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पंचक्रोशी यात्रा प्रारम्भ, श्री नागचंद्रेश्वर से बल प्राप्त कर यात्री रवाना हुए


 

उज्जैन। पंचक्रोशी यात्रा इस वर्ष मुहूर्त अनुसार बुधवार 11 अप्रैल से प्रारम्भ हुई। यात्रा का समापन 16 अप्रैल को होगा। पंचक्रोशी यात्रा उज्जैन में होने वाला प्रतिवर्ष का आयोजन है। यह धार्मिक यात्रा 118 किमी लंबी होती है और अप्रैल माह में आयोजित होती है, जिसमें वैशाख की तपती दोपहर में हजारों श्रद्धालु आस्था की डगर पर यात्रा करते हैं। यात्रा के कुछ प़ड़ाव शिप्रा के किनारे हैं। पंचक्रोशी यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालु यात्रा प्रारंभ होने के एक दिन पहले नगर में आकर मोक्षदायिनी शिप्रा के रामघाट पर विश्राम करते हैं। प्रातः शिप्रा स्नान कर पटनी बाजार स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर पहुँच भगवान नागचंद्रेश्वर को श्रीफल अर्पित कर बल प्राप्त करते हैं। इसके बाद यात्रा शुरू होती है।

पंचक्रोशी यात्रा 118 किलोमीटर तक निकाली जाती है और इसमें कुल सात पड़ाव व उप पड़ाव आते हैं। इन पड़ावों व उप पड़ावों के बीच कम से कम छह से लेकर 23 किलोमीटर तक की दूरी होती है। नागचंद्रेश्वर से पिंगलेश्वर पड़ाव के बीच 12 किलोमीटर, पिंगलेश्वर से कायावरोहणेश्वर पड़ाव के बीच 23 किलोमीटर, कायावरोहणेश्वर से नलवा उप पड़ाव तक 21 किलोमीटर, नलवा उप पड़ाव से बिल्वकेश्वर पड़ाव अम्बोदिया तक छह किलोमीटर, अम्बोदिया पड़ाव से कालियादेह उप पड़ाव तक 21 किलोमीटर, कालियादेह से दुर्देश्वर पड़ाव जैथल तक सात किलोमीटर, दुर्देश्वर से पिंगलेश्वर होते हुए उंडासा तक 16 किलोमीटर और उंडासा उप पड़ाव से क्षिप्रा घाट रेत मैदान उज्जैन तक 12 किलोमीटर का रास्ता तय करना होता है। पुरातन काल से चली आ रही परंपरा के अनुसार यह यात्रा शिप्रा नदी में स्नान व नागचंद्रेश्वर की पूजा के साथ वैशाख कृष्ण दशमी से शुरु होती है। पंचक्रोशी यात्रा का समापन भगवान नागचंद्रेश्वर को बल लौटाकर होता है। इसके लिए यात्री बल के प्रतीक मिट्टी के घो़ड़े भगवान को अर्पित करते हैं। यह यात्रा पूर्ण होने के पश्चात यात्री नगर प्रवेश कर रात्रि में ही नगर सीमा स्थित अष्टतीर्थ की यात्रा कर त़ड़के शिप्रा स्नान करते हैं।

पंचक्रोशी यात्रा का महत्व

उल्लेखनीय है कि पुरातन काल से ही पुण्य कमाने के लिए ही देश भर के श्रद्धालु पंचक्रोशी यात्रा में हिस्सा लेने के लिए उज्जैन पहुँचते हैं। मान्यता है कि इस लम्बी यात्रा में शामिल होने से निहित स्वार्थ, दुराग्रह, पूर्वाग्रह, कटुता, वैमनस्यता तथा मोहमाया के सारे बंधन मानो पीछे छूटे जाते हैं।

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