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नरवाई में आग लगाने पर पुलिस प्रकरण कायम हो सकता है


 

उज्जैन | उप संचालक कृषि द्वारा किसानों से अपील की गई है कि गेहूं कटने के बाद बचे हुए फसल अवशेष नरवाई जलाना खेती के लिये आत्मघाती कदम सिद्ध हो सकता है। नरवाई जलाने का कृत्य धारा 144 के तहत प्रतिबंधित है। नरवाई में आग लगाने पर पुलिस द्वारा प्रकरण भी कायम किया जा सकता है।

   उप संचालक ने बताया कि नरवाई में आग लगाने से भूमि में उपलब्ध जैव विविधता समाप्त हो जाती है। भूमि के सूक्ष्म जीव जलकर नष्ट हो जाते हैं। फलस्वरूप जैविक खाद का निर्माण बन्द हो जाता है। भूमि की ऊपरी पर्त में ही पौधों के लिये आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध रहते हैं। आग के कारण पोषक तत्व जलकर नष्ट हो जाते हैं। भूमि कठोर हो जाती है। इससे जलधारण क्षमता कम होती है, फसल सूखती है, खेत की सीमा पर पेड़-पौधे जलकर नष्ट हो जाते हैं, पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है, वातावरण के तापमान में वृद्धि से धरती गर्म होती है, कार्बन से नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस का अनुपात कम हो जाता है, केंचुए नष्ट हो जाते हैं, इससे भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है, नरवाई जलाने से जन-धन की हानि होती है।

   नरवाई के सदुपयोग की सलाह देते हुए बताया गया कि जलाने की अपेक्षा अवशेषों और डंठलों को एकत्रित करके जैविक खाद जैसे भू-नाडेप, वर्मी कम्पोस्ट आदि बनाने में उपयोग किया जाये तो वे बहुत जल्दी सड़कर पोषक तत्वों से भरपूर कृषक स्वयं का जैविक खाद बना सकते हैं। खेत में कल्टीवेटर, रोटावेटर या डिस्क हैरो आदि की सहायता से फसल अवशेषों को भूमि में मिलाने से आने वाली फसलों में जैवांश खाद की बचत की जा सकती है।

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