महंत प्रकाशपुरी महाराज तथा परमहंस डॉ. अवधेशपुरी महाराज मामले में महानिर्वाणी अखाड़ा हरिद्वार से आई चिट्ठी
श्रीपंचों ने अवधेशपुरी महाराज से कहा आप अखाड़े के सदस्य हैं, सेवा करते रहें
उज्जैन। महानिर्वाणी अखाड़े से महंत प्रकाशपुरी महाराज द्वारा परमहंस डॉ. अवधेशपुरी महाराज को षड़यंत्रपूर्वक बहिष्कार करने के मामले में हरिद्वार से श्री पंचों ने मुख्यालय से चिट्ठी लिखकर मामले का किया पटाक्षेप। श्रीपंचों ने डॉ. अवधेशपुरी को लिखी चिट्ठी में पहले तो अखाड़े के श्री पंच परमेश्वर द्वारा अवधेशपुरीजी से शिक्षित संत होने के नाते धैर्य धारण कर शांति बनाए रखने के लिए कहा गया लेकिन जब कई महीने बीत गए किंतु महंत प्रकाशपुरी के रवैये में कोई सुधार नहीं पाया गया तो हरिद्वार के अखाड़े के श्रीपंचों द्वारा विचार विमर्श के उपरांत डॉ. अवधेशपुरी को एक चिट्ठी लिखकर इस फर्जी बहिष्कार का पर्दाफाश करते हुए सूचना प्रदान की कि आप पूर्ववत अखाड़े के सदस्य हैं, अखाड़े ने आपकी सदस्यता रद्द नहीं की है। अतः आप पहले की भांति अखाड़े की सेवा करते रहेंगे।
परमहंस डॉ. अवधेशपुरी महाराज की लोकप्रियता देख ग्रहस्थ संत रामेश्वर दास उर्फ मास्टर बाबा पिता रघुनाथसिंह ने महंत प्रकाशपुरी को भ्रमित कर साजिश पूर्वक अवधेशपुरी महाराज का महानिर्वाणी अखाड़े से बहिष्कार करा दिया था। महंत प्रकाशपुरी द्वारा स्वयं मीडिया के सामने बयानबाजी कर दूसरे ही दिन अपने बयानों से पलटते हुए डॉ. अवधेशपुरी के उपर डालते हुए अनाधिकृत रूप से मीडिया में बहिष्कार पत्र भेज दिया था जो कि अखाड़े के नियमों एवं परंपराओं के विरूध्द था। इतना ही नहीं दूसरे दिन फिर रामेश्वरदास उर्फ मास्टर बाबा के आश्रम में बैठक कर अपशब्द बोलने के मनगढ़ंत एवं झूठे आरोप लगाते हुए फिर से बहिष्कार पत्र मीडिया को भेजा था। इसी के बाद शैव महोत्सव में डॉ. अवधेशपुरी के द्वारा विशिष्ट अतिथि के रूप में ध्वज पूजन करने पर इन षड़यंत्रकारी संतों द्वारा शैव महोत्सव का भी बहिष्कार कर दिया गया था। इन्हीं संतो ंके द्वारा प्रबंध समिति पर दबाव बनाकर माखनसिंह से यह झूठ भी बुलवाया गया कि अवधेशपुरी बिना बुलाए आए थे बाद में डॉ. अवधेशपुरी जब धरने पर बैठे तक इन सब बातों का खुलासा हुआ था। अखाड़े के वरिष्ठ पदाधिकारियों के नीति संगत बयान आने के बाद प्रकाशपुरी ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया था।
आचार्य महामंडलेश्वर के समझौते का भी किया था उल्लंघन
जब महानिर्वाणी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर ने सब कुछ संभालते हुए पूरे मामले का पटाक्षेप करते हुए गुरू शिष्य का मिलन कराया था उसके दूसरे दिन ही पुनः प्रकाशपुरी द्वारा आचार्यश्री की बात को काटते हुए गुरू शिष्य परंपरा का अपमान करते हुए उनके समझौते को मानने से इंकार कर दिया था।
एक गृहस्थ वैष्णव संत के दखल से अखाड़ा हो रहा बर्बाद
एक ऐसा संत जो कि अपने नाम के सामने अपने पिता का नाम लिखता है कहीं गुरू का नाम लिखता है कहीं निवास कुछ लिखता है तो कहीं कुछ। ऐसे 420 संत के सन्यासी अखाड़े की व्यवस्था एवं परंपराओं में हस्तक्षे कर अखाड़े को कमजोर किया जा रहा है। महंत प्रकाशपुरी अपने बुध्दि एवं विवेक को पूरी तरह से मिटा चुके हैं तथा उसी की कठपुतली बनकर चलते नजर आ रहे हैं।