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"उज्जैन में रोजाना पांच सौ से छ:सौ मजदूरों और गरीबों को मिलता है भरपेट भोजन"


दीनदयाल अंत्योदय रसोई योजना के एक वर्ष पूरा होने पर

"महज पांच रूपये में पूरी होती है जीवन की सबसे बड़ी जरूरत"

"दीनदयाल अंत्योदय रसोई योजना का सफलतापूर्वक 1 वर्ष हुआ"

उज्जैन । दंत कथाओं के अनुसार एक बार स्वर्ग से दो देवताओं को इंसान के रुप में किसी कारण से इस दुनिया में आना पड़ा | हमेशा अमृत पीने वाले देवता यहां के तौर तरीकों से बिल्कुल अनजान थे |कुछ वक्त बिताने के बाद उनमें से एक को बड़ी अजीब से अनुभूति होने लगी| उसके पेट में दर्द होने लगा, कमजोरी आने लगी, आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा, ऐसा लगा जैसे वह अपनी सारी सामर्थ्य खो बैठा है | वह उसे देवता का दर्जा देने वाले ईश्वर का भी स्मरण करने में असमर्थ था | उसने दूसरे को जब इसका पता लगाने के लिए कहा तो यह बात सामने आई कि इस एहसास का नाम है - "भूख" |

यही वह एहसास है जो इस दुनिया में हर जीवित प्राणी के अंदर होता है,या यह कहना ज्यादा उचित होगा कि इस एहसास की पूर्ति से ही प्राणी जीवित रहते हैं और ये दुनिया चल रही है| ईश्वर ने शायद जानबूझकर इस एहसास को सभी प्राणियों में डाला, क्योंकि बिना इसकी पूर्ति के ना तो प्राणियों का अस्तित्व रहता और ना ही सृष्टि का चक्र चलायमान रहता |

यह किस्सा मनगढ़ंत हो सकता है, लेकिन इसमें जीवन का सबसे बड़ा यथार्थ निहित है | वास्तव में यह भूख ही तो है जिसे मिटाने के लिए इंसान दिन-रात अपना खून पसीना एक कर अनाज उगाता है, कड़ी मेहनत करता है, मजदूरी करता है या किसी की  नौकरी-चाकरी करता है | ये सारी मशक्कत वह सिर्फ तो रोटियों के लिए ही तो करता है | यदि ना मिले तो वह अपने आत्म सम्मान का गला घोंटकर भीख मांगता है, वह इसकी पूर्ति के लिए कई गलत तरीके तक अपना लेता है | शायद इसी वजह से कहावतों में पेट को "पापी" कहा गया |

चाहे ईंसान गरीब हो या अमीर, भूख का एहसास बिना किसी भेदभाव के सभी के अंदर होता है | बाकी सभी आवश्यकताएं तो बहुत बाद में आती हैं, लेकिन हर इंसान की जिंदगी को चलाने का आधार स्तंभ है "उदर-पोषण" | सक्षम लोग तो फिर भी इसकी पूर्ति कर लेते हैं, लेकिन गरीब तबके के लोगों को अक्सर अपनी इच्छाओं के साथ-साथ भूख को भी मारना पड़ता है | कुदरत ने तो बिना किसी भेदभाव के अपने सारे संसाधन सभी प्राणियों में समान रुप से बांटे थे | लेकिन इंसानों ने दौलत के आधार पर अपने बीच अमीरी और गरीबी की दीवार खड़ी कर ली | ऐसे में यदि कोई सरकार गरीब वर्ग के लोगों की भलाई एवं उत्थान के लिए संवेदनशील होकर कोई कदम उठाती है तो यह निश्चित ही सराहनीय और स्वागत योग्य है |

       आज के इस महंगाई के जमाने में यदि कोई कहे कि केवल 5 रूपये में पेट भर कर भोजन मिल सकता है क्या ?  तो यकीनन ज्यादातर लोग इसे मजाक या कोरी कल्पना मानेंगे | लेकिन इसे चरितार्थ किया है मध्य प्रदेश शासन की दीनदयाल अंत्योदय रसोई योजना ने |  आज से ठीक एक वर्ष पहले 7 अप्रैल को प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा इसी उद्देश्य से इस योजना की शुरुआत की गई थी ताकि प्रदेश के सभी जिलों में गरीब व आर्थिक रुप से कमजोर तबके के लोगों को भी सम्मान के साथ पेट भर भोजन मिल सके |

उस समय मुख्यमंत्री ने कहा था कि मध्यप्रदेश सरकार समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को सम्मान से जीने का हक दिलाने के लिए कृतसंकल्पित है | इसी कड़ी में पूरे प्रदेश में गरीब मजदूरों को महज 5 रूपये में भरपेट भोजन प्रदाय करने का अनूठा कदम शासन द्वारा इस योजना के तहत उठाया गया |

