्रमों की कड़ी में वेद पाठन के बाद वेद श्रवण किया गया।  बताया गया कि आधुनिक विज्ञान में भी गुरूकुलों के विद्यार्थी उत्कृष्ट थे।  गुरूकुलों में प्रात:काल होने वाले व्यायाम की भी आकर्षक प्रस्तुति दी गई। लघुरूप से योगा प्रदर्शन किया गया।  गुरूकुलों में गायन, वादन, नृत्यकला और चित्रकला भी सिखाई जाती थी। इसी कड़ी में नृत्य द्वारा भगवान शिव की आराधना की प्रस्तुति दी गई। गुरूकुलों में पांच शिक्षण पद्धितियों के माध्यम से विद्यार्थियों को शिक्षित किया जाता था।  गुरूकुलों में गणवेश की व्यवस्था इस लिए कि गई थी ताकि एक राजा और एक आम आदमी के बच्चों के बीच ऊंच-नीच की भावना उत्पन्न न हो।

सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शलाका परीक्षण के बारे में भी बताया गया। इसमें परीक्षार्थियों से वेदों एवं पुराणों का कोई भी श्लोक का प्रथम शब्द पूछ कर उसका भावार्थ बताने की परीक्षा ली जाती थी।  गुरूकुलों में संस्कृति और विज्ञान का अनूठा संगम देखने को मिलता था। गुरूकुलों में शिक्षण संस्कार आधारित होता था ताकि यहां के विद्यार्थी समाज के लिए एक आदर्श बन सके।

वर्तमान में संचालित गुरूकुलों के बारे में भी कार्यक्रम में बताया गया।  गुरूकुल शिक्षण पद्धति का होना मतलब संस्कृत और संस्कृति का रक्षण है। हेमचंदाचार्य संस्कृत पाठशाला महाराष्ट्र से आए बच्चों द्वारा वैदिक गणित के सवाल चुटकियों में हल कर सभी दर्शकों को आश्चर्य चकित किया गया। ये बच्चे ह्यूमन कैल्क्यूलेटर जैसे ही थे। दर्शकों द्वारा भी अंक गणित से जुड़े कई जटिल प्रश्नों का केवल कुछ ही सैकण्ड में इनके द्वारा जवाब दिया गया जिससे सभी लोग को अचंभित रह गए। कार्यक्रम में बताया गया कि गुरूकुल के ये बच्चे सारा कैल्क्यूलेशन अपने मस्तिष्क में ही कर लेते हैं, उन्हें कागज और कलम की आश्यकता भी नहीं पड़ती। नि:संदेह प्राचीन गुरूकुलों में दी जाने वाली शिक्षा वर्तमान पाश्चात्य शिक्षण पद्धति से कहीं आगे थी। गुरूकुलों द्वारा दी जाने वाले सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का दर्शकों ने आत्ममुग्ध होकर आनंद लिया। प्रत्येक प्रस्तुति पर तालियों की गड़गड़ाहट से डोम गुंजायमान हो जाता था।  

फोटो संलग्न।  

 

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