आचार्य श्री जयन्तसेन सूरिश्वरजी महाराज के प्रथम पुण्य स्मरण पर गुणानुवाद सभा आयोजित
गुरूदेव हमारे साथ हर क्षण मौजूद हैं –मंत्री श्री जैन
हमें दादा गुरूदेव के बताये हुए मार्ग का अनुसरण करना चाहिये
उज्जैन । शनिवार को देवास रोड स्थित श्री राजराजेन्द्र जयन्तसेन सूरि शताब्दी शोध संस्थान के परिसर में आचार्य श्री जयन्तसेन सूरिश्वरजी महाराज के प्रथम पुण्य स्मरण पर गुणानुवाद सभा आयोजित की गई। इस अवसर पर ऊर्जा मंत्री श्री पारस जैन, श्री रमेश धारीवाल, श्रीमती अंगूरबाला सेठिया, श्री सुशील गिरिया, श्री माणकलाल जैन, श्री बाबूलाल जैन, उज्जैन दक्षिण के विधायक डॉ.मोहन यादव, श्री तेजसिंह गौड़ा, श्री अनिल कुमार जैन कालूहेड़ा एवं अन्य समाजजन मौजूद थे। मंच पर आसीन आचार्य श्री दौलतसागर सूरिश्वरजी एवं आचार्य देवेश श्री नन्दीवर्धन सागर सूरिश्वरजी के समक्ष समाजजनों द्वारा गुरूदेव की वन्दना की गई।
मंत्री श्री पारस जैन ने कहा कि आज वे जो कुछ भी हैं गुरूदेव के आशीर्वाद से ही हैं। गुरूदेव समाजजनों की शान थे और एक युगपुरूष थे। उन्हें राष्ट्रसन्त की उपाधि प्राप्त थी। उन्होंने कई मन्दिरों की प्राण-प्रतिष्ठा की। हर समस्या का निराकरण किया। उनकी महिमा अदभुत और अनन्त थी। आज से ठीक एक वर्ष पूर्व भाण्डवपुर में उनका महाप्रयाण हुआ था। तब हजारों आंखें नम हुई थीं। गुरूदेव ने अनन्त कुलों का समावेश कर आमजन को आत्मकल्याण का सन्देश दिया। गुरूदेव हर क्षण हमारे साथ हैं। सभी पर उनका आशीर्वाद बना रहे। उज्जैन में जो चातुर्मास आयोजित हुआ, वह ऐतिहासिक था। राजेन्द्र सूरि शोध संस्थान सभी समाजों के विद्यार्थियों के लिये है। यहां आकर वे शोध कर सकते हैं। इस संस्थान को भविष्य में और विकसित किया जायेगा तथा यहां पर विशाल सभा मण्डप एवं मन्दिर बनाया जायेगा।
इसके पूर्व अतिथियों द्वारा बाबा गुरूदेव एवं पुण्य सम्राट के चित्रों पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन किया गया। स्वागत भाषण श्री सुशील गिरिया द्वारा दिया गया। गुरूदेव श्री जयन्तसूरिश्वरजी की स्मृति में श्री राजेन्द्र पटवा द्वारा गीत के माध्यम से वन्दना की गई। इसके पश्चात सभी अतिथियों द्वारा शोध संस्थान के प्रधान अध्यापकगणों का स्मृति चिन्ह और माला भेंटकर सम्मान किया गया। कार्यक्रम में श्रीमती अंगूरबाला सेठिया, श्री रमेश धारीवाल और श्री तेजसिंह गौड़ा द्वारा भी अपने विचार व्यक्त किये गये।
बताया गया कि सभी समाजजनों को दादा गुरूदेव के पदचिन्हों पर चलकर जीवन यापन करना चाहिये। गुरूदेव द्वारा दो हजार से अधिक स्तवन हिन्दी में तैयार किये गये। उन्होंने लोगों को प्रेम से रहना सिखाया। वो उग्र विहारी थे और कठोर तपस्या करते थे। भीषण गर्मी में भी उन्होंने विभिन्न स्थानों पर विहार किया। वे देश से प्रेम करने वाले भी थे। कारगिल युद्ध के दौरान समाज के सक्षम वर्ग के लोगों के माध्यम से उन्होंने युद्ध में शहीद हुए परिवारों को आर्थिक सहायता पहुंचाई थी। गुजरात में सन 2000 में आये भीषण भूकंप के बाद उन्होंने गांव-गांव में भूकंप पीड़ितों की मदद के लिये जन-जागृति अभियान चलाया था।
इसके पश्चात आचार्य श्री हर्षसागर सूरिश्वर महाराज द्वारा आशीर्वचन दिया गया। उन्होंने दादा गुरूदेव के जीवनकाल से जुड़ी प्रमुख घटनाओं और गुणों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि जो ज्ञानी है वे तभी गुरू कहलाते हैं जब परिणत हो सकें।