इस योजना के अंतर्गत नि:शुल्क भोजन की व्यवस्था भी की जा सकती थी, लेकिन ऐसी स्थिति में यह सुविधा ना रहकर एक तरह की भीख, एक तरह की दया कहलाती | लेकिन मुख्यमंत्री श्री चौहान ये भली भांति समझते हैं कि चाहे गरीब से गरीब व्यक्ति ही क्यों ना हो, भले ही वह मजदूरी करके अपना व परिवार का पालन पोषण करता हो, आख़िर उसका भी आत्म सम्मान होता है, जिससे किसी भी स्थिति में ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए | इसीलिए इस योजना के तहत नाम मात्र का शुल्क 5 रूपये प्राप्त कर गरीबों को भोजन का कूपन दिया जाता है, ताकि उनका उदरपोषण हो सके और उनके आत्म सम्मान की भी रक्षा हो सके |

धर्म की बात करें तो चाहे सनातन धर्म हो, इस्लाम, ईसाई, जैन, बौद्ध या सिक्ख धर्म, सभी में मानव सेवा को सर्वोपरि माना गया है | इस्लाम धर्म के अनुसार भूखे व्यक्ति को पेट भर खाना देना सबसे बड़ा "सवाब"  होता है | इसी तरह यदि हम देश की संस्कृति की बात करें तो हमारे यहां साथ में बैठकर भोजन केवल पेट भरने के लिए ही नहीं बल्कि दिलों को आपस में जोड़ने के लिए भी करते हैं | इसका दीनदयाल अंत्योदय रसोई योजना से अच्छा और क्या उदाहरण हो सकता है, जिसके तहत एक ही छत के नीचे विभिन्न धर्मों, जातियों और समाजों के लोग बड़े ही प्रेम और भाई चारे के साथ बैठकर भोजन करते हैं |

निश्चित रूप से मुख्यमंत्री श्री चौहान द्वारा मानवीय संवेदनाओं को ध्यान में रखकर शुरू की गई दीनदयाल अंत्योदय रसोई योजना केवल एक योजना मात्र नहीं, बल्कि हर वर्ग के व्यक्ति को अपने सामाजिक दायित्व निभाने का बहुत अच्छा अवसर भी है | जाहिर तौर पर बड़ी ही खुशी की बात है कि समाज के सक्षम वर्ग के लोग और समाजसेवी भी इस योजना के तहत भरपेट भोजन की सुविधा जरुरतमंदों तक पहुंचाने के लिए बढ़-चढ़कर आगे आ रहे हैं |

उज्जैन शहर में योजना का संचालन उज्जयिनी सेवा समिति द्वारा नगर पालिका निगम के माध्यम से नानाखेड़ा बस स्टैंड,शासकीय जिला चिकित्सालय और सिद्धवट पर किया जा रहा है | यह रसोई प्रतिदिन प्रातः 11 बजे से दोपहर 3 बजे तक खुली रहती है, तथा इसमें कोई भी व्यक्ति 5 रूपये का कूपन लेकर पौष्टिक एवं स्वादिष्ट भोजन भरपेट कर सकता है | थाली में रोटी, सब्जी, दाल और चावल शामिल होते हैं | दाल और सब्जी मौसम और दिनों के अनुसार बदल-बदल कर दी जाती है | इसके अलावा कभी-कभी कढी़ भी बनाई जाती है |

समिति के अध्यक्ष श्री ईश्वर पटेल, उपाध्यक्ष श्री उमेश गुप्ता, कोषाध्यक्ष श्री संजय अग्रवाल, संचालक श्री ओम अग्रवाल और संयोजक श्री घनश्याम पटेल हैं | संचालक श्री ओम अग्रवाल ने जानकारी दी कि तीनों रसोई केंद्रों में औसतन रोजाना 500 से 600 व्यक्ति 5 रूपये देकर भरपेट भोजन करते हैं | भोजन करने के लिए आने वाले लोगों से उनके सुझाव व शिकायतें भी 'फीडबैक' रजिस्टर में दर्ज कराई जाती हैं |

विगत एक साल से परोसगारी करने वाली निर्मला बाई, आशा बाई और मनोरमा बाई ने एक ही स्वर में कहा कि जरूरतमंदों को भोजन परोस कर उन्हें जो आत्मीय सुख मिलता है, वह संसार की बड़ी से बड़ी दौलत और संपत्ति से कहीं बढ़कर है | 

शासन की महत्वकांक्षी योजना के माध्यम से ना केवल लोगों को भरपेट भोजन कराया जाता है, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों को आपस में जोड़ने का भी यह एक सार्थक प्रयास है | समाज के सक्षम वर्ग के लोग एवं समाजसेवी भी इसमें अपना योगदान दे सकते हैं | अपने प्रियजन के जन्मदिवस, वैवाहिक वर्षगांठ या अपने पूर्वजों की पुण्य स्मृति में बाहर से आने वाले गरीब आमजन एवं मजदूरों को शुद्ध एवं पौष्टिक भरपेट भोजन वे अपनी ओर से करवा कर अन्नदान का पुण्य लाभ लेकर आत्मिक शांति और सुकून प्राप्त कर सकते हैं | इसके लिए समिति के जिला चिकित्सालय स्थित कार्यालय में संपर्क किया जा सकता है |

