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समानता आंदोलन संघर्ष समिति ने बंद को दिया समर्थन



न सड़क पर नहीं उतरेंगे, न जबरिया बंद कराएंगे, हिंसा, उपद्रव अथवा अराजकता का विरोध
उज्जैन। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुसूचित जाति, जनजाति अत्याचार निवारण
अधिनियम में दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों की मात्र व्याख्या करते
हुए शिकायत पर निष्पक्ष जांच कर कार्यवाही किये जाने को लेकर निर्णय
पारित किया गया है जिससे उक्त अधिनियम के प्रावधानों में किसी भी प्रकार
का परिवर्तन नहीं हुआ है। कुछ राष्ट्र विरोधी तत्वों ने सर्वोच्च
न्यायालय के उक्त निर्णय को असत्य रूप में समाज के समक्ष प्रस्तुत देश
में अराजकता का माहौल उत्पन्न किया है जिसकी समानता आंदोलन संघर्ष समिति
घोर निंदा करती है। राष्ट्र विरोधी तत्वों ने वर्ग विशेष को लाभ पहुंचाने
की दृष्टि से देश के सामान्य एवं पिछड़ा वर्ग के हितों पर प्रहार किया है।
विगत दिनों सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा एवं प्रतिष्ठा पर हुए प्रहार के
विरोध में सामान्य एवं पिछड़ा वर्ग द्वारा 10 अप्रैल को भारत बंद का
आव्हान सोशल मीडिया के माध्यम से किया गया है जिसे समानता आंदोलन संघर्ष
समिति द्वारा समर्थन दिये जाने का निर्णय लिया है। समानता आंदोलन संघर्ष
समिति किसी भी प्रकार की हिंसा, उपद्रव अथवा अराजकता को समर्थन प्रदान
नहीं करते हुए ऐसी कृत्यों का विरोध करती है।
समानता आंदोलन संघर्ष समिति के संयोजक यशवंत अग्निहोत्री ने कहा कि
समानता आंदोलन संघर्ष समिति द्वारा शहर के व्यापारी जगत एवं गणमान्य
नागरिकों से शांतिप्रिय एवं स्वैच्छिक रूप से 10 अप्रैल को प्रातः काल से
दोपहर तक स्वैच्छिक रूप से अपने प्रतिष्ठान को बंद रखकर सर्वोच्च
न्यायालय द्वारा पारित निर्णय के सम्मान में बंद का आव्हान करती है।
समानता आंदोलन संघर्ष समिति के निर्णय अनुसार हमारे कार्यकर्ता किसी भी
रैली प्रदर्शन में भाग नहीं ले रहे हैं बलपूर्वक किसी को बंद करवाने के
लिए बाध्य नहीं करेंगे। हमने व्यापारी बंधुओं और समाज से स्वैच्छिक एवं
शांतिपूर्वक बंद के समर्थन का आव्हान किया है।

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