गेहूं सघनीकरण पद्धति अपनाकर ग्राम झांझाखेड़ी के किसान ने 20 प्रतिशत अधिक उत्पादन लिया
उज्जैन । विक्रमसिंह नागदा तहसील के छोटे से गांव झांझाखेड़ी के रहने वाले हैं। इनके पास 3.59 हेक्टेयर सिंचित भूमि है। सिंचाई के लिये कुए और नलकूप का उपयोग करते हैं। पिछले कुछ समय से वे कृषि विभाग के आत्मा प्रोजेक्ट के समपर्क में आये और विभिन्न संगोष्ठियों एवं प्रशिक्षण से सीख लेकर उन्होंने गेहूं सघनीकरण पद्धति का अपनाने का निर्णय लिया। उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि इस पद्धति को अपनाकर वे 12 की बजाय 15 क्विंटल प्रति बीघा गेहूं का उत्पादन कर सकते हैं, वह भी बिना किसी अतिरिक्त व्यय के।
कृषक विक्रमसिंह को ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी श्री मनोज हेडाऊ द्वारा तकनीकी सलाह दी गई। उन्होंने सलाह पर गेहूं सघनीकरण की पद्धति को अपनाया, जिससे लागत भी कम हुई और उत्पादन बढ़ गया। साथ ही गेहूं के आड़े पड़ने की समस्या से भी मुक्ति मिली। उल्लेखनीय है कि फसल सघनीकरण पद्धति में बीज व पानी की उचित मात्रा, जैविक खाद के प्रयोग, खरपतवार एवं कीट नियंत्रण के लिये जैविक व यांत्रिक तरीकों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। इस पद्धति का मुख्य उद्देश्य भूमि, जल, जैविक कृषि संसाधनों तथा सौर किरणों का समुचित उपयोग कर उत्पादन बढ़ाना है। इस नई पद्धति से गेहूं के एक पौधे में कम से कम 15 से 20 बालियां आती हैं।
सघनीकरण की विधि में बुवाई के समय पंक्ति से पंक्ति एवं बीज से बीज की दूरी अधिक रखी जाती है। इससे बीज की खपत कम होती है और कल्ले अधिक निकलते हैं। गेहूं की खेती में 60 से 70 प्रतिशत तक बीज की बचत होती है। इस विधि में खेत को समतल कर पूरे खेतों में एक समान पानी पहुंचता है। जैविक खाद का उपयोग करने से नमीं अधिक समय तक सुरक्षित रहती है और मात्र तीन से चार बार सिंचाई करके अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। इस तरह पानी की बचत भी होती है। पंक्ति से पंक्ति व बीज से बीज की दूरी अधिक होने पर सूर्य का प्रकाश प्रत्येक पौधे तक आसानी से पहुंच जाता है। इससे पौधों में पानी एवं आवश्यक पोषक तत्वों में प्रतिस्पर्धा भी कम होती है। पौधों की जड़ें ठीक ढंग से फैलती हैं एवं पौधों को ज्यादा पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। गेहूं सघनीकरण की पद्धति में गुड़ाई बीडर से की जाती है, जिससे खरपतवार मिट्टी में मिल जाते हैं, जो बाद में खाद में बदलकर पौधों का पोषण करते हैं। इस पद्धति से पौधों के बीच अधिक फासला होने के कारण सूर्य की किरणें व हवा उचित मात्रा में मिलती है, जिससे पौधे अधिक स्वस्थ रहते हैं और उन पर कीट का प्रभाव कम होता है।
कृषक विक्रमसिंह अपने खेत में हुए गेहूं के अधिक उत्पादन से प्रसन्न हैं। वे बताते हैं कि उन्हें आत्मा परियोजना के तहत विकास खण्ड स्तरीय सर्वोत्तम कृषक का पुरस्कार प्राप्त हुआ है। विक्रमसिंह कृषकों से अनुरोध करते हैं कि वे कृषि विभाग के अधिकारियों से मिलजुल कर तकनीकी ज्ञान प्राप्त करें, जिससे उनके खेतों में उपज बढ़ सकेगी। वे यंत्रीकरण को भी कृषि के लिये अच्छा मानते हुए कहते हैं कि इससे खेती की लागत घट सकती है।