शासन और व्यवस्थापकों की बात रखने के बाद हमारे लिए सबसे जरूरी तो उन लोगों की राय जानना था, जिनके लिए दीनदयाल अंत्योदय रसोई योजना शुरू की गई | इसलिए हमने रसोई में भोजन करने के लिए आने वाले लोगों से बात की और फीडबैक रजिस्टर भी खंगाला | यह एक सुखद आश्चर्य की बात थी कि किसी भी व्यक्ति के द्वारा योजना के तहत मिलने वाले भोजन के प्रति ना तो कोई शिकवा था, ना ही किसी तरह की शिकायत |सबकी राय का यहां उल्लेख करना असंभव होगा, लेकिन कुछ लोगों ने ऐसी बातें कहीं जो भावुक कर देने वाली और मर्मस्पर्शी थीं |

एक आठ वर्षीय मासूम बच्चे अमन ने कहा कि वह पास की सब्जी मंडी में पढ़ाई करने के साथ सब्जी बेचने में अपने पिता का हाथ बंटाता है | कुछ दिनों पहले उसकी मां का देहांत हो गया| अमन की मां तो अब कभी वापस नहीं आ सकती, लेकिन दीनदयाल अंत्योदय रसोई में बना खाना खाकर उसे अपनी मां के हाथ से बने भोजन की याद आ जाती है | कई बार उसे ऐसा लगता है जैसे उसकी मां ही अपने सामने बिठा कर उसे भोजन करा रही है | ये सुखद कल्पना कुछ हद तक उसके दु:ख को कम कर देती है |

पैंसठ वर्षीय शिवनारायण उज्जैन में अकेले रहते हैं | ना तो उनका कोई परिवार है, ना ही कोई रिश्तेदार | लेकिन जब से वे यहां भोजन करने के लिए आने लगे हैं, उन्हें परिवार की कमी महसूस नहीं होती | क्योंकि यहां उन्हें बिल्कुल घर जैसा खाना मिलता है | पहले वे बाजार में खाना खाते थे, जिस कारण अक्सर उनका स्वास्थ्य खराब रहता था, लेकिन दीनदयाल अंत्योदय रसोई का भोजन सुस्वाद,पौष्टिक और सुपाच्य होता है | 

खंडवा से उज्जैन महाकाल दर्शन करने एवं नौकरी की तलाश में आए बेरोजगार पवन के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह कोई मामूली से भोजनालय या होटल में भी खाना खा सके | वह इसी दुविधा में बस स्टैंड पर अपने सिर पर हाथ रख कर बैठ गया | उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, क्योंकि वापस जाने के किराए को छोड़कर उसके पास मात्र 10 रूपये ही बचे थे | तभी उसने सामने दीनदयाल अंत्योदय रसोई योजना का बोर्ड देखा, उसे ऐसा लगा जैसे ईश्वर ने ही उसे राह दिखाई हो | उसने रसोई में आकर भरपेट भोजन किया और दिल से मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त किया | 

67 वर्षीय जावरा के साबिर खान को उसके बेटों ने जब घर से निकाल दिया तो उसे किसी का आसरा नहीं था | लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी | जावरा से उज्जैन आकर वह मजदूरी करने लगा | दीनदयाल अंत्योदय रसोई के बारे में वह कहता है कि उसके सगे घरवालों ने तो उसे दाने - दाने के लिए मोहताज कर दिया था, लेकिन मुख्यमंत्री ने उसके और उस जैसे न जाने कितने ही लोगों के लिए अच्छा और स्वादिष्ट भोजन उपलब्ध करवाने का जो बीड़ा उठाया है, उसके लिए वह ताउम्र मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान का शुक्रगुजार रहेगा | 

82 वर्षीय राजोदा निवासी लीलाबाई के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ | हालांकि उनके पास पैसों की कमी नहीं थी, लेकिन बेटे-बहू से बनती नहीं थी तो मजबूर होकर घर छोड़ना पड़ा | इस उम्र में मोक्ष प्राप्त करने और अंतिम सत्य को जानने के अलावा और कोई इच्छा नहीं बची थी, इसलिए धर्म नगरी उज्जैन आकर रहने लगीं | यहां अंत्योदय रसोई में भोजन कर वे सच्चे दिल से मुख्यमंत्री श्री चौहान को आशीर्वाद देती हैं |

सफाई कर्मचारी शिफ़त और मोबीना पहले बिस्मिल्ला कर रसोई में खाना खाती हैं, फिर अपने काम में लग जाती हैं | ऐसे ही रोज न जाने कितने अनगिनत लोग फीडबैक रजिस्टर पर जब अपने अनुभव लिखकर साझा करते हैं, तो कभी कभी उनकी भावनाओं का बांध टूट जाता है और आंसू आंखों से छलक कर रजिस्टर के पन्नों पर गिर जाते हैं | जहां आंसू की बूंदे गिरती हैं, वहां के अक्षर धुंधले हो जाते हैं, लेकिन मुख्यमंत्री श्री चौहान ने दीनदयाल अंत्योदय रसोई योजना के माध्यम से गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों तथा मजदूरों के मन में जो छवि बनाई है वह शायद ही कभी धुंधली हो |

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